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एक साल में आठ बड़े नक्सली हमले, 45 की मौत, इसलिए हो रही है चूक

देश के नक्सल प्रभावित 126 जिलों में से सरकार ने 44 जिलों को भले ही नक्सल मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया है।...
एक साल में आठ बड़े नक्सली हमले, 45 की मौत, इसलिए हो रही है चूक

देश के नक्सल प्रभावित 126 जिलों में से सरकार ने 44 जिलों को भले ही नक्सल मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया है। लेकिन दंतेवाड़ा, सुकमा, गढ़चिरौली जैसे इलाकों में नक्सलवाद अब भी मुंह बाए खड़ा है। 1 मई को महाराष्ट्र दिवस के दिन राज्य के गढ़चिरौली में नक्सलियों ने एक बड़े हमले को अंजाम दिया। इस दौरान सी-60 के 15 जवान शहीद हो गए। बीते एक साल की बात करें तो छिटपुट घटनाओं के अलावा यह आठवां मौका है जब देश में कोई बड़ी नक्सली वारदात हुई है। इस दौरान 41 जवानों समेत 45 लोगों की नक्सलियों ने हत्या की है। पिछले माह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक भीमा मंडावी  के काफिले पर हमला किया। हमले में विधायक मंडावी समेत 5 की मौत हो गई। एक के बाद एक हो रही ऐसी घटनाओं से अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर क्या वजह है जो इन इलाकों में नक्सली हमलों को रोक पाने में सुरक्षा तंत्र, सुरक्षाबल और सरकार नाकाम रहती है? आखिर चूक कहां हो रही है?

महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक सुबोध कुमार जायसवाल गढ़चिरौली में हुए हमले को खुफिया चूक नहीं मानते। मीडिया से उन्होंने कहा, ‘‘ इस हमले को मैं खुफिया चूक नहीं कह सकता हूं... महाराष्ट्र की पुलिस इस तरह की गतिविधियों के खिलाफ सभी जरूरी कार्रवाई करेगी।’’

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि ऐसे नक्सली हमले खुफिया तंत्र की नाकामी नहीं है। पल्लव इन वारदातों के पीछे कई वजह गिनाते हैं और नक्सली के हावी होने की बात को भी खारिज करते हैं। आउटलुक को उन्होंने बताया कि सुरक्षाबल सैकड़ों नक्सली मंसूबों को नाकाम करते हैं जिसकी कोई ज्यादा चर्चा नहीं होती। इस वार जोन में कभी एक मानवीय त्रुटि होती है और बड़ी घटना घट जाने के बाद उन पर सवाल उठने लगते हैं। पल्लव का कहना है कि नक्सली अपने अस्तित्व बचाने में लगे हैं इसलिए वे दहशत फैलाने के लिए मरने-मारने पर आमादा हैं। उन्होंने आगे कहा, “हम 365 दिन काम करते हैं। हर रोज नक्सलियों की कई योजनाओं को नाकाम करते हैं। हमारे जवान भी उनको बराबर जवाब देते हैं। लेकिन एकाक बार कोई चूक हो जाती है और ऐसी घटना सामने आ जाती है। हालांकि इन घटनाओं में कमी लाने के लिए प्रयास जारी है।”

सालभर के भीतर आठ बड़े नक्सली हमले

2018

-20 मई: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर पुलिस के वाहन को उड़ा दिया। इस घटना में 7 पुलिस जवान शहीद हो गए। 

-जून 26: झारखंड के गढ़वा में लैंडमाइन ब्‍लास्‍ट में 6 जवान शहीद हुए।

-सितंबर 23: आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम जिले में नक्सलियों ने अराकू विधानसभा सीट से विधायक किदारी सर्वेश्वर राव और पूर्व विधायक एस सोमा की गोली मार कर हत्या की।

-अक्टूबर 27: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्‍सलियों द्वारा किए गए बारूदी सुरंग विस्‍फोट में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 4 जवान शहीद हुए।

-अक्टूबर 30: दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में 2 जवानों और दूरदर्शन के एक  कैमरामैन की मौत हुई।

2019

-अप्रैल 04: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के चार जवान शहीद हो गए।

-अप्रैल 09: दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने भारतीय जनता पार्टी के विधायक भीमा मंडावी के वाहन को विस्फोट कर उड़ा दिया। इस घटना में विधायक की मौत हो गई और 4 जवान शहीद हुए।

