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सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद पर किया बहाल, पलटा सीवीसी का फैसला

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में काफी समय से चल रहे विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है।...
सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद पर किया बहाल, पलटा सीवीसी का फैसला

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में काफी समय से चल रहे विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। शीर्ष अदालत ने ने सीवीसी के फैसले को पलटते हुए आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला रद्द कर दिया। इस फैसले के साथ ही ये साफ हो गया कि आलोक वर्मा सीबीआई के निदेशक बने रहेंगे। बता दें कि सीबीआई के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एकदूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसके बाद सरकार ने दोनों अफसरों को छुट्टी पर भेज दिया था।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आलोक वर्मा को हटाने से पहले सेलेक्ट कमिटी से सहमति लेनी चाहिए थी। जिस तरह सीवीसी ने आलोक वर्मा को हटाया, वह असंवैधानिक है। इस तरह से वर्मा अब सीबीआई प्रमुख का कार्यभार संभालेंगे। हालांकि वह बड़े पॉलिसी वाले फैसले नहीं ले सकेंगे। चीफ जस्टिस के छुट्टी पर होने के कारण उनके लिखे फैसले को जस्टिस केएन जोसेफ और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने पढ़ा। 

उच्च स्तरीय सेलेक्ट कमेटी करेगी वर्मा पर फैसला

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को कानून के तहत सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का कोई अधिकार नहीं है। सिर्फ सेलेक्ट कमेटी के पास ही ये अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई पावर सेलेक्ट कमेटी में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष होंगे। कोर्ट ने कहा कि ये कमेटी एक हफ्ते के भीतर वर्मा पर कार्रवाई पर फैसला ले। इस दौरान आलोक वर्मा कोई भी नीतिगत फैसला नहीं लेंगे। कोर्ट ने कहा कि आगे से ऐसे बड़े मामलों में उच्च स्तरीय कमेटी ही फैसला करेगी।

एक सप्ताह तक नीतिगत फैसला नहीं लेंगे वर्मा

कोर्ट ने सरकार और सीवीसी के फैसले को पलटते हुए सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को पद पर बहाल करने का फैसला भले ही सुनाया है। लेकिन जब तक उच्च स्तरीय कमेटी एक सप्ताह के भीतर वर्मा पर कार्रवाई को लेकर कोई निर्णय नहीं ले लेगी तब तक वर्मा कोई भी नीतिगत फैसला नहीं ले सकेंगे।

सुप्रीम कोर्ट  6 दिसंबर को सुरक्षित रख लिया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को मामले की सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा के अलावा एनजीओ कॉमन कॉज की ओर से अर्जी दाखिल कर मामले की एसआईटी जांच की मांग की थी। साथ ही सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को चुनौती दी गई है। केंद्र सरकार ने वर्मा और अस्थाना के बीच विवाद के बाद दोनों को हटाते हुए संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को अंतरिम मुखिया बना दिया था।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने पिछले साल छह दिसंबर को आलोक वर्मा की याचिका पर वर्मा, केन्द्र, केन्द्रीय सतर्कता आयोग और अन्य की दलीलों पर सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जायेगा। पीठ ने गैर सरकारी संगठन कामन काज की याचिका पर भी सुनवाई की थी। इस संगठन ने न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से राकेश अस्थाना सहित जांच ब्यूरो के तमाम अधिकारियों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराने का अनुरोध किया था।

सीवीसी और सीबीआई की दलील

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सीवीसी से जवाब दाखिल करने को कहा था। सीवीसी ने दलील दी थी कि स्थिति विशेष परिस्थिति वाली थी इसी कारण यह फैसला हुआ है। सीबीआई डायरेक्टर के वकील फली एस नरीमन ने दलील दी थी कि सीबीआई डायरेक्टर के मामले को व्यापक तौर पर देखा जाना चाहिए। एनजीओ के वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि विनीत नारायण जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश जारी किया था उसके तहत पीएम, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस की कमिटी होगी जो हाई पावर कमिटी होगी और सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति वही करेगी साथ ही उनकी मंजूरी से ही ट्रांसफर होगा।

सीवीसी ने किया अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन: वर्मा

वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में 23 अक्टूबर, 2018 को याचिका दाखिल कर तीन आदेशों को खारिज करने की मांग की थी। इनमें से एक आदेश केंद्रीय सतर्कता आयोग और दो केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने जारी किए थे। वर्मा ने अपनी याचिका में कहा था कि इस फैसले में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है। वर्मा ने कहा था कि इन फैसलों में अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन किया गया।

क्या है पूरा विवाद?

बता दें कि अस्थाना मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले की जांच कर रहे थे। जांच के दौरान हैदराबाद का सतीश बाबू सना भी घेरे में आया। एजेंसी 50 लाख रुपए के ट्रांजैक्शन के मामले में उसके खिलाफ जांच कर रही थी। सना ने सीबीआई चीफ को भेजी शिकायत में कहा था कि अस्थाना ने इस मामले में उसे क्लीन चिट देने के लिए 5 करोड़ रुपए मांगे थे। हालांकि, 24 अगस्त को अस्थाना ने सीवीसी को पत्र लिखकर डायरेक्टर आलोक वर्मा पर सना से दो करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया था।

 

 

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