Advertisement

कोविड-19 वैक्सीन: टीका आया विवाद साथ लाया, क्या मंजूरी में जल्दीबाजी हुई

बीते साल जिस कोरोना की वैक्सीन का सबको इंतजार था, उसका आगाज भारत में विवादों और कोविड-19 वायरस के नए...
कोविड-19 वैक्सीन: टीका आया विवाद साथ लाया, क्या मंजूरी में जल्दीबाजी हुई

बीते साल जिस कोरोना की वैक्सीन का सबको इंतजार था, उसका आगाज भारत में विवादों और कोविड-19 वायरस के नए स्ट्रेन (6 जनवरी तक 71 लोग संक्रमण के शिकार हो चुके हैं) के साथ हुआ है। जहां तक विवाद की बात है तो वैक्सीन की मंजूरी प्रक्रिया पर कई वैक्सीन विशेषज्ञों ने सवाल उठा दिए हैं। उनका कहना है कि सबसे अहम तीसरे चरण के परीक्षण के आंकड़ों को जारी किए बिना ही ड्रग नियामक ने वैक्सीन के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है, जो लोगों के लिए घातक हो सकती है। यह विवाद इतना बढ़ गया है कि इसको लेकर वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां भी आपस में भिड़ गई। किसी ने दूसरी की वैक्सीन को "पानी" बता दिया तो किसी ने कहा कि हम 200 फीसदी ईमानदार हैं। इस विवाद में रही-सही कसर नेताओं ने पूरी कर दी है। विपक्ष ने जहां मंजूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए तो सत्ता पक्ष ने कहा कि विपक्ष ओछी राजनीति छोड़कर वैज्ञानिकों के काम की प्रशंसा करे।

दिल्ली में कोल्ड चेन का निरिक्षण करते स्वास्थ्यत मंत्री डॉ. हर्षवर्धन

दिल्ली में कोल्ड चेन का निरिक्षण करते स्वास्‍थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन 

असल में देश में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआइ) ने रविवार (3 जनवरी 2021) को कोविशील्ड और कोवैक्सीन के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी है। कोविशील्ड जहां ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका का भारतीय संस्करण है, वहीं कोवैक्सीन पूरी तरह भारत की अपनी वैक्सीन है, जिसे ‘स्वदेशी वैक्सीन’ भी कहा जा रहा है।

कोविशील्ड को भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआइआइ) ने विकसित किया है। कोवैक्सीन को भारत बॉयोटेक कंपनी ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के साथ मिलकर बनाया है। सारा विवाद तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रॉयल के आंकड़ों का है।

किसी वैक्सीन के मानव इस्तेमाल में उसके तीसरे चरण के आंकड़े काफी अहम होते हैं, क्योंकि इस चरण में उसका परीक्षण बड़ी संख्या में लोगों पर परीक्षण किया जाता है। इसी चरण में वैक्सीन की कारगर होने और उसके साइड इफेक्ट का सही आकलन होता है। दुनिया में अभी तक मंजूर हुई प्रमुख वैक्सीन में फाइजर बाॅयोएनटेक, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका और मॉडर्ना कंपनियों के तीसरे चरण के ट्रायल के आंकड़े हैं।

जहां तक भारत की बात है, उसने चीन और रूस की तरह बिना तीसरे चरण के आंकड़े सार्वजनिक किए ही वैक्सीन को मंजूरी दी है। इसमें सबसे ज्यादा सवाल भारत बॉयोटेक की वैक्सीन कोवैक्सीन को लेकर उठ रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत बॉयोटेक के तीसरे चरण के परीक्षण अभी चल रहे हैं और कंपनी का दावा है कि अगले एक हफ्ते में उसके आंकड़े सार्वजनिक कर दिए जाएंगे। कोविशील्ड ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन है इसलिए उसके तीसरे चरण के वैश्विक आंकड़े उपलब्ध हैं। यह 70 फीसदी तक कारगर बताई गई है। हालांकि उसके द्वारा भारतीय लोगों पर किए गए तीसरे चरण के परीक्षण के आंकड़े अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं।