-मई 01: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सलियों के घात लगाकर किए गए आईईडी ब्लास्ट में 15 जवान शहीद हो गए।

आईईडी ब्लास्ट बड़ी चुनौती

अभिषेक पल्लव बताते हैं कि इन क्षेत्रों में नक्सली लगातार आईईडी ब्लास्ट का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में पांच किलोमीटर के इलाके में छानबीन के लिए 50 जवान और दो से तीन घंटे का समय चाहिए। दूसरी बात अब आईईडी ब्लास्ट सड़क के इतर मैदानों में भी किए जा रहे हैं। वे आगे कहते हैं कि इस स्थिति में यदि कोई व्यक्ति तार लेकर घूम रहा है तो हम उनको नक्सली तो नहीं कह सकते। वह व्यक्ति इसे अपने घरेलू इस्तेमाल में ले जाने की बात कह सकता है। अगर उनको पकड़ते हैं तो हम पर इल्जाम लगाया जाता है कि पुलिस ग्रामीणों को परेशान करती है। इस चीज का नक्सली फायदा उठाते हैं। हालांकि एसपी पल्लव यह भी कहते हैं कि आईईडी ब्लास्ट जैसे हमलों को नाकाम करने की दिशा में कोशिश की जा रही है।

नक्सली उठाते हैं इस चीज का फायदा

अभिषेक पल्लव ने बताया,  “नक्सली गलती करते हैं तो हम उन्हें गिरफ्तार कर लाते हैं। लेकिन वे तो हमारे निहत्थे पुलिस वालों को भी नहीं छोड़ते।” वे आगे कहते हैं कि इस युद्ध के मैदान में नक्सलियों के लिए कोई कायदा नहीं है। वे किसी को भी मार सकते हैं। लेकिन पुलिस या सुरक्षाबलों को मानवाधिकार का भी ख्याल रखना होता है कि उनकी गोली से कोई बेगुनाह न मारा जाए। ग्रामीण और नक्सलियों में पहचान करना भी यहां हर तरह से चुनौती है। नक्सली इसका भी फायदा उठाते हैं।

अंतरराज्य ही नहीं अंतरजिला भी चुनौती

गढ़चिरौली की बात करें तो यह जिला महाराष्ट्र के दक्षिणपूर्वी कोने में स्थित है। पूर्व में इस जिले की सीमा छत्तीसगढ़ और दक्षिण और दक्षिण पश्चिम में तेलंगाना से लगी है। वैसे ही छत्तीसगढ़ का सुकमा जिला छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग का जिला है और इसका पूर्वी भाग उड़ीसा से मिलता है दक्षिण पश्चिमी और दक्षिणी भाग क्रमश तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से मिलते है। ऐसे में सरकार और पुलिस को इनके खिलाफ अभियान छेड़ने में दिक्कत होती है। एसपी अभिषेक पल्लव के मुताबिक, पुलिस अभियान छेड़ने में सिर्फ राज्य की बाधा नहीं आती बल्कि अलग जिला भी आड़े आते रहता है। वहीं नक्सलियों के लिए यहां का घना जंगल मददगार होता है और वे तीनों राज्यो में मनमाफिक अपना डेरा बदलते रहते हैं। तीन राज्यों की सीमाओं से मिलता है इसलिए नक्सलियों को वारदात को अंजाम देने के बाद भागने में आसानी होती है।

नक्सलियों का बड़ा हथियार- गुरिल्ला वार

नक्सल समस्या पर छत्तीसगढ़ सरकार से जुड़े एक बड़े अधिकारी का कहना है कि खासकर बस्तर जैसे इलाकों में नक्सली गुरिल्ला वार कर रहे हैं। महीनों तक वे खामोश रहते हैं और अचानक वक्त मिलते ही घात लगाकर हमला बोल देते हैं। अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि यहां पुलिस के सामने हर रोज चुनौती रहती है। लेकिन नक्सली ताक में रहते हैं। जैसे उन्हें कोई मानवीय चूक दिखाई देती वे हमला बोल देते हैं। उनके मुताबिक, सरकार का खुफिया तंत्र पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत जरूर हुआ है लेकिन अभी भी अंदर के इलाकों में दखल बढ़ाने की जरूरत है।

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