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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- राम लला विराजमान को पक्षकार क्यों मानें, वकील ने दिया यह जवाब

अयोध्या में राम जन्नभूमि-बाबरी मस्जिद के जमीन विवाद पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है...
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- राम लला विराजमान को पक्षकार क्यों मानें, वकील ने दिया यह जवाब

अयोध्या में राम जन्नभूमि-बाबरी मस्जिद के जमीन विवाद पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि इस केस में पक्षों में से एक राम लला विराजमान यानी भगवान के जन्म स्थान को कैसे पक्षकार बनाया जा सकता है।

अभी तक राम लला विराजमान को माना गया पक्षकार

अयोध्या जमीन विवाद पर तीसरे दिन सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक भगवान का सवाल है, उन्हें कानूनी पक्षकार के रूप में माना गया है जो संपत्ति के स्वामी हो सकते हैं और किसी केस में पक्ष बन सकते हैं। इस दौरान रामलला विराजमान के वकील ने जन्मस्थली के पक्ष में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने दलीलें पेश कीं। बेंच ने पूछा कि एक देवता के जन्म स्थान को न्याय पाने का इच्छुक कैसे माना जाए। इस पर वकील ने कहा कि हिंदू धर्म में नदियों और सूर्य की पूजा होती है और उनके उद्गम स्थलों को पहले भी इसी तरह से देखा गया है।

पवित्र स्थान के लिए मूर्तियां आवश्यक नहीं- अधिवक्ता

बेंच ने कहा कि जहां तक हिंदू देवी-देवताओं का सवाल है, अब तक उन्हें पक्ष के तौर पर देखा गया है। जो संपत्तियों के स्वामी और किसी मुकदमे में पक्षकार बनाए जा सकते हैं। इस पर वकील के. पारासरन ने कहा कि हिंदू धर्म में किसी स्थान को पूजने योग्य पवित्र स्थान मानने के लिए मूर्तियों की आवश्यकता नहीं है।

गंगा नदी को पक्षकार माना था हाई कोर्ट ने

नदियों और सूर्य की भी पूजा की जाती है और उनके उद्गम स्थलों को न्याय पाने के इच्छुक के तौर पर देखा जाता है। वकील ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र किया। जिसमें गंगा नदी को न्यायिक इकाई मानते हुए केस दायर करने के योग्य माना गया था।

श्लोक के सहारे भी दी दलीलें

पारासरन ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने विवादित भूमि को अटैच करते वक्त रामलला विराजमान को पक्षकार नहीं बनाया था। वकील ने जन्मभूमि की महत्ता बताने के लिए संस्कृत का श्लोक 'जननी जन्मभूमि' का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है।

प्रतिपक्षी ने कहा, राम लला और निर्मोही एक-दूसरे से जुड़े

दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा की ओर से दायर याचिकाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। ऐसे में अगर एक को अनुमति दी जाती है तो दूसरी अपने आप केस में शामिल हो जाएगी।

मध्यस्थता से नहीं निकल पाया कोई नतीजा

मध्यस्थता पैनल द्वारा मामले का समाधान नहीं निकलने के बाद कोर्ट 6 अगस्त से सुनवाई कर रहा है। यह नियमित सुनवाई तब तक चलेगी, जब तक कोई नतीजा नहीं निकल जाता। मंगलवार को सुनवाई के पहले दिन निर्मोही अखाड़ा ने पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर अपना दावा किया। उसने कहा था कि पूरी विवादित भूमि पर 1934 से ही मुसलमानों को प्रवेश की मनाही है। बेंच ने पक्षकार निर्मोही अखाड़े से संबंधित 2.77 एकड़ भूमि के दस्तावेज पेश करने को कहा था। इस पर अखाड़े ने कहा कि 1982 में वहां डकैती के दौरान जिसमें सभी दस्तावेज खो गए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को इस मामले को बातचीत से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल बनाया था। इसमें पूर्व जस्टिस एफएम कलीफुल्लाह, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल थे। हालांकि, पैनल मामले को सुलझाने के लिए किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका।

हाईकोर्ट ने तीन हिस्सों में बांटी थी विवादित जमीन

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया जाए। पहला हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा रामलला विराजमान को दिया जाए।

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