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इंदौर बनाम पटना: दो शहरों की सफाई दास्तान

"स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 में इंदौर का चौका, तो पटना को मिला सबसे गंदे शहर का तमगा" केंद्रीय शहरी...
इंदौर बनाम पटना: दो शहरों की सफाई दास्तान

"स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 में इंदौर का चौका, तो पटना को मिला सबसे गंदे शहर का तमगा"

केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बीते महीने अगस्त में जब स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 के परिणामों की घोषणा की, एक बार फिर दस लाख से अधिक आबादी वाला शहर इंदौर इसमें बाजी मार कर ले गया। मध्य प्रदेश के शहर इंदौर की यह चौथी जीत है। लेकिन बिहार की राजधानी पटना भी कुछ कम नहीं है। इस बार ‘सुशासन’ बाबू की राजधानी ने गंदगी वाले शहर में सर्वोच्च स्थान पाया है। पटना को सबसे गंदे शहर का तमगा हासिल हुआ। इंदौर में सफाई की स्थिति का अंदाजा हरदीप सिंह पुरी के एक वकतव्य से लगाया जा सकता है। इंदौर को इस उपलब्धि के लिए बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “जब मैं थ्रीआर कॉन्फ्रेंस के लिए इंदौर आया था, तब एक जापानी मित्र ने बताया कि वे पिछली शाम को ही पहुंच गए थे। मैंने पूछा, शाम को क्या आपने क्या किया। उन्होंने कहा, पूरे शहर में घूमकर कचरा ढूंढ़ा पर मिला नहीं।”  

2016 से पहले इंदौर कचरे के ढेर पर बैठा नजर आता था। कचरे के निष्पादन और निपटारे की समुचित व्यवस्था नहीं थी। लेकिन इन चार सालों में यहां के राजनीतिक, प्रशासनिक और जनभागीदारी के तालमेल ने पूरे देश में इसे एक आदर्श मॉडल की तरह पेश किया। कचरा प्रबंधन की विशेषज्ञ स्वाति सिंह समब्याल कहती हैं, “हमारे शहरों में कई तरह की खामियां हैं। शहर को निखारने के लिए प्रभावी कचरा प्रबंधन की जरूरत है। इसमें लोगों की आदतों को बदलने के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति, दोनों महत्वपूर्ण हैं। किसी शहर को बदलने के लिए इच्छाशक्ति सबसे आवश्यक है। इंदौर इसी इच्छाशक्ति का उदाहरण है। यह सबसे साफ शहर की श्रेणी में इसलिए कि यहां के लोगों की इच्छा है कि वे अपने शहर को साफ रखें। इसके लिए हम सिर्फ प्रशासन को दोष नहीं दे सकते।”

2015 से मालिनी लक्ष्मण गौड़ इंदौर की मेयर रही हैं। इसी साल फरवरी में उनका कार्यकाल समाप्त हुआ है। वो फिलहाल इंदौर-4 से विधायक हैं। मालिनी कहती हैं, “स्वच्छता का ये सफर आसान नहीं था। जब मैं मेयर बनी थी, तो जिस कंपनी के जिम्मे शहर की साफ-सफाई था वो लापरवाही करती थी। इसके बाद दूसरी कंपनी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। लेकिन इस जीत का पूरा श्रेय जनता और सफाई कर्मचारियों को जाता है। उनका समर्थन और दिन-रात की मेहनत ने चौथी बार इंदौर को नंबर वन का ताज दिया है।”

इंदौर के उदाहरण को देखें तो लगता है, पटना के पिछड़ जाने के कई कारण हैं। एक बड़ा कारण तो बजट ही है। इंदौर निगम का सालाना बजट पांच हजार करोड़ से अधिक का है। इसके मुकाबले पटना नगर निगम के पास पर्याप्त पैसा नहीं है। हालांकि इस बार पटना नगर निगम ने भी चार हजार करोड़ रुपये के बजट का प्रस्ताव रखा है। 3 सालों से मेयर सीता साहू कहती हैं, “निगम से टैक्स के तौर पर भी वसूली नहीं हो पाती है। राज्य सरकार भी इस पर ध्यान नहीं देती। कम बजट में भी हम लोग प्रयास करते हैं। अभी तो प्रस्तावित बजट कर्मचारियों को वेतन देने में चला जाता है। फिर हर 6महीने में कमिश्नर का तबादला हो जाता है, जिससे प्रशासनिक और राजनीतिक पक्षों के बीच तालमेल की कमी रहती है। इन्हीं सबका परिणाम पटना को भुगतना पड़ रहा है।” डिप्टी मेयर मीरा देवी साहू पर ही दोषारोपण करती हैं। वह कहती हैं, “आलाकमान के पास काम करने की इच्छाशक्ति नहीं है। मेयर किसी की नहीं सुनती। पार्षदों से विचार-विमर्श नहीं किया जाता। निगम के पास सफाई की पूरी व्यवस्था नहीं है। हर साल सर्वेक्षण के बाद पार्षदों और अधिकारियों की टीम स्वच्छ शहरों का दौरा करती है लेकिन परिणाम शून्य होता है।”

(पटना के बहादुरपुर बाजार समिति का नजारा, फोटो: आयुष पंकज)

