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कोरोना ने दिया इन परिवारों को सबसे बड़ा सदमा, लोग बोले दुश्मन को भी न देखना पड़े ऐसा

अंतिम संस्कार में भाग लेना पड़ा भारी हिमाचल के कोटगढ़ में रहने वाला सिंह परिवार गांव की भीड़-भाड़ से...
कोरोना ने दिया इन परिवारों को सबसे बड़ा सदमा, लोग बोले दुश्मन को भी न देखना पड़े ऐसा

अंतिम संस्कार में भाग लेना पड़ा भारी

हिमाचल के कोटगढ़ में रहने वाला सिंह परिवार गांव की भीड़-भाड़ से दूर, सेब के बगीचे में बने घर में रहता है। रमन सिंह के 74  वर्षीय पिता नंदकिशोर सिंह रिटायर्ड स्कूल टीचर थे। उनकी 71 वर्षीया मां कांता सिंह गृहिणी थीं। रमन की आंखों के सामने उनके माता-पिता चल बसे और वे कुछ न कर सके। पिछले साल नवंबर में परिवार के सभी छह सदस्य माता-पिता, रमन, उनकी पत्नी शिल्पा और दोनों बच्चे  (आठ साल का श्रेष्ठ और चार साल का सहर्ष) कोविड पॉजिटिव पाए गए। सबसे पहले कांता सिंह को 8 नवंबर को कुछ लक्षण दिखे। दरअसल, रमन के माता-पिता एक रिश्तेदार के अंतिम संस्कार में  पास के गांव गए थे। विदेश से आई एक महिला भी उस मौके पर पहुंची थी। उस रिश्तेदार की मौत कैंसर से हुई थी। मां के बाद रमन को भी बुखार हो गया। घर में लगातार इलाज के बाद भी मां की हालत नहीं सुधर रही थी। ऑक्सीजन स्तर गिरने लगा तो रमन मां को लेकर शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे। उन दिनों को याद करते हुए रमन बताते हैं, “बड़ी मुश्किल से उन्हें वार्ड में जगह मिली तो ऑक्सीजन दी जाने लगी। मां को जल्दी ही उन्हें वेंटिलेटर पर ले जाया गया। हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।”

रमन मां का इलाज करा ही रहे थे कि घर से पिता, पत्नी और दोनों बच्चों के पॉजिटिव होने की खबर आई। पिता को शिमला के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल लाया गया, लेकिन तीन दिन तक उनका इलाज शुरू ही नहीं हो सका और हालत बिगड़ती चली गई। उनकी बहन ने चंडीगढ़ के कई बड़े अस्पतालों के बारे में जानकारी ली, लेकिन ऑक्सीजन बेड या वेंटिलेटर कहीं उपलब्ध नहीं था। आखिरकार दिवाली के दिन, 14 नवंबर को रमन और उनके माता-पिता को जीरकपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया। चार दिन के बाद रमन ठीक हो गए, लेकिन मां को प्लाजमा थेरेपी से भी फायदा नहीं हुआ। पिता के खून में प्लेटलेट के गिरते स्तर को सुधारने की कोशिशें भी बेकार गईं। नंदकिशोर सिंह ने 24 नवंबर को आखिरी सांस ली। कुछ ही घंटे बाद उनकी पत्नी कांता भी चल बसीं।           

-अश्वनी शर्मा 

 

परिवार में 4 की मौत, 15 कोविड पॉजिटिव

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में रहने वाले शाहिद सईद के 4 परिजनों को कोविड-19 मौत की नींद सुला चुका है। उनके परिवार के 2 लोग और उनकी पत्नी के घर के 2 लोगों की मौत हो चुकी है। त्रासदी का आलम यह है कि दोनों परिवार के 15 सदस्य कोरोना से संक्रमित हैं। संकट की शुरुआत पिछले साल नवंबर में हुई। अलीगढ़ में रहने वाली उनकी बहन तलत बानो की तबियत एक रात खराब होने लगी तो उन्हें जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया। वहां डॉक्टर दिल की समस्या समझकर इलाज करते रहे, लेकिन कोविड टेस्ट नहीं हुआ। हालत दिनों-दिन बिगड़ती जा रही थी। फरवरी में एक दिन तबियत ज्यादा बिगड़ गई। वे सांस नहीं ले पा रही थीं। लक्षण देखकर डॉक्टर ने कहा कि इन्हें कोविड-19 हुआ है। उन्हें तत्काल ऑक्सीजन दी गई। सीटी स्कैन में फेफड़े काफी खराब दिखे, पर कोविड टेस्ट निगेटिव आया। उन्हें रेमडेसिविर और दूसरी दवाएं दी गईं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मुंह से खून आने लगा तो डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर डाल दिया। अगले दिन, 23 फरवरी को उनकी मौत हो गई।