ड्राइ रन के दौरान लखनऊ में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ

ड्राइ रन के दौरान लखनऊ में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ 

मशहूर वैक्सीन वैज्ञानिक और क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. गगनदीप कंग ने एक साक्षात्कार में कोवैक्सीन की मंजूरी पर सीधे तौर पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है, “मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि भारत बॉयोटेक की वैक्सीन को कैसे मंजूरी मिल गई। ऐसा लगता है कि सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बॉयोटेक की वैक्सीन को एक ही तराजू पर तौला गया है। हमारे पास भारत बॉयोटेक के वैक्सीन की के बारे में कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जबकि पूरी दुनिया में प्रमुख वैक्सीन कंपनियों ने अपने तीसरे चरण के आंकड़े प्रस्तुत किए हैं।”

गगनदीप की तरह ही ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क ने भी डीसीजीआइ के इस कदम पर सख्त आपत्ति जताई है। उसने सीरम इंस्टीट्यूट की कोवैक्सीन और भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन की मंजूरी पर आश्चर्य जताते हुए सवाल खड़े किए हैं। उनके अनुसार, “एसआइआइ की वैक्सीन के दूसरे चरण और तीसरे चरण के अंतरिम आंकड़े अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। इसी तरह भारत बॉयोटेक की वैक्सीन का पहले चरण और दूसरे चरण में केवल 755 वॉलंटियर्स के ऊपर परीक्षण किया गया है। यह समझ में नहीं आता है कि किस वैज्ञानिक आधार पर वैक्सीन की मंजूरी दी गई है। यह तो पूरी तरह से सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) द्वारा 21 सितंबर 2020 को कोविड-19 वैक्सीन पर जारी की गई ड्रॉफ्ट रेग्युलेटरी गाइडलाइन का उल्लंघन है।

दिल्ली में राज्य के स्वास्थ्यख मंत्री सत्येंद्र जैन

दिल्ली में राज्य के स्वास्‍थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन

जल्दीबाजी में की गई मंजूरी की प्रक्रिया जवाब से ज्यादा सवाल छोड़ती है। ऐसे में हमारी मांग है कि डीसीजीआइ, कोवैक्सीन को दी गई मंजूरी पर दोबारा विचार करे। कोविशील्ड की  मंजूरी में भी यह साफ दिखता है कि भारतीय लोगों पर वैक्सीन को होने वाले असर को नजरअंदाज किया गया है, क्योंकि उसके आंकड़े अभी तक सार्वजनिक नहीं हुए हैं।”

विशेषज्ञों के अलावा राजनैतिक नेताओं ने भी वैक्सीन की मंजूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट के जरिए स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन से यह सवाल पूछा कि कोवैक्सीन का अभी तक तीसरे चरण का ट्रायल नहीं हुआ है, उसकी बिना सोच-समझे अनुमति दी गई है, जो खतरनाक हो सकता है। ऐसे में डॉक्टर हर्षवर्धन कृपया इस बात को साफ कीजिए। सभी परीक्षण होने तक इसके इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए। तब तक भारत एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के साथ शुरुआत कर सकता है।” थरूर के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मंजूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए।

वैक्सीन पर उठते सवालों का जवाब देने खुद स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन सामने आए. उन्होंने  कई ट्वीट के जरिए कहा, “इस तरह के गंभीर मुद्दे का राजनीतिकरण करना किसी के लिए भी शर्मनाक है। श्री शशि थरूर, श्री अखिलेश यादव और श्री जयराम रमेश, कोविड-19 वैक्सीन को अनुमति देने के लिए वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत बने प्रोटोकॉल का पालन किया गया है, इसको बदनाम न करें।” उन्होंने यह भी लिखा, “पूरी दुनिया में वैक्सीन को एनकोडिंग स्पाइक प्रोटीन के आधार पर अनुमति दी जा रही है, जिसका असर 90 फीसदी तक है। वही क्षमता कोवैक्सिन में भी है।” हालांकि डॉ. हर्षवर्धन ने तीसरे चरण के उन आंकड़ों के बारे में बात नहीं की, जिसे सार्वजनिक किए जाने की मांग वैक्सीन विशेषज्ञ कर रहे हैं।

