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कोरोना काल में वीवीआइपी गांव की ग्राउंड रिपोर्ट, इसे भी नहीं संभाल पाए कद्दावर नेता

“स्वास्थ्य सेवाओं का नितांत अभाव, सरकारी कदमों के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति; राज्यों को काफी दिनों तक...
कोरोना काल में वीवीआइपी गांव की ग्राउंड रिपोर्ट, इसे भी नहीं संभाल पाए कद्दावर नेता

“स्वास्थ्य सेवाओं का नितांत अभाव, सरकारी कदमों के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति; राज्यों को काफी दिनों तक यह आभास ही नहीं हुआ कि दूसरी लहर गांवों में संकट बढ़ा रही है”

राजस्थान से सटे हरियाणा के सिरसा जिले का गांव चौटाला। पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल, पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और कैबिनेट मंत्री रणजीत चौटाला समेत पांच विधायकों का पैतृक गांव। प्रवेश द्वार पर चाक-चौबंद सुरक्षा प्रबंध। बगैर जांच ‘नो एंट्री’। इसके बावजूद यहां कोरोना घुस गया है। गांव चौटाला ही नहीं, बल्कि पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और अफसरों के कई वीवीआइपी गांव मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में कोरोना से लड़ने में हांफ गए हैं। गांव वालों का तो जैसे सरकारी स्वास्थ्य तंत्र से भरोसा ही उठ गया है।

पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरिंदर सिंह

अप्रैल के दूसरे हफ्ते से पंजाब और हरियाणा के शहर जब शाम छह बजे से भोर पांच बजे तक तालाबंदी की जद में रहते थे, तब किसान खेतों में गेहूं, सरसों, चना आदि फसलें काट मंडियों की भीड़ में बेचने के लिए तीन-चार दिनों तक अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। सप्ताह के अंत में शहरों में जब लॉकडाउन रहता था, तब किसानों की टोलियां गांव से शहर और शहर से गांव जाती रहीं। शहरों में लॉकडाउन के एक महीना बाद गांवों में प्रवेश निषेध करने के लिए पहरे लगाए गए, लेकिन तब तक वहां संक्रमण फैल चुका था। महामारी से बेखौफ चौपालों में हुक्कों की गुड़गुड़ के बीच ताश की बाजियां चलती रहीं। इन्हीं चौपालों से निकल सत्ता के गलियारों तक पहुंचे हुक्मरानों को इनकी सुध नहीं रही।

थोड़ी गलती गांव वालों की भी है। बुखार, जुकाम, खांसी जैसे कोरोना के प्राथमिक लक्षण होने के बावजूद लोग जांच से इसलिए बच रहे हैं कि कहीं कोरोना निकलने पर सामाजिक बहिष्कार न हो जाए। जागरूकता की भी कमी है। संक्रमित होने पर 14 से 17 दिनों के एकांतवास को वे सामाजिक बहिष्कार मान रहे हैं। गांवों में टीकाकरण के प्रति उदासीनता से निपटना भी बड़ी चुनौती है। हरियाणा में पंचायतों के चुनाव नहीं हुए, तो फरवरी से पंचायतें सक्रिय नहीं हैं। इसलिए पूरा कोरोना प्रबंधन सरकारी बाबुओं के हाथ में है।

वीवीआइपी गांव चौटाला के शीर्ष नेता आज तक गांव में लोगों का हाल पूछने नहीं आए। गांव के पूर्व पंच रामबीर सिहाग के मुताबिक 20 हजार की आबादी वाले इस गांव के हर तीसरे घर में कोई न कोई सदस्य बुखार, जुकाम या खांसी से पीड़ित है। पीएचसी (प्राइमरी हेल्थ सेंटर) में जांच के लिए डब्बावली से दो दिन आई टीम भी तीसरे दिन गायब हो गई। पीएचसी में न ऑक्सीजन सिलिंडर हैं, न ही डॉक्टर। नजदीक का अस्पताल 28 किलोमीटर दूर डब्बावली में है। पंचायत जब से भंग हुई है, तब से सैनिटाइजेशन के लिए सरकार से खर्च मिलना बंद हो गया है। गांव वाले अपने पैसे से सैनिटाइजेशन करा रहे हैं।

हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के रोहतक जिले में गांव बनियानी के हालात भी ऐसे ही हैं। साफ-सफाई का अभाव है। अस्पताल में एंबुलेंस तक नहीं है। बनियानी मुख्यमंत्री खट्टर का पैतृक गांव नहीं है। 1947 में देश की आजादी के बाद खट्टर परिवार पाकिस्तान से आकर इस गांव में बसा था। मुख्यमंत्री द्वारा गोद लिए गए कैथल जिले के गांव क्योड़क के हालात भी अच्छे नहीं हैं। गांव की पीएचसी में स्टॉफ पूरा न होने की शिकायत करते हुए पूर्व सरपंच बलकार सिंह आर्य कहते हैं कि जांच और वैक्सीनेशन की गति बहुत धीमी है।   

