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अजमेर शरीफ के दीवान ने कहा, मुस्लिम गौ मांस ना खाएं

सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्‍ती की दरगाह के दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने केंद्र सरकार से देश में गौवंश के वध और इनके मांस की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की है।
अजमेर शरीफ के दीवान ने कहा, मुस्लिम गौ मांस ना खाएं

उन्होंने मुस्लिम समाज से कहा है कि पर दो समुदायों के बीच वैमनस्य को रोका जाना चाहिए।

दीवान ने कहा कि उनके पूर्वज ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती ने यहां की संस्कृति को इस्लाम के साथ मिला कर देश में अमन कायम करने की कोशिश की थी। उसी तर्ज पर गरीब नवाज के 805 उर्स के मौके पर वह और उनका परिवार बीफ के सेवन को छोड़ने की घोषणा करता है।

उन्‍होंने कहा कि गंगा यमुना तहजीब को और बेहतर ढंग से स्‍थापित करने के लिए हिंदुस्‍तान के मुस्लिम गौ मांस खाना छोड़ दें।  

दीवान ने कहा कि मुस्लिम गौ मांस के विवाद को खत्म करने की पहल करते हुऐ गौवंश के मांस के सेवन को त्याग दें। इससे भाई चारे की मिसाल कायम होगी।

दरगाह दीवान ख्वाजा के 805 वें उर्स में पंरपरागत रूप से आयोजित होने वाली समारोह के बाद वार्षिक सभा में देश के विभिन्न दरगाहों के सज्जादगान, सूफियों, एवं धर्म प्रमुखों, को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गोवंश की प्रजातियों के मांस को लेकर मुल्क में सैकड़ों साल पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब को ठेस पहुंची है। हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारे का माहौल भी खराब हो रहा है। 

उन्होंने कहा कि इस सद्भावना को फिर से बहाल करने के लिए मुसलमानों को विवाद की जड़ को ही खत्म कर देना चाहिए। गोमांस खाना बंद कर देना चाहिए।

दरगाह दीवान ने गुजरात में गाय के वध पर उम्रकैद की सजा के निर्णय का स्वागत किया और कहा कि केन्द्र सरकार को पूरे देश में गोवंश की सभी प्रजातियों के संरक्षण के लिए यह कानून पूरे देश में लागू करना चाहिए और गाय को राष्ट्रीय पशु की घोषित कर देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अगर हिंदुओं की आस्था की प्रतीक गाय को बचाना है, तो सभी धर्म के लोगों को आगे आना चाहिए। उन्होंने लोगों से अपील की कि किसी भी तरह के जानवरों का वध नहीं करना चाहिए।

दरगाह दीवान ने इस्लामी शरीयत के हवाले से कहा कि इस्लाम में शादी दो व्यक्तियों के बीच एक सामाजिक करार माना गया है। इस करार की साफ-साफ शर्तें निकाहनामा में दर्ज होनी चाहिए। कुरान में तलाक को अति अवांछनीय बताया गया है।

दरगाह दीवान ने कहा कि एक बार में तीन तलाक का तरीका आज के समय में अप्रासंगिक ही नहीं, खुद पवित्र कुरान की भावनाओं के विपरीत भी है। जब निकाह लड़के और लड़की दोनों की रजामंदी से होता है, तो तलाक मामले में कम से कम स्त्री के साथ विस्तृत संवाद भी निश्चित तौर पर होना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि निकाह जब दोनों के परिवारों की उपस्थिति में होता है तो तलाक एकांत में क्यों?

उन्होने तीन तलाक के मुद्दे पर आगे कहा कि पैगंबर हजरत मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को तलाक सख्त नापसंद है।

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