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ग्राउंड रिपोर्ट- बिहार के SKMCH का हाल: घर-खेत में काम करने वाली अनपढ़ महिलाएं वार्ड अटेंडेंट, कोविड और नॉन कोविड का इलाज एक ही वार्ड रूम में

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की असली हकीकत देखनी हो तो मुजफ्फरपुर आइए। राज्य की अघोषित राजधानी...
ग्राउंड रिपोर्ट- बिहार के SKMCH का हाल: घर-खेत में काम करने वाली अनपढ़ महिलाएं वार्ड अटेंडेंट, कोविड और नॉन कोविड का इलाज एक ही वार्ड रूम में

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की असली हकीकत देखनी हो तो मुजफ्फरपुर आइए। राज्य की अघोषित राजधानी मुजफ्फरपुर में बड़े सरकारी अस्पताल श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज किया जा रहा है। 15 साल में नीतीश सरकार ने हेल्थ सिस्टम को इतना दुरूस्त किया है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के समय अनपढ़ और खेतों-घरों में काम करने वाली महिलाओं को वार्ड अटेंडेंट के रूप में जिम्मा सौंपा गया है। इनका काम कोविड वार्ड में भर्ती मरीजों की सेवा करना, ऑक्सीजन सिलिंडर खत्म होने पर उसे रिफिल कर पहुंचाना और जरूरत के मुताबिक डॉक्टर-नर्स को मरीज की स्थिति के बारे में सूचित करना है। वहीं, अस्पताल की व्यवस्था ऐसी है कि कोरोना वार्ड में ही नॉन कोविड मरीजों का भी इलाज चल रहा है। अस्पताल के अधिकारी, कर्मी, गार्ड बोलने से कतराते हैं।

महिला वार्ड अटेंडेंट्स से बातचीत में पता चला की अधिकांश महिलाएं निरक्षर हैं। उन्हें किसी मरीज को ओआरएस का घोल देने तक की जानकारी नहीं है, कोरोना का दवा खिलाना और देना तो दूर की बात है। ऑक्सीजन लगाना तो इन सब से परे है। इनके पास अस्पताल में काम करने का कोई अनुभव नहीं है। इतना ही नहीं, इन्हें मास्क तक ठीक से पहनने नहीं आता है। सिर्फ एक सर्जिकल मास्क के भरोसे ये कोरोना वार्ड में आते-जाते हैं। यानी इनकी जान की सुरक्षा भी भगवान भरोसे है।

(ऑक्सीजन रिफिलिंग प्लाइंट पर सिलिंडर भरवाने के लिए खड़े वार्ड अटेंडेंट और परिजन/ फोटो- नीरज झा)

इस अस्पताल में सिर्फ मुजफ्फरपुर के लोग ही नहीं इलाज कराने के लिए नहीं आते हैं। बड़े सरकारी अस्पताल होने की वजह से उत्तरी क्षेत्र के अधिकांश जिले- सीतामढ़ीशिवहरमोतिहारीगोपालगंजबेतियासमस्तीपुरवैशाली और दरभंगा तक के लोग यहां आते हैं। 

महिला और वार्ड बॉय अटेंडेंट को राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फरमान के बाद तीन महीने के लिए रखा गया है। काम कर रहे वार्ड बॉय और महिलाओं के पास मेडिकल टर्म के ए, बी, सी, डी तक का ज्ञान नहीं है। ये तो दूर की बात है। आलम ये है कि इनके पास आठवीं-दसवीं तक की बेसिक डिग्री नहीं है। ये गांव के खेतों और अपने घरों में काम करने वाली महिलाएं हैं, जिन्हें गोस्वामी सिक्योरिटी सर्विस कंपनी के तहत हायर किया गया है। इनके ड्रेस पर लगे बैच में ये नाम इंगित है। अस्पताल में ऐसी एक-दो महिलाएं या काम करने वाले लोग नहीं है। वार्ड अटेंडेंट्स से बातचीत के मुताबिक 50 से अधिक ऐसे लोग हैं जिनकी बहाली अगले तीन महीने के लिए इसी महीने यानी मई में हुई है।