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री बंसीलाल के भिवानी जिले में पड़ने वाले गांव गोलागढ़ की हालात देखिए। राज्य सरकार ने गांवों की सुध नहीं ली तो लोगों ने खुद लॉकडाउन की पहल कर गांव को संकट से बचाया। यहां सबहेल्थ सेंटर है, जहां पहले न डाक्टर थे और न ही दवा। घर-घर शुरू हुए सर्वे बाद आशा कार्यकर्ता कोरोना किट बांट रहे हैं। बुखार होने के बावजूद लोग टेस्ट कराने से डर रहे हैं कि कहीं दूर शहर के अस्पताल में भर्ती हुए तो जान नहीं बचेगी। आज भी गांव वालों को इलाज के लिए 30 किलोमीटर दूर भिवानी के जिला अस्पताल जाना पड़ता है।

केंद्रीय मंत्री जनरल वी.के. सिंह

केंद्रीय मंत्री जनरल वी.के. सिंह के पैतृक गांव बपौड़ा में 25 मौतों से मातम पसरा है। सरपंच नरेश कुमार के मुताबिक 13 मई को गांव में चार लोगों की मौत हो गई। गांव वालों ने आवाज उठाई तो सरकारी स्कूल में आइसोलेशन वार्ड बना दिया पर हालत गंभीर  होने पर पीजीआई रोहतक और हिसार ही जाना पड़ता है। केंद्रीय मंत्री के इस गांव में पीएचसी तक नहीं है।

हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला

अपने गांव सांघी की पीएचसी में दवाएं और प्राथमिक सेवाएं उपलब्ध कराने का दावा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आउटलुक से कहा, “गांव में पीएचसी के अलावा किलोई में भी 20 बेड का सीएचसी (कम्युनिटी हेल्थ सेंटर) बनवाया है। मेरे मुख्यमंत्री काल से पहले हरियाणा में मात्र एक मेडिकल कॉलेज पीजीआइ रोहतक था। नौ साल के कार्यकाल में मैंने सात मेडिकल कॉलेज बनवाए, झज्जर में एम्स खुलवाया। मौजूदा सरकार सात साल में एक भी नया मेडिकल कॉलेज नहीं बना पाई है।” 

पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल

पंजाब के मुक्तसर जिले की लंबी ब्लॉक के गांव बादल के हालात भी अन्य वीवीआइपी गांवों जैसे ही हैं। यहां के प्रकाश सिंह बादल चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लंबी के सीएचसी में डॉक्टर के 14 पद स्वीकृत हैं, पर यहां पांच साल से चार डॉक्टर ही हैं। हालात ऐसे हैं कि एक आरएमओ लंबी ब्लॉक के 52 गांवों में होम आइसोलेट कोरोना मरीजों की देखभाल कर रहा है। 

सेंटर फॉर रिसर्च इन रुरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (क्रिड) में कार्यरत ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ डा.आरएस घुम्मण कहते हैं, “पहली लहर में ग्रामीण इलाके कोरोना से अछूते रहे। राज्य सरकार को लंबे समय तक आभास ही नहीं हुआ कि दूसरी लहर में ग्रामीण इलाकों में कोविड-19 संकट बढ़ रहा है। गांव कोरोना के जाल में फंस गए तो यह हमारी कृषि अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी होगा।” घुम्मण के अनुसार यह बड़े अफसोस की बात है कि पंजाब और हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 प्रभावित लोगों के आंकड़े सरकार के पास नहीं हैं, जबकि इन राज्यों के 18,648 गांवों में यहां की 65 प्रतिशत आबादी रहती है।

राज्य सरकार ही कह रही है कि संक्रमण के आंकड़ों में गांव शामिल नहीं, तो संक्रमण घटने की बात सच कैसे मानें

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का कहना है कि अब सरकार का ध्यान गांवों में जांच और उपचार पर है। इसके लिए 8000 स्पेशल टीम 15 मई से काम कर रही है। प्रतिदिन 80,000 लोगों की जांच की जा रही है जबकि 15 मई से पहले रोजाना औसतन 50,000 जांच हो रही थी। लेकिन इन आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा कहते हैं, “यदि राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर में कोरोना जांच आवश्यक कर दें, तो पॉजिटिव मामलों की संख्या कई गुना अधिक होगी।” हुड्डा के अनुसार महामारी के समय ग्रामीण सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ही जाते हैं। कोराना और ब्लैक फंगस जैसी महामारी के संकट में पीएचसी का अपग्रेडेड होना इसलिए भी जरूरी है कि चिंता और बेचैनी में हड़बड़ा कर जिला या सब-डिवीजन स्तर के अस्पतालों की ओर भाग रहे लोगों को रोका जा सके।”

सरकारी आंकड़ों के अनुसार मई के दूसरे हफ्ते से कोराना संक्रमितों की संख्या घटकर एक तिहाई रह गई है। इसलिए सरकार कोरोना पर काबू पाने का दावा कर रही है। लेकिन इसकी पोल गांवों में होने वाली मौतें खोल रही हैं। संक्रमण घटकर एक तिहाई रहने के आंकड़े भी कहीं नहीं टिकते जब राज्य सरकार ही यह मान रही है कि इनमें ग्रामीण इलाकों के आंकड़े शामिल नहीं हैं। क्यों नहीं हैं, इस सवाल के जवाब में हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज और पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू कहते हैं कि गांवों में जांच के लिए लोग ही आगे नहीं आ रहे हैं, इसलिए वहां के आंकड़े जुटा पाना मुश्किल है। कोरोना की दूसरी लहर में अब तक 236 किसान जिंदगी से हार चुके हैं। चिंता की बात यह है कि केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब और हरियाणा के किसान फिर से दिल्ली की सीमाओं पर कूच कर रहे हैं।

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