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अयोध्या मामले पर सुनवाई जनवरी 2019 तक टली

देश में राम मंदिर निर्माण को लेकर चल रही सियासत के बीच सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर...
अयोध्या मामले पर सुनवाई जनवरी 2019 तक टली

देश में राम मंदिर निर्माण को लेकर चल रही सियासत के बीच सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई हुई। लेकिन ये सुनवाई कुछ मिनट ही चल पाई और सुप्रीम कोर्ट ने इसकी अगली तारीख जनवरी, 2019 तय की है। यानी करीब 2 महीने बाद ही कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होगी। 

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एस के कौल और के एम जोसेफ वाली बेंच ने कहा, "जनवरी में उपयुक्त बेंच के समक्ष अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई की तारीख तय होगी।"

आज की सुनवाई  विवादित भूमि को तीन भागों में बांटने वाले 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर होनी थी। 

सीजेआई रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल एवं जस्टिस के. एम. जोसफ की पीठ ने इस मामले में सुनवाई की।

शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को 1994 के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे को 5 जजों वाली संविधान पीठ को सौंपने से इनकार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि 'मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं' है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। शीर्ष अदालत के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला इस मामले में प्रासंगिक नहीं है।

जस्टिस अशोक भूषण ने अपनी और तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा था कि उसे यह देखना होगा कि 1994 में 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने किस संदर्भ में यह फैसला सुनाया था। दूसरी ओर, बेंच के तीसरे सदस्य जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है और इसके लिए विस्तार से विचार की आवश्यकता है। अदालत ने 27 सितंबर को कहा था कि भूमि विवाद पर दीवानी वाद की सुनवाई 3 न्यायाधीशों की पीठ 29 अक्टूबर को करेगी। मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग है या नहीं, यह मुद्दा उस वक्त उठा जब तीन न्यायाधीशों की पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?

बता दें कि अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए।

क्या है अयोध्या विवाद?

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दिवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट ने दिए फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों में बीच का हिस्सा हिंदुओं का होगा जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है। निर्मोही अखाड़ा को दूसरा हिस्सा दिया गया इसी में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल है। बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा यथास्थिति बहाल कर दी थी।

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