इसके करीब डेढ़ महीने बाद एक दिन तलत बानो के पति फिरोज अचानक बेहोश हो गए। उनका भी कोविड टेस्ट निगेटिव आया, लेकिन चार दिन बाद 10 अप्रैल को उनकी भी मौत हो गई। दरअसल, पति-पत्नी को पहले संक्रमण हुआ था, लेकिन तब कोविड का इलाज नहीं होने के कारण शरीर के अंग एक-एक कर खराब होने लगे। इससे पहले कि शाहिद इस हादसे से उबरते, खबर आई की पत्नी के ताऊ अचानक काफी बीमार हो गए हैं। वे सांस नहीं ले पा रहे थे। कोविड टेस्ट निगेटिव आया, लेकिन सीटी स्कैन में पता चला कि फेफड़े काफी खराब हो गए हैं। तीन दिन बाद वे भी चल बसे। उनके छोटे भाई तीन हफ्ते से बीमार हैं और हर दिन स्थिति नाजुक होती जा रही है। इस बीच, एक और रिश्तेदार की मौत हो चुकी है। परिवार पर संकट का साया अभी तक मंडरा रहा है। शाहिद के भाई-भाभी और सास-ससुर समेत कम से कम 15 परिजन कोविड पॉजिटिव हैं, जिनका इलाज चल रहा है।

-सुनील सिंह

 

 

रिसेप्शन की खुशियां मातम में बदलीं

पटना के खगौल निवासी विकास कुमार के लिए यह सामूहिक त्रासदी से कम नहीं था। बिजनेसमैन विकास कोविड-19 टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए हैं। उनके बड़े भाई ज्ञान प्रकाश भी पॉजिटिव हैं, लेकिन उनके पास आइसोलेशन में रहने की फुर्सत नहीं है। उनकी 86 साल की मां अस्पताल में मौत से जूझ रही हैं, तो एक और भाई दूसरे अस्पताल में। कई रोज पहले उन्हें कुछ घंटे के लिए अस्पताल से जाना पड़ा था क्योंकि उन्हें अपने चौथे भाई और एक भाभी का अंतिम संस्कार करना था।

विकास ने फोन पर बताया, “बेंगलूरू में रहने वाले भाई और भाभी बेटे की शादी का रिसेप्शन देने यहां आए थे। उसके बाद वे भाभी के माता-पिता से मिलने भागलपुर गए। वहां से लौटने पर भाभी में कोविड-19 के कुछ लक्षण दिखे। डॉक्टर ने पहले गलत इलाज किया। उसने टायफाइड समझकर दवा दी। तीन दिन बाद हालत बिगड़ने लगी तो डॉक्टर ने आरटी-पीसीआर टेस्ट कराने को कहा। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनकी मौत तो जैसे शुरुआत थी। विकास कहते हैं, “जांच में हम सब पॉजिटिव पाए गए। किसी तरह हमने भाई को आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां वे जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं।”

