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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले पर सुनवाई 10 जनवरी तक टली, अब गठित हो सकती है नई बेंच

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है। अयोध्या में...
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले पर सुनवाई 10 जनवरी तक टली, अब गठित हो सकती है नई बेंच

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है। अयोध्या में विवादित जमीन के मामले में नई बेंच 10 जनवरी को अगली सुनवाई की पूरी रूपरेखा तय करेगी। यह मामला प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है। सुप्रीम कोर्ट में महज 60 सेंकड सुनवाई चली। इस दौरान किसी पक्ष से कोई दलील नहीं दी गई।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोध्या मामला अब 10 जनवरी को नई बेंच के सामने होगा और वही बेंच तय करेगी कि इस मामले की आगे कब सुनवाई हो। चीफ जस्टिस ने कहा कि दस जनवरी को उचित बेंच ही आगे के आदेश जारी करेगी। चीफ जस्टिस दस जनवरी से पहले बेंच का गठन करेंगे। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई के लिये तीन सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ गठित किये जाने की उम्मीद है। हाईकोर्ट ने इस विवाद में दायर चार दीवानी वाद पर अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था।

आपको बता दें कि यह सुनवाई ऐसे समय में होने जा रही है जब आम चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं और राजनीतिक गलियारों के साथ-साथ तमाम संगठनों के द्वारा सरकार पर अध्यादेश लाने का दबाव है।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि जनवरी में मिलेगी तारीख

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 29 अक्टूबर को कहा था कि यह मामला जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होगा जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम निर्धारित करेगी।  बाद में अखिल भारत हिन्दू महासभा ने एक अर्जी दायर कर सुनवाई की तारीख पहले करने का अनुरोध किया था परंतु न्यायालय ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि 29 अक्टूबर को ही इस मामले की सुनवाई के बारे में आदेश पारित किया जा चुका है। हिन्दू महासभा इस मामले में मूल वादकारियों में से एक एम सिद्दीक के वारिसों द्वारा दायर अपील में एक प्रतिवादी है।

मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं

इससे पहले, 27 सितंबर, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गयी टिप्पणी पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास नये सिरे से विचार के लिये भेजने से इंकार कर दिया था। इस फैसले में टिप्पणी की गयी थी कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है।  अयोध्या प्रकरण की सुनवाई के दौरान एक अपीलकर्ता के वकील ने 1994 के फैसले में की गयी इस टिप्पणी के मुद्दे को उठाया था। अनेक हिन्दु संगठन विवादित स्थल पर राम मंदिर का यथाशीघ्र निर्माण करने के लिये अध्यादेश लाने की मांग कर रहे हैं।  

सियासत गर्म

इस बीच, शीर्ष अदालत में  होने वाली सुनवाई महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को ही कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के मामले में न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अध्यादेश लाने के बारे में निर्णय का सवाल उठेगा। पीएम मोदी ने कहा था, 'हमने अपने घोषणापत्र में कहा है कि राम मंदिर का समाधान संविधान की पृष्ठभूमि में खोजा जाएगा।'

वहीं विहिप सहित कई हिंदू संगठन राम मंदिर का निर्माण करने के लिए अध्यादेश लाने की मांग कर रहे हैं। राजग के सहयोगी शिवसेना ने कहा, अगर 2019 चुनाव से पहले मंदिर नहीं बनता तो लोगों से धोखा होगा। इसके लिए भाजपा और संघ को माफी मांगनी पड़ेगी। वहीं, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का ही आदेश मानना चाहिए।

जबकि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, 'हमारी भगवान राम में आस्था है और अयोध्या में राम मंदिर ही बनना चाहिए ऐसा मजबूत विश्वास है।' आपको बता दें कि भैयाजी जोशी ने राम मंदिर को लेकर पीएम मोदी के बयान के बाद मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि आरएसएस अपने रवैये पर अडिग है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए कानून पारित किया जाए। उन्होंने कहा कि उन्हें पीएम मोदी के बयान के बारे में नहीं पता है लेकिन देश में हर कोई चाहता है कि राम मंदिर का निर्माण हो।

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