इसके बाद उन्होंने यह भी कहा, “जो अफवाहें फैला रहे हैं, वे यह जान लें कि क्लीनिकल ट्रॉयल मोड में कोवैक्सीन को आपात मंजूरी शर्तों के आधार पर दी गई है, जो कोविशील्ड को मिली मंजूरी से बिल्कुल अलग है। कोवैक्सीन ट्रॉयल मोड में इस्तेमाल होगी।”

इन सवालों के बीच ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया डॉ. वी.जी.सोमानी ने भी वैक्सीन की मंजूरी संबंधी बातें सामने रखी हैं। उनके अनुसार सीरम इंस्टीट्यूट ने 18 साल की उम्र के लोगों के दुनिया के दूसरे देशों में 23745 वॉलंटियर्स पर किए गए परीक्षण के आंकड़े पेश किए हैं। उसमें वैक्सीन 70.42 फीसदी तक कारगर बताई गई है। इसके अलावा कंपनी को भारत में 1600 वॉलंटियर्स पर दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण के लिए मंजूरी दी गई है। इसी तरह भारत बॉयोटेक की वैक्सीन का पहले और दूसरे चरण में करीब 800 लोगों पर परीक्षण किया गया है, जो पूरी तरह से सुरक्षित है। तीसरे चरण का परीक्षण 25,800 वॉलंटियर्स पर किया जा रहा है। इसमें से 22500 लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। और अभी तक के आंकड़ों के अनुसार पूरी तरह से सुरक्षित है।

इस बीच मामले को संभालने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया भी सामने आए। इस विवाद पर उनका कहना है, “भारत बॉयोटेक को मंजूरी केवल आपात इस्तेमाल के लिए दी गई है, जो एक बैकअप के रूप में काम करेगी।” इसका मतलब यह है कि भारत बॉयोटेक की वैक्सीन को शुरू में नहीं लगाया जाएगा। अगर देश में संक्रमण के मामले बढ़ते हैं और कोविशील्ड की उपलब्धता मांग के अनुसार नहीं हो पाती है, तो कोवैक्सीन को लगाया जाएगा। गुलेरिया ने उन बातों को भी खारिज कर दिया है, जिसमें यह कहा गया था कि वैक्सीन को मंजूरी देने के लिए जरूरी प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया गया है।

हालांकि इन सफाइयों के बाद भी विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है और इस लड़ाई में अब वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां भी कूद गई हैं। शुरुआत सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने की। उन्होंने एक इंटरव्यू में सिर्फ ऑक्सफोर्ड, मॉर्डना और फाइजर की वैक्सीन को सुरक्षित बताया और अन्य को पानी की तरह बताया।

हालांकि अदार पूनावाला ने अपने बयान में भारत बॉयोटेक की वैक्सीन कोवैक्सीन पर सीधा हमला नहीं किया था, लेकिन उनका बयान भारत बॉयोटेक के सीएमडी कृष्णा इल्ला को अखर गया। उन्होंने बकायदा प्रेस कांन्फ्रेंस करके कहा कि उन्हें ऐसे बयान की उम्मीद नहीं थी। हमने अपना काम ईमानदारी से किया है, लेकिन कोई हमारी वैक्सीन को पानी कहे तो बिल्कुल मंजूर नहीं होगा। हम भी वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपना काम 200 फीसदी ईमानदारी से किया है। एल्ला ने इसके अलावा कोवैक्सीन के आपात इस्तेमाल की मंजूरी पर उठ रहे सवालों पर भी सफाई दी है।

