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पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने क्यों मुंगेर को बताया था 'योगनगरी'?

दशकों पहले परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी ने उद्घोषणा की थी – ‘योग कल की संस्कृति बन जायेगा ‘...
पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने क्यों मुंगेर को बताया था 'योगनगरी'?

दशकों पहले परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी ने उद्घोषणा की थी – ‘योग कल की संस्कृति बन जायेगा ‘ और यह उनके जीवन काल में ही फलिभूत हुआ। बीते 5 दशकों से बिहार के मुंगेर के गंगा दर्शन विश्व योगपीठ में प्रज्वलित अखंड ज्योत जल रही है। 1963 में अपने गुरु स्वामी शिवानन्द सरस्वती जी की प्रेरणा से सत्यानन्द जी ने मुंगेर में गंगा किनारे योगपीठ(शिवानन्द आश्रम) स्थापित करते हुए इसे ‘21 वी सदी के योग पुनर्जागरण का केंद्र’ घोषित किया था। मुंगेर किला में कर्ण चौरा पर स्थित योगाश्रम स्वयं में ही एक ऐतिहासिक ऊर्जा केंद्र है जिसे अब गंगा-दर्शन नाम दिया गया है। उत्तर वाहिनी गंगा का नयनाभिराम दृश्य, चारों ओर सुंदर बगीचे, हरे-भरे धान के खेत और किनारे छोटी सी पहाड़ी पर 5.5 हेक्टेयर में विस्तृत इस परिसर मे योग ज्ञान और साधना का गुरुकुल विश्व कल्याण में रत है। जो आज बिहार योग विद्यालय या बिहार स्कुल ऑफ़ योग के नाम से प्रचलित है।

भारत की पहचान रही योग की समृद्ध परम्परा के प्रमुख केन्द्रों में से एक बिहार योग विद्यालय ने एक आध्यात्मिक प्रकाशस्तंभ के रूप में मानवता के सर्वांगीन विकास हेतु योग के प्राचीन ज्ञान को प्रकट करते और सिखाते हुए योग की विशिष्ट जीवनशैली विश्व को प्रदान किया है। यहाँ योग केवल एक अभ्यास नहीं अपितु जीवनशैली है जो मानव व प्रकृति के पूर्ण एकीकरण का अनुभव कराती है। प्राचीन परम्पराओं को यथावत रखते हुए बिहार योग विद्यालय की शिक्षाएं आधुनिक दुनिया को जीवन में सादगी,सद्भाव और संतुलन का व्यावहारिक ज्ञान कराती है तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक पहलुओं के बीच समन्व्यय व संतुलन स्थापित कर आध्यात्मिक चेतना की जागृति ही यहाँ की विशष्ट शिक्षण पद्धति का परम उद्देश्य है।

अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर योग विद्या को पुनः प्रस्फुटित करने वाले महान योगी परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 6 दिसंबर को चिताभूमि देवघर के रिखिया आश्रम में महासमाधि ली उस वक़्त हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे। उनके जीवन पर दृष्टि डालें तो मात्र  20 वर्ष की आयु में वो गृह त्याग कर गुरु की खोज में निकल पड़े। तांत्रिक भैरवी सुखमन गिरि ने उन्हें आध्यात्मिक अनुभवों के स्थायित्व के लिए एक गुरु खोजने की प्रेरणा दी। चार वर्ष तक भ्रमण के बाद 1947 में ऋषिकेश में अपने गुरु स्वामी शिवानंद स्वामी से दशनामी सन्यास परंपरा में दीक्षित हुए । 1963 में गुरु शिवानन्द जी ने उन्हें योग का संदेश घर-घर में पहुंचाने और सबके लिए योग की कल्पना को साकार बनाने का निर्देश दिया और 1983 में गुरु के इस आदेश को उन्होंने पूरा कर दिया। इस दौरान सत्यानन्द जी ने विश्व के सभी महाद्वीपों के लाखों लोगों का मार्गदर्शन किया एवं विभिन्न देशों में योग आश्रमों की स्थापना की । स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने तंत्र और योग की प्राचीन पद्धतियों की विवेचना करते हुए योग के विभिन्न आयामों पर 300 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया। अपनी पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने सिद्धांतों के प्रायोगिक और व्यावहारिक दर्शन को प्रस्तुत किया है।