46 साल की चिंता देवी वार्ड अटेंडेंट का काम करती हैं। हर दिन अस्पताल में बने ऑक्सीजन रिफिलिंग प्लाइंट से सिलिंडर भरवाकर वार्ड तक पहुंचाती हैं। इनकी बहाली 9 मई के आस-पास हुई है। इससे पहले चिंता देवी ने ना तो किसी अस्पताल में कोई भी काम किया था और ना हीं वो पढ़ी-लिखी हैं। एकदम निरक्षर। आउटलुक से बातचीत में वो कहती हैं, "पैसे भी कितने मिलेंगे पता नहीं। जो लाया है उसने कहा है कि 5,000 रूपए मिलेंगे। इससे पहले घर पर अपने बच्चों का पालन-पोषण और खेतों में काम करती थी।"

चिंता देवी उम्र के मुकाबले में काफी बुजुर्ग दिखती हैं। चेहरे पर झुड़ी आ चुके हैं। सिलिंडर बड़ी मुश्किल से उठाकर ले जाती दिखाई देती हैं। वो कहती हैं, "सब पेट की खातिर कर रही हूं। मेरे जैसे यहां दर्जनों लोग हैं।" इसी तरह एक अन्य वार्ड अटेंडेंट महिला मालती देवी हैं। वो भी निरक्षर हैं। इससे पहले घर में काम-काज और दूसरे के खेतों में काम करती थी। कुछ दिनों से ये भी यहां काम कर रही हैं। 

जिस वक्त लोग सुरक्षित रहने के लिए घरों के भीतर रह रहे हैं और आपके पास अस्पताल में काम करने का कोई अनुभव भी है। इस सवाल पर मालती देवी कहती हैं, "गांव के ही एक व्यक्ति के माध्यम से मैं यहां आई हूं। हर दिन आठ घंटे काम करने होते हैं। घर यहां से दूर है इसलिए बगल में रूम लेकर रहती हूं। इस बेरोजगारी में क्या करें।"

अस्पताल में करीब 10 कोविड वार्ड हैं, जहां कोरोना मरीज का इलाज चल रहा है। प्रत्येक वार्ड में 36 बेड्स हैं। 19 साल के विवेक कुमार भी वार्ड बॉय का काम कर रहे हैं। आउटलुक से बताचीत में बताते हैं, "मरीजों का इलाज वार्ड बॉय और सिस्टर के भरोसे ही चल रहा है। डॉक्टर मरीज को देखने के लिए भी नहीं आते हैं। जूनियर और सिनियर डॉक्टरों में मरीजों को देखने को लेकर बहस होती रहती है। तीन दिनों के बाद आज यानी सोमवार दो डॉक्टरों ने विजिट किया है। इस संकट के समय जितनी हमलोगों को समझ है, सहयोग कर रहे हैं। लेकिन, सरकार के मुताबिक तीन महीने बाद हमें हटा दिया जाएगा।"

अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध होने के बावजूद भी मरीज के परिजन आरोप लगाते हैं कि पाइप-लाइन का फ्लो इतना कम होता है कि पता ही नहीं चलता है कि ऑक्सीजन की सप्लाई भी हो रही है। अकबर हुसैन की 70 वर्षीय मां नवाजम खातून वार्ड नंबर तीन में सात दिनों से भर्ती हैं। इन्हें कोरोना नहीं हो रखा है फिर भी ये इस वार्ड में हैं। वार्ड बॉय के मुताबिक ये कोविड वार्ड है। आउटलुक से बातचीत में वो कहते हैं, "यहां सिर्फ एक ही तरह की दवाएं सभी को दिया जा रहा है। किसकी स्थिति में कितना सुधार हो रहा है और नहीं, कोई पूछने-समझने वाला नहीं है। मेरी मां की हालत लगातार खराब हो रही है। लेकिन, कोई सुनने वाला नहीं है। बाथरूम तो जाने लायक नहीं है। गंदगी का अंबार लगा हुआ रहता है।"

आउटलुक ने कई बार अस्पताल के सुपरिटेंडेंट बी एस झा से बात करने की कोशिश की है लेकिन उनकी तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जब आउटलुक ने कर्मियों से बातचीत की, उस वक्त मुकेश कुमार नाम के एक गार्ड ने लोगों को बातचीत करने से रोकने की कोशिश भी की। उनका कहना था कि यहां पर मीडिया का आना वर्जित है। जब हमने कारण पूछा तो उन्होंने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

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