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मिशन चंद्रयान-2 में इन दो महिलाओं का रहा अहम रोल, जानिए इनके बारे में

शुक्रवार की आधी रात का वक्त था और पूरा देश बड़ी ही बेसब्री से लैंडर विक्रम के चांद की सतह को चूमने और...
मिशन चंद्रयान-2 में इन दो महिलाओं का रहा अहम रोल, जानिए इनके बारे में

शुक्रवार की आधी रात का वक्त था और पूरा देश बड़ी ही बेसब्री से लैंडर विक्रम के चांद की सतह को चूमने और खुशी में झूमने का इंतजार कर रहा था। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ, लेकिन यह भारत और इसरो की विफलता नहीं है। स्पेस साइंस में भारत ने चंद्रयान-2 के जरिए नया इतिहास रचा। देर रात करीब 1.51 बजे चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी दूर इसरो का लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया। भले ही लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया हो, लेकिन अब भी इसरो और पूरे देश को ऑर्बिटर से उम्मीदें हैं। चंद्रयान-2 मिशन को पूरी तरह से फेल नहीं कहा जा सकता है, इसलिए भारत की इस स्पेस एजेंसी को देश-विदेश से बधाइयां मिल रही हैं। 

22 जुलाई, 2019 को चंद्रयान-2 चांद पर जाने के लिए लॉन्च हुआ था और इस काम को सही तरीके से अंजाम देने में इसरो की दो महिला वैज्ञानिकों का बड़ा योगदान था। पहली चंद्रयान-2 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर मुथैया वनिता और दूसरी मिशन डायरेक्टर रितु करिधान। वैसे, इस मिशन में इन दोनों महिला वैज्ञानिकों का ही नहीं कई सारी महिलाओं का हाथ था। बताया जाता है कि इस टीम में 30 फीसदी महिलाएं थीं और ऐसा भारत में पहली बार हुआ है जब स्पेस मिशन को महिलाएं हेड कर रही थीं।

कौन हैं मुथैया वनिता

मुथैया वनिता इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजिनियर हैं और प्रोजेक्ट डायरेक्टर होने की वजह से मिशन की सारी जिम्मेदारी इनके कंधों पर थी। वनिता पिछले 32 सालों से इस मिशन के लिए काम कर रही हैं। बताया जा रहा है कि जब चंद्रयान-2 पर काम शुरू हुआ तो शुरुआत में मुथैया ने हेड करने से मना कर दिया, वो इस बड़ी जिम्मेदारी को उठाने के लिए खुद को तैयार नहीं मान रही थीं। लेकिन चंद्रयान-1 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एम. अन्नादुरै ने उन्हें समझाया तब वो मानी। वनिता चेन्नई से हैं और उनके पिता सिविल इंजिनियर थे। जब उन्होंने इसरो ज्वॉइन किया था तब वह जूनियर इंजिनियर थीं। उन्होंने लैब में काम, गाड़ियां टेस्ट कीं और फिर बाद में मैनेजर वाली पोजीशन पर पहुंचीं।

एम. अन्नादुरै, वनिता को टीम मैनेजमेंट में उस्ताद मानते हैं। एक इंटरव्यू में एम. अन्नादुरै ने बताया कि वनिता डेटा संभालने में एक्सपर्ट हैं। वह डिजिटल और हार्डवेयर के काम में बहुत अच्छी हैं, मगर वो प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनने से हिचक रही थीं। इसमें दिन में 18 घंटे काम करना होता है। साथ ही आपके ऊपर इतनी बड़ी जिम्मेदारी होती है क्योंकि पूरा देश आपको देख रहा होता है। अभी तक कई देशों ने अपने रॉकेट को चांद तक पहुंचाया है, वनिता के सामने इस बात का चैलेंज था कि वो ये प्रोजेक्ट बाकी देशों के मुकाबले आधे पैसों में निपटाएं, इसमें वो कामयाब भी रहीं।

वनिता को साल 2006 में बेस्ट वुमन साइंटिस्ट पुरस्कार भी मिल चुका है। साल 2013 में मंगलयान प्रोजेक्ट में भी वनिता का खास रोल था।

कौन हैं रितु करिधाल

इसरो में मिशन डायरेक्टर के तौर पर नियुक्त होने वाली रितु करिधाल पहली महिला हैं। रितु को ‘रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। मिशन डायरेक्टर की जिम्मेदारी है कि जो कुछ भी हो उस पर लगातार नजर रखें। रितु लखनऊ की हैं। उन्होंने बेंगलुरु में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से एयरोस्पेस इंजिनियरिंग की है। रितु ने इसमें मास्टर की डिग्री ली है और पिछले 22 साल से वो इसरो के लिए काम कर रही हैं। साल 2013 से 2014 के दौरान रितु मिशन मंगलयान में डिप्टी ऑपरेशन्स डायरेक्टर भी थीं।

रितु न सिर्फ मिशन मंगल और मिशन चंद्रयान-2 पर काम कर रही थीं बल्कि वो अपने बच्चों और परिवार के लिए भी पूरा वक्त निकालती थीं। वह शाम को उन्हें पढ़ाती भी थीं। पढ़ाने के बाद वो घर पर भी लैपटॉप पर देर रात तक काम करती रहती थीं और सुबह फिर से बच्चों को 6.30 बजे उठाती थीं। अब उनके घरवाले बहुत खुश हैं। लखनऊ में रह रही उनकी बहन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि हमें अपनी बहन पर गर्व है, माता-पिता के निधन के बाद उन्होंने छोटे भाई और मुझे संभाला था। दीदी को हमेशा से चांद-सितारे पसंद थे और वो हमसे कहती थीं कि उन्हें जानना है कि आसमान के पीछे क्या है?

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