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व्यापमं घोटाले की आरएसएस गुत्थीः सीबीआई के लिए चुनौती

व्यापमं घोटाले और मौतों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी मिलने के बाद ‘पिंजरे के तोते’ सीबीआई के सामने एक बड़ी चुनौती इस कांड की गांठों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तार खोलने की होगी। व्यापमं की गांठ में संघ के तार का सिरा 1990 तक जाता है जब इस कांड के प्रमुख अभियुक्त और खनन सरगना सुधीर शर्मा ने संघ संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक के तौर पर अपना करिअर शुरू किया था। उनके पिता बाबूलाल शर्मा डेयरी निगम में किरानी थे। घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें शाम को दूध बेचना पड़ता था।
व्यापमं घोटाले की आरएसएस गुत्थीः  सीबीआई के लिए चुनौती

लेकिन आज सुधीर शर्मा 20 हजार करोड़ रुपये के साम्राज्य के मालिक हैं। यह साम्राज्य अन्य कई के अलावा खनन, शिक्षा और मीडिया के क्षेत्रों में सब दूर फैला है। इस घोटाले के जेल में बंद एक अन्य अभियुक्त लक्ष्मीकांत शर्मा के सन 2003 में खनन एवं उच्च शिक्षा मंत्री बनने पर सुधीर शर्मा ने उनका विशेष कार्य पदाधिकारी बनने के लिए प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से त्यागपत्र दे दिया था। उल्का की तरह उनके उदय को तभी से देखा जा सकता है।

नोट पर नोट छापते हुए भी सुधीर शर्मा ने संघ और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को बिसराया नहीं। वाकई शर्मा के हाथ से बांटी जाने वाली धनराशि का प्रबंधन इतना कठिन हो गया कि उनके कर्मचारियों को कागजात में दर्ज करना पड़ा कि किन-किन लोगों को कितना पैसा दिया गया और क्यों। संघ और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं सुरेश सोनी, प्रभात झा और सांसद अनिल दवे के नाम शर्मा के खातों में दर्ज हैं। शर्मा उनके ट्रेन और हवाई जहाज का किराया तथा यात्राओं के दौरान रहने-खाने का खर्च उठाते थे।

सुधीर के उस्ताद मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा खुद सुरेश सोनी के शागिर्द थे। सोनी का नाम दो अभियुक्तों के साथ पुलिस की पूछताछ में आया। लक्ष्मीकांत शर्मा के विशेष कार्यपदाधिकारी ओ.पी. शुक्ला ने विशेष टास्क फोर्स की पूछताछ में माना कि संघ के पूर्व सरसंघचालक दिवंगत के.एस. सुदर्शन और सोनी ने किसी मिहिर कुमार के लिए सिफारिशी चिट्ठियां दी थीं। कुमार ने टास्क फोर्स को बताया, ‘सुदर्शन जी ने (लक्ष्मीकांत) शर्मा को फोन किया जिन्होंने आश्वासन दिया कि काम हो जाएगा। सुदर्शन ने तब मुझसे कहा कि उत्तरपुस्तिका में जितने समझ मंे आएं उतने प्रश्नों के उत्तर लिख देना। बाकी खाली छोड़ देना।’ दोनों संघ नेताओं के नाम चर्चा में आने के बाद सोनी ने राजनीितक षड्यंत्र का आरोप लगाते हुए एक वक्तव्य जारी किया। उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिना कोई नाम और ब्यौरे दिए एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिये वरिष्ठ संघ नेताओं के लिए स्वच्छ चरित्र प्रमाण पत्र जारी कर दिया।

दूसरी तरफ आरएसएस के एक तबके का मानना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी पत्नी साधना सिंह की घोटाले में लिप्तता से ध्यान बटाने के लिए संघ का नाम जबरदस्ती घसीटा गया। एक आरएसएस नेता रहस्यमय अंदाज में कहते हैं, ‘यह संयोग नहीं है कि मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी का नाम मीडिया से मानो गायब ही हो गया।’ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने नवंबर 2014 में मुख्यमंत्री की पत्नी साधना सिंह का व्यापमं के सिलसिल में नाम उछालकर पहली गोली दागी थी। सिंह ने मांग की थी कि साधना सिंह के कॉल डिटेल्स निकलवाकर व्यापमं से जुड़े अधिकारियों के साथ उनकी बातचीत उजागर की जाए। बहरहाल, व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी ने दो वरिष्ठ आरएसएस नेताओं की घोटाले में लिप्तता का जिक्र तुरंत कर दिया था। विपक्ष ने दावा किया था कि मुख्यमंत्री की पत्नी के जन्मस्थल गांेडिया के 19 उम्मीदवारों को व्यापमं की एक परीक्षा के जरिये यातायात कांस्टेबल चुना गया था। इसके तुरंत बाद ही त्रिवेदी ने उपरोक्त कदम उठाया था। आश्चर्य नहीं कि विधानसभा में विपक्ष के नेता कांग्रेस के सत्यदेव कटारे ने भी त्रिवेदी के दावे का समर्थन किया। कटारे का दावा है, ‘इसे उन्होंने अपनी स्वप्न परियोजना करार दिया। आरएसएस कार्यकर्ताओं के शरण और प्रशिक्षण के लिए उन्होंने मध्यप्रदेश को मानो एक पौधशाला में तब्दील कर दिया।’

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