उनका कहना है, “केंद्र सरकार ने 2019 में बनाए गए नियमों के आधार पर कोवैक्सीन के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी है। यही नहीं, अमेरिका ने ऐसी मंजूरी उस कंपनी को दी है, जो टीके को विकसित करने के आंकड़ों में भरोसेमंद है। जहां तक भारत बॉयोटेक की बात है, तो वह दुनिया की पहली कंपनी है, जिसने जीका वायरस की पहचान की थी और उसका टीका विकसित किया था। इसी तरह हमने चिकनगुनिया का भी टीका विकसित किया है। ऐसे में यह कहना कि हम पारदर्शी नहीं हैं, यह उचित नही है।”

पूरे मामलों को संभालने के बीच राजनीति भी गरमा गई है। कांग्रेस के कोवैक्सीन को मंजूरी देने की प्रक्रिया पर सवाल उठाने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी सामने आ गए। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, “कांग्रेस और विपक्ष को किसी भी भारतीय पर गर्व नहीं है। उन्हें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि कोविड-19 वैक्सीन पर उनके झूठ का इस्तेमाल निहित स्वार्थी समूह अपने एजेंडा के लिए कैसे करेंगे। भारत के लोग इस तरह की राजनीति को खारिज करते रहे हैं और भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे। “

हालांकि बढ़ते विवाद के बीच अब दोनों कंपनियों ने सुलह का रास्ता अख्तियार किया है। मंगलवार दोपहर (5 जनवरी 2021) को दोनों कंपनियों ने साझा बयान जारी कर सफाई दी है। उनका कहना है, “अब जब भारत में दो कोरोना वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई है, तो हमारा फोकस वैक्सीन बनाने, उसकी आपूर्ति और वितरण पर है। हमारे संस्थान देशहित में पहले की तरह इस काम को आगे भी करते रहेंगे।”

इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल मेट्रोलॉजी कॉनक्लेव में कहा, “भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने जा रहा है। इसके लिए देश के हर नागरिक को अपने वैज्ञानिकों और टेक्निशियनों के योगदान पर गर्व है। भारत के वैज्ञानिकों ने एक नहीं, बल्कि दो-दो ‘मेड इन इंडिया’ कोरोना वैक्सीन तैयार कर ली है।”

मुफ्त वैक्सीन का कन्फ्यूजन

सरकार की तरफ से इस बात का ऐलान कर दिया गया है कि अगले एक-दो हफ्ते में वैक्सीन लगाने का काम शुरू हो जाएगा। ऐसे में, सबसे पहला सवाल यही उठता है कि उसकी कीमत क्या होगी और किसे पहले लगाई जाएगी। लेकिन इस सवाल का सही जवाब मिलने से पहले ही कन्फ्यूजन खड़ा हो गया। असल में दिल्ली में ड्राई रन का परीक्षण करने के दौरान 3 जनवरी को एक सवाल के जवाब में डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, “सिर्फ दिल्ली में क्यों पूरे देश में मुफ्त में वैक्सीन लगाई जाएगी।” लेकिन बाद में इस बयान पर उन्होंने ट्वीट के जरिए सफाई दी। उनका कहना था, “पहले चरण में देशभर में तीन करोड़ लोगों को मुफ्त वैक्सीन दी जाएगी, इसमें एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मी और दो करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स शामिल हैं। प्राथमिकता सूची में बाकी बचे 27 करोड़ लाभार्थियों को जुलाई तक कैसे वैक्सीन लगाई जाएगी, इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है।”