वर्तमान में स्वामी सत्यानन्द जी की महासमाधि के उपरांत स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती के देखरेख और मार्गदर्शन में योग विद्यालय आगे बढ़ रहा है। भारत सहित विश्व भर में वर्षों तक योग का प्रचार प्रसार कर चुके भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित स्वामी निरंजनानन्द जी योग के साथ कई भाषाओँ के विद्वान है। स्वामी सत्यानन्द ने सन् 1988 में ही सत्यानन्द योग (बिहार योग विद्यालय की पद्धति को लोगों ने देश दुनिया में सत्यानन्द योग नाम दिया है) से सम्बन्धित सम्पूर्ण विश्व के स्तर पर होने वाले कार्यों को  स्वामी निरंजनानन्द को सौंप दिया था । दरअसल स्वामी सत्यानंद ने ही उन्हें निरजानंद का नाम दिया था । 10 साल की उम्र में वह एक सन्यासी बने थे उसके बाद 11 साल की उम्र में वह विदेश चले गए। विभिन्न संस्कृतियों की समझ प्राप्त करके वो भारत लौटे और मुंगेर आश्रम की गतिविधियों को बढाने में जुट गए ।

गुरुकृपा से उन्होंने भी अपने गुरु की भांति गुरु के आदेशों और उद्देशों की पूर्ति में सफलता हासिल किया। योग के क्षेत्र में कार्य-विस्तार करते हुए स्वामी निरंजनानंद ने योग-विज्ञान में उत्कृष्ट अध्ययन हेतु 1994 में बिहार योग भारती की स्थापना की। वर्ष 2000 में इसे डीम्ड यूनिवर्सिटी की मान्यता मिल गई जो बिहार स्कूल ऑफ योग का ही अकादमिक इकाई है।

बीते वर्षों में मुंगेर से निकल कर योग की यह ज्योत देश के विभिन्न महाविद्यालयों ,जेलों ,अस्पतालों और अन्य कई संस्थाओं के माध्यम से आमजन तक पहुंची है। आज यहाँ से प्रशिक्षित 14000 शिष्य और 1500 से अधिक योग शिक्षक विश्व भर में योग संस्कृति का प्रसार कर रहे हैं। 1995 में शुरू हुआ ‘बाल योग मित्र मंडल’ आज 80 हजार बच्चों के माध्यम से योग जागरण जुटा हुआ  है। दुनिया के पहले योग विद्यालय का गौरव प्राप्त ‘ बिहार स्कूल ऑफ़ योगा’ की शाखायें 70 देशों में कार्यरत हैं।

2013 में बिहार योग विद्यालय ने स्वर्ण जयंती के मौके पर विश्व योग सम्मलेन का आयोजन रखा था जिसमे 56 देशों व भारत के 23 राज्यों के प्रतिनिधियों ने सहभाग किया। 21 जून 2019 को विश्व योग दिवस के दिन योग के प्रचार प्रसार में उत्कृष्ट योगदान हेतु प्रधानमंत्री पुरुस्कार भी प्रदान किया गया।

बिहार योग विद्यालय सभी देशों,जातियों,धर्मों और संस्कृतियों के सभी उम्र के लोगों के लिए है। योग चिकित्सा,योग शिक्षक प्रशिक्षण,संन्यास और उन्नत साधना (नियमित योग अभ्यास) पाठ्यक्रमों में हजारों लोगों को लघु और दीर्घावधि में प्रशिक्षित कर मानव कल्याण हेतु समर्पित है।

आम जनों में मुंगेर योगाश्रम के नाम से प्रसिद्द बिहार योग विद्यालय की भूमिका को समझते हुए पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम ने वर्ष 2014 में मुंगेर को योगनगरी बताया था। बिहार योग विद्यालय के प्रशंसकों में प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद,पूर्व पीएम इंदिरा गाँधी,मोरारजी देसाईं,अटल बिहारी वाजपेई ,न्यूजीलैंड के पीएम क्लिथ हलोसकी सहित वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी शामिल हैं।

(लेखक पर्यावरण एक्टिविस्ट हैं और गुमनाम शहीदों के लिए अभियान चलाने वाली संस्था युवा ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं)

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