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किसान आंदोलन के 200 दिन पूरे: अब भाजपा-जजपा नेताओं का 'बहिष्कार' नहीं करेंगे हरियाणा के किसान, बदली रणनीति

केंद्र के तीन कृषि कानूनों और एमएसपी को कानूनी गारंटी की बात आगे बढ़ाने के लिए हरियाणा के किसान...
किसान आंदोलन के 200 दिन पूरे: अब भाजपा-जजपा नेताओं का 'बहिष्कार' नहीं करेंगे हरियाणा के किसान, बदली रणनीति

केंद्र के तीन कृषि कानूनों और एमएसपी को कानूनी गारंटी की बात आगे बढ़ाने के लिए हरियाणा के किसान संगठनों ने एलान किया है कि वे भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के नेताओं का निजी कार्यक्रमों में बहिष्कार नहीं करेंगे। जनवरी से इन नेतों के बहिष्कार के चलते कई बार सरकार और किसानों के बीच सीधे टकराव की घटनाएं हुई जिनसे केंद्र से आगे की बातचीत भी बंद हो गई पर सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध जारी है। इस बीच पंजाब व हरियाणा में कई जगहों पर किसान संगठनों ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के नेताओं का सामाजिक बहिष्कार करना शुरु कर दिया था। पंजाब में तो भाजपा के अबोहर से विधायक अरुण नारंग को सार्वजनिक स्थल पर र्निवस्त्र कर दिया गया था। इससे पंजाब में भाजपा और हरियाणा में भाजपा जजपा गठबंधन सरकार के कई नेता लंबे समय से मुश्किलों का सामना कर रहे थे। अब किसान नेताओं ने अपने दिशा निर्देश बदलने शुरु कर दिए हैं। जिससे बीजेपी और उनके सहयोगी दलों के नेताओं के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार और आंदोलन में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। 


किसान नेताओं ने नए दिशा-निर्देश तहत अब बीजेपी और उनके सहयोगी दलों के नेताओं के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार आधिकारिक कार्यक्रम के ही हाेंगे, इसमें सरकारी और राजनीतिक कार्यक्रम ही  शामिल होंगे। नताओं के व्यक्तिगत या निजी कार्यक्रम शादियों और अंतिम संस्कार में भाग लेने वाले नेताओं को बहिष्कार नहीं किया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नौ सदस्यों में से एक योगेंद्र यादव ने कहा है कि किसानों की असली लड़ाई दिल्ली में केंद्र सरकार के खिलाफ है। उन्हें बार-बार छोटी सरकारों से उलझने की जरूरत नहीं है। बीजेपी और उसके सहयोगियों के विधायकों, सांसदों और अन्य प्रतिनिधियों के खिलाफ उनका विरोध हरियाणा और अन्य राज्यों में जारी रहेगा, लेकिन यह विरोध केवल सरकारी और राजनीतिक कार्यों के लिए होगा, निजी आयोजनों के लिए नहीं होगा।


कुछ दिन पहले जींद से 20 किलोमीटर दूर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के निर्वाचन क्षेत्र उचांनाकलां से जींद जिला मुख्यालय तक पीछा करते हुए किसानों के भारी विरोध का सामना दुष्यंत को करना पड़ा। किसानों के विरोध के चलते दुष्यंत अपने निवार्चन क्षेत्र में एक कार्यकर्ता के यहां निजी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाए। दुष्यंत को ऐसा ही विरोध अपने गृह क्षेत्र सिरसा में भी करना पड़ा जब किसानों ने उनके निवास का घेराव कर उन्हें घर से नहीं निकलने दिया। ऐसे ही घेरावों का पंजाब में भी भाजपा नेताओं को सामना करना पड़ा।

टोहाना से जजपा के विधायक देवेंद्र बबली को अपने गृह नगर के रास्ते किसानों से टकराव का सामना करना पड़ा। कार्रवाई में तीन दिन तक तीन किसानों को पुलिस ने हिरासत में रखा। विरोध में  किसान नेता राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढ़ूनी और योगेंद्र यादव समेत कई किसान नेताओं ने रातभर टोहाना थाने के बाहर प्रदर्शन किए। विरोध प्रदर्शन के दबाव मेंं तीन दिन बाद रिहाई और मुकद्दमे वापस लिए जाने पर किसानों ने दिल्ली बॉर्डर के लिए कूच किया।

इंटेलीजेंस सूत्रों मुताबिक दिल्ली से सटे राज्य के सिंघु,कुंडली और  टिकरी बॉर्डर पर किसानों का पहले जैसा जमावड़ा रोकने के लिए सत्तारुढ़ दल के नेताओं के हिसार,टोहाना,अंबाला,शाहबाद जैसे भीतरी इलाकों सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए ताकि टकराव के हालात में किसानों को पुलिस मुकदमों में उलझा दिल्ली की ओर कूच करने से रोका जा सके।

 सरकार द्वारा किसानों को रोकने की कोशिशों के बावजूद हरियाणा के किसानों का दिल्ली की ओर कूच बढ़ा है। भारतीय किसान यूनियन की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी के मुताबिक 15 जून से होने वाली धान की बुआई के बाद प्रदेश के हजाराें किसानों का जमावड़ा दिल्ली की सीमाओं पर होगा। जब तक कानून रद्द नहीं हो जाते तब तक आंदोलन जारी रहेगा। सरकार से अगले दौर की वार्ता तभी संभव है जब सरकार कानूनों को रद्द करने काे तैयार नहीं हो जाती।

 किसान नेता टेकराम कंडेला का कहना है कि किसानों के सरकार से टकराव और  दिल्ली कूच की नौबत ही न आती यदि केंद्र सरकार किसानों से बातचीत जारी रखती। सरकार के रुख को देखते हुए किसानों में बढ़ी नाराजगी से सरकार और किसानों के बीच टकराव के हालात बढ़े हैं। नाराजगी का बड़ा कारण सरकार से लंबे समय से बातचीत नहीं होना है। इसे देखते हुए किसान नेताओं ने आंदोलन को तेज करने के लिए फिर से कड़े फैसले लेने शुरू कर दिए हैं।

किसानों व सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत के बाद भी कोई हल अभी तक नहीं निकला है। किसान संगठनों और सरकार के बीच आखिरी बैठक 22 जनवरी को हुई थी। इसके बाद से बातचीत बंद है। बातचीत आगे बढ़ाने के लिए संयुक्त किसान मौर्चें द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र का भी कोई जवाब न आने से किसानों में निराशा है।सबके मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के मन की बात सुनने काे राजी नहीं हैं। न सरकार कृषि कानूनों को लेकर किसानों की आंशका दूर कर पाई है और न ही पक्का समाधान दे पाई है। तीनों कृषि कानून निरस्त करने की मांग के साथ किसान इतना ही चाहते हैं कि सरकार उन्हें गेहूं,धान समेत 23 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की लिखित गारंटी के लिए एक और कानून संसद में पारित करे।

कृषि अर्थशास्त्री एंव सीएसीपी के पूर्व चेयरमैन,प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार रहे डा.सरदारा सिंह जोहल का कहना है कि पिछले 6 महीने से शाांत किसानों ने केंद्र सरकार को पूरा मौका दिया पर इस बीच सरकार ने आंदाेलन को खत्म मान बातचीत आगे बढ़ाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की। 

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