जाहिर है, स्वास्थ्य मंत्री के इस बयान से देश के लोगों को निराशा हुई। इसके पहले दिल्ली सरकार और बिहार की सरकारें इस बात का ऐलान कर चुकी हैं कि उनके राज्य के लोगों को मुफ्त में वैक्सीन लगाई जाएगी। बाकी राज्यों में क्या होगा, इस पर न तो केंद्र सरकार ने रुख साफ किया और न ही राज्यों की सरकार ने कोई रुख साफ किया है। लेकिन इस बीच वैक्सीन लगाने के लिए सरकारों में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार किया जा रहा है। इसके लिए देश के 116 जिलों में ड्राई रन भी किया जा चुका है। इसके अलावा जरूरी उपकरण भी मुहैया कराए जा चुके हैं और कोल्ड चेन सिस्टम को भी तैयार कर लिया गया है।

नेशनल कोल्ड चेन मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम के मुताबिक, इस वक्त देश में 28,932 कोल्ड चेन केंद्र हैं। इसी तरह आइस लाइंड रेफ्रिजरेटर की संख्या 44226 है (6 दिसंबर तक के आंकड़े)। इन्हीं में वैक्सीन रखी जाएगी। जहां तक राज्यों की बात है तो  महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 3257 कोल्ड चेन केंद्र और 4408 आइएलआर हैं। राजस्थान में 2405, तमिलनाडु में 2599, उत्तर प्रदेश में 1308, मध्य प्रदेश में 1214, कर्नाटक में 1870, दिल्ली में 629 और गुजरात में 2291 कोल्ड चेन केंद्र हैं।

सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि पहले चरण में 3 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने के बाद ही बाकी बचे 27 करोड़ लोगों को जुलाई तक वैक्सीन लगाई जाएगी। इन 27 करोड़ लोगों में से सबसे पहले 50 साल की उम्र से ज्यादा के लोगों और गंभीर रूप से बीमार लोगों को वैक्सीन उपलब्ध होगी। बाकी 100 करोड़ लोगों को वैक्सीन कब और कैसे दी जाएगी, इसकी अभी जानकारी सरकार की तरफ से नहीं दी गई है।

नए स्ट्रेन का खतरा

पूरी दुनिया में जब खुशी जता रही है कि अब दुनिया के कई देशों में वैक्सीन उपबल्ध हो गई है, तो कोरोना का डर भी खत्म हो जाएगा, लेकिन कोरोना के नए स्ट्रेन इस खुशी को काफूर कर दिया है। ब्रिटेन से शुरू हुआ कोरोना का नया स्ट्रेन भारत, अमेरिका, यूरोप सहित दुनिया के कई प्रमुख देशों में फैल गया है। हालात यह हैं कि ब्रिटेन को मार्च 2020 के बाद का सबसे सख्त लॉकडाउन लगाना पड़ा है। ब्रिटेन में छह हफ्ते के लिए पूरी तरह से लॉकडाउन लगा दिया गया है। भारत में भी 5 जनवरी तक 58 लोग नए स्ट्रेन के शिकार हो चुके हैं। बढ़ते खतरे को देखते हुए ब्रिटेन से आने वाली फ्लाइट्स को प्रतिबंधित कर दिया गया थ लेकिन उसे 8 जनवरी से फिर हटा लिया गया। इस बीच स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि नए स्ट्रेन से घबराने की जरूरत नहीं है, सरकार सभी जरूर एहतियात कर रही है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 9-22 दिसंबर के बीच जितने लोग ब्रिटेन से भारत आए हैं, उनकी जांच की गई है। जिनके अंदर कोरोना के लक्षण पाए गए हैं, उनकी जीनोम सिक्वेंसिंग की गई। साथ ही उनके संपर्क में आए लोगों को भी आइसोलेट किया गया है। सरकार का दावा है कि नए सिंड्रोम को लेकर अभी घबराने वाली स्थिति नहीं है। हालांकि दुनिया में जो मामले आए हैं, उससे विशेषज्ञ यह दावा कर रहे हैं कि नया स्ट्रेन 70 फीसदी तक ज्यादा खतरनाक है। सबसे अहम चिंता की बात यह है कि अभी तक दुनिया के वैज्ञानिक यह नहीं बता पाए हैं कि कोरोना की वैक्सीन नए स्ट्रेन पर प्रभावी है या नहीं। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों की चुनौती न केवल सुचारू रूप से टीकाकरण करने की है बल्कि देश में नए स्ट्रेन के संक्रमण को रोकने की भी है।