हालांकि, पटना नगर निगम कमिश्नर हिमांशु कुमार शर्मा इन आरोपों से इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, “शहर की स्वच्छता को लेकर अगले 6 महीने की रूपरेखा तैयार की गई है। इंदौर और सूरत की टीमों के साथ लगातार बातचीत हो रही है। हम सकारात्मक सोच के साथ काम कर रहे हैं।” रैंकिंग में सबसे नीचे आने पर वे कहते हैं, “दरअसल सर्टिफिकेशन के जो मार्क्स पटना को मिलने चाहिए थे वो नहीं मिले। इस वजह से हमें 1500 मार्क्स हमें नहीं मिलें।” जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि पटना को गंदगी की खामियों को दूर तो करना ही है साथ ही उसे रैंकिंग में बढ़त बनाने के लिए कायपलट की जरूरत है।

2011 की जनगणना के मुताबिक इंदौर की कुल आबादी करीब 32 लाख है, जिसमें 26 फीसदी ग्रामीण और 74 फीसदी शहरी आबादी है। जबकि, पटना की कुल 58 लाख की आबादी में गावों में रहने वालों की संख्या 57 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 43 फीसदी लोग हैं। वहीं साक्षरता दर के लिहाज से इंदौर की 88 फीसदी आबादी पढ़ी-लिखी है, वहीं पटना के 71% लोग साक्षर हैं। हालांकि, इस साल पटना ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है। पटना में प्रतिदिन 800 मीट्रिक टन कचरा जमा होते हैं, जबकि, इंदौर में यह आंकड़ा 1167 मीट्रिक टन है। इंदौर के कलेक्टर मनीष सिंह कहते हैं, “इस वक्त जिले में 100 फीसदी कचरे का निस्तारण किया जा रहा है। गीले कचरे से ‘इंदौर सिटी खाद’ बनाया जा रहा है। हमने इस अभियान में टेक्नोलॉजी का बहुत इस्तेमाल किया है। कचरा वाहनों की लाइव लोकेशन और ट्रैकिंग की व्यवस्था है। कर्मचारियों की नियमित उपस्थिति दर्ज करने के लिए बायोमेट्रिक सिस्टम लगाए गए हैं।”

इसके अलावा भी इंदौर नगर निगम ने कई प्रयास किए हैं। लोगों में जागरूकता लाने के लिए 2016-17 में बॉलीवुड के मशहूर सिंगर शान की अपनी आवाज में एक गीत भी रिकॉर्ड कराया गया है, जो कचरा उठाने वाली गाड़ियों में बजता है, ताकि लोग दूर से जान जाएं और कचरे के बैग को बाहर रख दें। इसके अलावा निगम में सभी 85 वार्ड में हर घर से कचरा उठाया जाता है। कई गैर सरकारी संगठन (एनजीओ), पूर्व सैनिक, रेडियो जॉकी और खास लोगों को अभियान से जोड़ा गया है ताकि लोग सफाई के प्रति जागरूक हों। हर क्षेत्र के कचरे के निष्पादन की अलग-अलग व्यवस्था है। इसमें संस्थागत और व्यवसायिक स्तर पर कचरा के निस्तारण की भी व्यवस्था है। 2016 से ही हर घर से कचरा संग्रहित किया जाता है। लोगों को गीले और सूखे कचरे के लिए निशुल्क अलग-अलग डस्टबिन उपलब्ध कराए गए हैं। यहां मंदिरों में चढ़ने वाले करीब 5 क्विंटल फूलों से भी खाद बनाई जाती है। देश में इंदौर ऐसा पहला शहर है, जिसे फाइव स्टार मिले हैं। हालांकि इसके बाद भी शहर सेवन स्टार से चूक गया है। शहर को ओडीएफ (ओपन डिफेक्टिव फ्री) प्लस-प्लस का सर्टिफिकेट दिया गया है। पूर्व मेयर गौड़ के मुताबिक शहर की सालाना साफ-सफाई पर 200 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं।

स्वाती साम्ब्याल का मानना है कि कचरे का यदि स्त्रोत पर ही निस्तारण कर दिया जाए, तो शहरों को स्वच्छ बनाने में बहुत मदद मिल सकती है। वे कहती हैं, “हमारे घरों में 50 से 60 फीसदी कचरा ऐसा होता है, जिसे घर पर ही निस्तारित किया जा सकता है। घर पर खाद बनाकर कचरे को कम किया जा सकता है। इस खाद को घर के बगीचे में इस्तेमाल किया जा सकता है।” कचरे के सही निस्तारण न होने की वजह से होने वाली समस्या के बारे में स्वाति कहती हैं, “विकासशील देशों में खुले में कचरों का निस्तारण करना पर्यावरण, स्वास्थ्य और आजीविका के लिए चिंताजनक स्थिति है। देश में मौजूद अधिकांश लैंडफिल साइटों को कचरों से भर दिया जाता है। यहां अत्यधिक भूजल प्रदूषण, मिथेन गैस उत्सर्जन, आग के खतरे के साथ कीड़े पनपते हैं। ये वैज्ञानिक प्रक्रिया के बिल्कुल विपरीत है। लैंडफिल कैपिंग और बायोमिनिंग को अपनाकर इसका समाधान निकाला जा सकता है।”

 

  

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