इस बीच एक और भाई की स्थिति बिगड़ने लगी। उन्हें लेकर एक प्राइवेट अस्पताल लेकर गए, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। वे सांस नहीं ले पा रहे थे। भाई चाहते थे कि उन्हें लेकर किसी दूसरी जगह जाएं। अस्पताल इस पर राजी हो गया और 1.12 लाख रुपये का बिल पकड़ा दिया। विकास को लगा कि सरकारी नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के आइसीयू में भर्ती कराना अच्छा रहेगा। वहां पहुंचने पर पता चला कि एक बेड के लिए तीन दावेदार हैं। अस्पताल वालों ने कहा कि आप लोग आपस में तय कर लीजिए किसे बेड चाहिए। विकास कहते हैं, “वहां की हालत देखकर मैं डर गया। कोई डॉक्टर नहीं था, आइसीयू में सिर्फ एक असिस्टेंट था। मुझे लगा कि यहां तो भाई की मौत हो जाएगी। मैं उसे लेकर दूसरे प्राइवेट अस्पताल में गया, जहां अगले दिन उसकी मौत हो गई। उन्होंने मुझसे 70 हजार रुपये लिए और एक पीपीई किट और पुरानी बेडशीट में लपेट कर शव दे दिया। अंतिम संस्कार के लिए बांस घाट पहुंचे तो एंबुलेंस से शव उतारने के लिए चार लोगों ने 2,000 रुपये मांगे। उनमें से किसी ने भी पीपीई किट नहीं पहनी थी। दो ने तो मास्क भी नहीं लगाया था।

-गिरिधर झा

 

तीन लोगों की मौत बर्दाश्त नहीं कर सकीं रेखा

कोरोना ने एमपी के देवास जिले के अग्रवाल समाज के अध्यक्ष बालकिशन गर्ग के परिवार में कोहराम मचा दिया है। एक सप्ताह में ही पत्नी व दो बेटों की कोरोना से मौत हो गई। अपनों के जाने का दर्द उनकी छोटी बहू से बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने फांसी लगा ली। परिवार में अब गर्ग के अलावा उनकी बड़ी बहू और पोते-पोतियां रह गए हैं। सबसे पहले बालकिशन गर्ग की 75 वर्षीय पत्नी चंद्रकला कोरोना की चपेट में आईं और 14 अप्रैल को उनकी मौत हो गई। इसके दो दिन के अंदर उनके 51 साल के बेटे संजय और फिर 48 साल के स्वप्नेश को भी कोरोना लील गया। परिवार पर पड़े इस वज्रपात को 45 वर्षीय छोटी बहू रेखा गर्ग सहन नहीं कर सकी।               

-शमशेर सिंह

 

 

शादी की खुशियां गम में बदलीं

दिल्ली के कृष्णा नगर में रहने वाले शर्मा परिवार में 20 अप्रैल तक खुशियों का माहौल था। घर में शादी की तैयारियां जोरों पर थीं। लेकिन अचानक सारी खुशियां मातम में बदल गईं। 21 अप्रैल को 58 वर्षीय अशोक शर्मा को बुखार आया। उसके बाद एमसीडी से सेवानिवृत्त उनके 85 वर्षीय पिता राम किशन शर्मा को बुखार आया। पिता की उम्र को देखते हुए परिवार ने अस्पताल में उन्हें भर्ती कराने की कोशिश की, लेकिन कहीं बेड नहीं मिला। वे मायूस होकर घर पर वापस आ गए। बाद में किसी तरह एक स्थानीय अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया। बाद में कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इस बीच अशोक शर्मा की 54 साल की पत्नी सीमा शर्मा को भी बुखार हो आया। तबियत बिगड़ी तो स्थानीय डॉक्टर को दिखाया। सैलाइन देने के बाद उनकी हालत सुधर गई और वे घर आ गईं। लेकिन कुछ घंटों बाद उनका शरीर नीला पड़ने लगा। उनका ऑक्सीजन का स्तर 34 पर पहुंच गया था। ऑनन-फानन में गुरु तेग बहादुर अस्पताल लेकर गए। जैस-तैसे ऑक्सीजन की व्यवस्था हुई, लेकिन कुछ देर में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। इस बीच पति अशोक की भी तबियत बिगड़ गई और वे पत्नी की अंतिम यात्रा में भी नहीं जा सके। पत्नी की खबर सुनकर सदमे में अशोक की तबयित बिगड़ी तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की गई। उनकी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आई। लेकिन अस्पतालों में भर्ती करने से पहले डॉक्टर सरकारी रिपोर्ट मांग रहे थे। ऐसे में ऑक्सीजन की कमी से तबियत बिगड़ती गई और अंत में उन्होंने भी जीटीबी में 24 अप्रैल को दम तोड़ दिया। अभी परिवार इस सदमे से संभलता कि अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग राम किशन शर्मा की भी 25 अप्रैल को मौत हो गई। बाद में बड़ी मुश्किल से लाश मिली तो किसी तरह काफी इंतजार के बाद दाह संस्कार हो पाया। इसी बीच राम किशन शर्मा के भाई जय भगवान शर्मा की भी शाहदरा में मौत हो गई। अब राम किशन के बेटे नीरज शर्मा भी बुखार से पीड़ित हैं। अशोक शर्मा के बेटे हर्ष शर्मा बचे हैं जो मां-बाप और दो बाबाओं के चले जाने से पूरी तरह टूट गए हैं।