दूसरी प्रमुख वैक्सीन की स्थिति

1. कंपनी जायडस कैडिला की कोरोना वैक्सीन को डीएनए प्लेटफॉर्म पर बनाया जा रहा है। डीसीजीआइ ने कैडिला की वैक्सीन को फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दे दी है। इसकी अंतिम मंजूरी में कम से कम 2-3 महीने का वक्त लगेगा

2. डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरी रूस की स्पूतनिक वी को विकसित कर रही है। भारत में उसका दूसरे और तीसरे चरण का परीक्षण किया जा रहा है, जबकि रूस में इस वैक्सीन का इस्तेमाल शुरू हो चुका है

3. अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स ने एनवीएक्स-सीओवी वैक्सीन बनाई है। इसके तीसरे चरण के परीक्षण अमेरिका और मैक्सिको में पिछले महीने ही शुरू हुए हैं। भारत में इसका परीक्षण शुरू करने पर विचार हो रहा है

4. भारत बॉयोटेक इस समय दो नोजल वैक्सीन बना रही है। इनमें एक वैक्सीन यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के स्कूल ऑफ मेडिसिन के साथ मिलकर बना रही है और दूसरी वैक्सीन अमेरिकी कंपनी फ्लूजेन और यूनिवर्सिटी ऑफ विसकॉन्सिन-मैडिसन के साथ बना रही है। इन वैक्सीन के पहले चरण के परीक्षण जल्द शुरू हो सकते हैं

वैक्सीन रजिस्ट्रेशन और प्रक्रिया

वैक्सीन लगवाना ऐच्छिक होगा, हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह सलाह दी है कि बीमारी से रक्षा के लिए वैक्सीन जरूर लगवाएं

पहले चरण में जिन लोगों को वैक्सीन लगाई जाएगी, उन्हें मोबाइल नंबर के जरिए सूचित किया जाएगा

वैक्सीन लगवाने के लिए पंजीकरण करवाना जरूरी होगा। इसके लिए राज्यों ने पहले चरण के योग्य लोगों का डाटा तैयार करना शुरू कर दिया है

रजिस्ट्रेशन के लिए आधार, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, जॉब कार्ड, पेंशन कार्ड, श्रम मंत्रालय द्वारा जारी स्वास्थ्य बीमा कार्ड, बैंक और पोस्ट ऑफिस की पासबुक और केंद्र, राज्य और पीएसयू कंपनियों के आइडी कार्ड जैसे दस्तावेज मान्य होंगे

लाभार्थी का रजिस्ट्रेशन होने के बाद, उसके पास वैक्सीन लगवाने की तिथि, समय और जगह की सूचना उसके मोबाइल नंबर पर दी जाएगी

जब लाभार्थी को वैक्सीन के सभी डोज लग जाएंगे, तो क्यू आर कोड आधारित एक सर्टिफिकेट उसके मोबाइल नंबर पर जारी कर दिया जाएगा

वैक्सीन की मंजूरी प्रक्रिया पर विपक्ष ने उठाए सवाल। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इसे खतरनाक बताया तो सपा के अखिलेश यादव ने सरकार की मंशा पर शक जताया

 शशि थरूर

------------

सिर्फ ऑक्सफोर्ड, मॉर्डना और फाइजर की वैक्सीन सुरक्षित है, बाकी सभी तो पानी की तरह हैं

अदार पूनावाला

अदार पूनावाला, सीईओ, सीरम इंस्टीट्यूट

--------

हमने अपना काम ईमानदारी से किया है। कोई हमारी वैक्सीन को पानी कहे तो बिल्कुल मंजूर नहीं होगा

कृष्णा इल्ला

कृष्णा इल्ला, सीएमडी, भारत बॉयोटेक

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement