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बीबीसी ने कहा- सेना ने कश्मीरियों पर किया अत्याचार, भारत ने रिपोर्ट को किया खारिज

जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के केन्द्र सरकार के फैसले के बाद वहां की स्थिति को लेकर कई...
बीबीसी ने कहा- सेना ने कश्मीरियों पर किया अत्याचार, भारत ने रिपोर्ट को किया खारिज

जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के केन्द्र सरकार के फैसले के बाद वहां की स्थिति को लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही है। इस बीच बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार,  सरकार द्वारा राज्य के विशेष दर्जे को निरस्त करने के बाद सुरक्षा बलों पर कथित तौर पर मारपीट और यातनाएं देने के आरोप लग रहे हैं। हालांकि, भारतीय सेना ने इस तरह के आरोपों को "निराधार और प्रमाणरहित" कहा है।

बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसने कई ग्रामीणों से सुना, जिन्होंने कहा कि उन्हें लाठी और केबल से पीटा गया और यहां तक कि बिजली के झटके भी दिए गए। रिपोर्टर ने हालांकि स्वीकार किया कि अधिकारियों के साथ आरोपों का सत्यापन नहीं किया गया है।

बीबीसी के रिपोर्टर ने कहा कि उन्होंने दक्षिणी जिलों के कम से कम आधा दर्जन गांवों का दौरा किया है, जो पिछले कुछ वर्षों में भारत विरोधी आतंकवाद के केंद्र के रूप में उभरे हैं।

उन्होंने दावा किया कि कई ग्रामीणों ने उन्हें इस तरह की नाइट रैड, मारपीट और यातनाओं की बातें बताई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉक्टर और स्वास्थ्य अधिकारी पत्रकारों से किसी भी मरीज के बारे में बात करने से बचते हैं चाहे बीमारी कोई भी हो, लेकिन गांव वालों ने उन्हें वो जख्म दिखाए, जो कथित तौर पर सुरक्षाबलों की पिटाई से हुए थे।

रिपोर्ट के अनुसार, “एक गांव में लोगों ने बताया कि इस फैसले से दिल्ली और कश्मीर के बीच दशकों पुरानी व्यवस्था समाप्त हो गई, उसके कुछ घंटों बाद ही सेना घर-घर गई थी।

दो भाइयों ने आरोप लगाया कि उन्हें जगाया गया और उन्हें बाहर ले जाया गया जहां गांव के लगभग एक दर्जन पुरुष इकट्ठा थे। उनसे मिलने वाले बाकी लोगों की तरह ही, वे भी कार्रवाई के डर से अपनी पहचान बताने से डरे हुए हुए थे।

उनमें एक ने कहा, "उन्होंने हमारी पिटाई की। हम उनसे पूछ रहे थे कि हमने क्या किया है। आप गांव वालों से पूछ सकते हैं, यदि हम झूठ बोल रहे हैं या हमने कुछ गलत किया है तो। लेकिन वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे, उन्होंने कुछ नहीं कहा, वो बस हमें पीटते रहे।"

"उन्होंने हमारे शरीर के हर हिस्से को पीटा। उन्होंने हमें लात मारी, लाठियों से पीटा, बिजली के झटके दिए, केबल से हमें पीटा। उन्होंने हमें पैरों के पीछे मारा। जब हम बेहोश हो गए तो उन्होंने होश में लाने के लिए बिजली के झटके दिए। जब उन्होंने हमें डंडों से पीटा और हम चीख उठे तो उन्होंने कीचड़ से हमारा मुंह बंद कर दिया।"

"हमने उन्हें बताया कि हम निर्दोष हैं। हमने पूछा कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? लेकिन उन्होंने हमारी नहीं मानी। मैंने उनसे कहा कि हमें मारो मत, बस हमें गोली मार दो। मैं खुदा से मना रहा था कि वो हमें अपने पास बुला ले क्योंकि यातना असहनीय थी।"