- प्रशांत श्रीवास्तव

 

जियाउल हक परिवार में भी मातम

शुक्रवार 23 अप्रैल को 73 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार जियाउल हक को भी कोरोना ने हमसे छीन लिया। परिवार पर गम का आलम यह है कि कोरोना ने जियाउल हक के अलावा उनकी पत्नी और समधन को भी मौंत की नींद सुला दिया। जियाउल हक ने करिअर की शुरुआत उर्दू अखबार कौमी आवाज से की थी। उसके बाद वे लखनऊ में पॉयनियर के संपादक रहे। बाद में उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया में भी काम किया। जहां ज्यादातर पत्रकारों का दिल्ली आने का मकसद राजनीतिक रिपोर्टिंग होता है, वे अलग लक्ष्य लेकर राजधानी पहुंचे। उस दौर में शाह बानो और बाबरी मस्जिद जैसे मुद्दे सुर्खियों में थे। उन्हें लगा कि ऐसे में मुस्लिम समुदाय को एक स्वतंत्र समाचार पत्र की जरूरत है। पैसों की कमी को देखते हुए उन्होंने सहयोगियों के साथ मिलकर नेशन एंड द वर्ल्ड नाम से मैगजीन निकाली। पत्रकारिता के अलावा अपनी सेहत को लेकर भी काफी सजग रहा करते थे। वह 60 की उम्र में भी करसत किया करते थे।          

-हरिमोहन मिश्र

 

 

 

10 दिन में 4 की मौत से तबाह हुआ रावत परिवार

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के भिलाई में कोरोना ने देखते-देखते रावत परिवार को तबाह कर दिया। केवल 10 दिनों में परिवार के चार लोगों को कोरोना लील गया। सबसे पहले संक्रमण का शिकार 78 वर्षीय हरेंद्र सिंह रावत हुए। वे भिलाई स्टील प्लांट के सेवानिवृत्त कर्मचारी थे। इसके बाद उनके बड़े बेटे 51 वर्षीय मनोज सिंह रावत संक्रमण की चपेट में आए। इस बीच इलाज के दौरान 16 मार्च को हरेंद्र सिंह रावत कोरोना से लड़ाई हार गए। उनकी मौत के बाद बेटे मनोज की भी तबियत बिगड़ी तो उन्हें उन्हें रायपुर एम्स में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान 21 मार्च को उनकी सांसों की डोर भी टूट गई। परिवार अभी दो मौतों के सदमे से उबरा भी नहीं था कि हरेंद्र सिंह रावत की 70 वर्षीय पत्नी कौशल्या रावत की भी कोरोना से तबियत बिगड़ गई। भिलाई में ही इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। उसी शाम कोरोना से जूझ रहे उनके दूसरे 44 वर्षीय बेटे मनीष भी कोरोना के आगे लाचार हो गए और उनकी भी मौत हो गई। इस तरह सिर्फ दस दिनों के भीतर परिवार के चार लोगों ने दम तोड़ दिया। अब भिलाई के इस घर में केवल बहू और दो पोतियां ही रह गई हैं। हरेंद्र सिंह रावत के तीन बेटों में मनोज सबसे बड़े और मनीष सबसे छोटे थे। मंझले बेटे महेंद्र सिंह रावत रायगढ़ में अपने परिवार के साथ रहते है। अब वे ही बचे परिवार का सहारा हैं।

-अक्षय दुबे 'साथी'

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