एक अन्य ग्रामीण युवक, ने कहा कि सुरक्षा बल उसे "पत्थर फेंकने वालों का नाम" देने के लिए कहते रहे।  वे अधिकांश युवाओं और किशोर लड़कों का हवाला दे रहे थे, जो पिछले दशक में कश्मीर घाटी में नागरिक प्रदर्शनों का चेहरा बन गए हैं।

उन्होंने कहा कि वो किसी को नहीं जानते, इसके बाद उन्होंने चश्मा, कपड़े और जूते निकालने को कहा।

"जब मैंने अपने कपड़े उतार दिए तो उन्होंने मुझे बेरहमी से रॉड और डंडों से लगभग दो घंटे तक पीटा। जब मैं बेहोश हो जाता तो वो मुझे होश में लाने के लिए बिजली के झटके दिए।"

उन्होंने बताया, "यदि उन्होंने मेरे साथ फिर ऐसा किया तो मैं कुछ भी कर गुजरूंगा, मैं बंदूक उठा लूंगा। मैं हर दिन ये सहन नहीं कर सकता।"

युवक ने कहा कि सैनिकों ने उसे अपने गांव में सभी को चेतावनी देने के लिए कहा था कि अगर किसी ने भी सुरक्षाबलों के खिलाफ किसी भी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया, तो वे ऐसे ही नतीजों का सामना करेंगे।

अभूतपूर्व प्रतिबंधों के चलते कश्मीर बीते तीन सप्ताह से भी अधिक समय से 'बंद' की स्थिति में है। पांच अगस्त को जबसे अनुच्छेद 370 के तहत इस इलाके के विशेष दर्जे को समाप्त किया गया है, सूचनाएं बहुत कम आ रही हैं।

इस क्षेत्र में दसियों हजार अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है और कथित रूप से सियासी नेताओं, कारोबारी लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित 3000 लोगों को हिरासत में लिए जाने की खबरें हैं। कई लोगों को राज्य के बाहर की जेलों में ले जाया गया है।

अधिकारियों का कहना है कि ये कार्रवाइयां एहतियात के तौर पर और क्षेत्र में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई हैं। जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य है लेकिन अब इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया है।

बीबीसी ने कई गांवों में जितने लोगों से बात की, उनका मानना है कि सुरक्षा बलों ने ऐसा ग्रामीणों को डराने के लिए किया था ताकि वे विरोध करने से डरें।

बीबीसी को दिए एक बयान में, भारतीय सेना ने कहा कि जैसा आरोप है, उसने किसी भी नागरिक के साथ मारपीट नहीं की थी।

सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने कहा, "इस तरह के कोई विशेष आरोप हमारे संज्ञान में नहीं लाए गए हैं। संभव है कि ये आरोप विरोधी तत्वों की ओर से प्रेरित हों।"

उन्होंने कहा, "नागरिकों को बचाने के लिए कदम उठाए गए थे मगर सेना की ओर से की गई कार्रवाई की वजह से कोई घायल या हताहत नहीं हुआ है।"

बीबीसी के रिपोर्टर ने कहा, “हम ऐसे कई गांवों में गए जहां अधिकांश निवासियों में अलगाववादी चरमपंथी समूहों के प्रति सहानुभूति थी और उन्होंने उन्हें 'स्वतंत्रता सेनानी' बताया।”

कश्मीर के इसी क्षेत्र में पुलवामा जिला है जहां फरवरी में हुए एक आत्मघाती हमले में 40 से ज्यादा भारतीय सैनिक मारे गए थे और इसके कारण भारत और पाकिस्तान युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे। ये वही इलाका है जहां कश्मीरी चरमपंथी बुरहान वानी साल 2016 में मारे गए थे, जिसके बाद बहुत सारे युवा और आक्रोशित कश्मीरी भारत के ख़िलाफ़ हथियारबंद बगावत में शामिल हुए थे।

इस इलाके में सेना का एक कैंप है और चरमपंथियों और समर्थकों को पकड़ने के लिए सैनिक नियमित रूप से तलाशी अभियान चलाते हैं मगर गांव वालों का कहना है कि वो दोनों ओर की कार्रवाइयों के बीच अक्सर फंस जाते हैं।

एक गांव में रिपोर्टर एक नौजवान से मिला जिन्होंने बताया कि सेना ने उसे धमकी दी थी कि यदि वो चरमपंथियों के खिलाफ मुखबिर नहीं बनता तो उन्हें फंसा दिया जाता। उनका आरोप है कि जब उन्होंने इनकार किया तो उनकी इस कदर पिटाई की गई कि दो सप्ताह बाद भी वो पीठ के बल सो नहीं सकते।

रिपोर्टर को उन्होंने कहा, "यदि ये जारी रहा तो मेरे सामने अपना घर छोड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा। वे हमें ऐसे पीटते हैं जैसे हम जानवर हों। वे हमें इंसान नहीं मानते हैं।"

एक अन्य आदमी ने रिपोर्टर को अपने घाव दिखाए और कहा कि उन्हें जमीन पर गिरा दिया गया और "15-16 सैनिकों" ने "केबल, बंदूकों, डंडों और शायद लोहे के रॉड" से बुरी तरह पीटा।

"मैं बेहोशी की अवस्था में पहुंच गया था। उन्होंने मेरी दाढ़ी इतनी जोर से खींची कि मुझे लगा कि मेरे दांत बाहर निकल आएंगे।"

उन्होंने बताया कि इस मारपीट के दौरान मौजूद रहे एक बच्चे ने बाद में उन्हें बताया कि एक सैनिक ने उनकी दाढ़ी जलाने का प्रयास किया लेकिन उन्हें एक दूसरे सैनिक ने रोक दिया।

एक और गांव में रिपोर्टर की मुलाकात एक अन्य नौजवान से हुई जिन्होंने बताया कि दो साल पहले उनका भाई हिज्बुल मुजाहिदीन में शामिल हो गया था, जो कश्मीर में लड़ने वाले बड़े समूहों में से एक है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में एक सैन्य कैंप में उनसे पूछताछ की गई। उनका आरोप है कि वहां उन्हें प्रताड़ित किया गया और उनका एक पैर टूट गया। उन्होंने बताया, "उन्होंने मेरे हाथ और पैरों को बांध दिया और उल्टा लटका दिया। दो घंटे से भी ज्यादा वक्त तक उन्होंने मेरी बुरी तरह पिटाई की।"

लेकिन सेना ने ऐसे किसी भी गलत काम से इनकार किया है।

बीबीसी को दिए अपने बयान में सेना ने कहा है कि वो "एक पेशेवर संगठन है जो मानवाधिकारों को समझता है और उसका सम्मान करता है।" सेना की ओर से ये भी कहा गया कि सभी आरोपों की "तुरंत जांच" की जा रही है।

बयान में कहा गया है कि पिछले पांच सालों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से उठाए गए 37 मामलों में से 20 मामले "बेबुनियाद" पाए गए, 15 की जांच चल रही है और "सिर्फ तीन आरोपों के मामले जांच लायक पाए गए। जो दोषी पाए जाते हैं उन्हें सजा होती है।"

हालांकि इस साल की शुरुआत में, पिछले तीन दशकों में कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन के सैकड़ों मामलों को संकलित करने वाले दो प्रमुख कश्मीरी मानवाधिकार संगठनों ने एक रिपोर्ट जारी की थी।

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने भी कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों की विधिवत और स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जांच के लिए कमीशन ऑफ इनक्वायरी की मांग की थी। इसने क्षेत्र में सुरक्षाबलों के हाथोंल कथित अत्यधिक बलप्रयोग पर 49 पेज की एक रिपोर्ट भी जारी की है।

भारत ने आरोपों और रिपोर्ट को खारिज कर दिया है।

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