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प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं, राज्य सरकारें इसके लिए नहीं है बाध्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक प्रमुख फैसले में कहा कि सरकारी पदों पर पदोन्नति में आरक्षण को एक मौलिक अधिकार...
प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं, राज्य सरकारें इसके लिए नहीं है बाध्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक प्रमुख फैसले में कहा कि सरकारी पदों पर पदोन्नति में आरक्षण को एक मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी अदालत राज्य सरकार को एससी / एसटी को आरक्षण देने का आदेश नहीं दे सकती।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की एक पीठ ने कहा, "इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। पदोन्नति में आरक्षण का दावा किसी व्यक्ति के लिए कोई मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट द्वारा राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने का निर्देश देते हुए कोई भी आदेश जारी नहीं किया जा सकता है।”

संविधान पीठ की उन उदाहरणों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4-ए) व्यक्ति को पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का मौलिक अधिकार नहीं देता है। ये अनुच्छेद राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए नियुक्ति और पदोन्नति के मामलों में आरक्षण देने का अधिकार देते हैं ‘सिर्फ तब जब राज्य को लग रहा हो कि वे राज्य की सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।’

राज्य पदोन्नति के मामलों में एससी/एसटी के लिए आरक्षण करने के लिए बाध्य नहीं हैं

निर्णय में कहा गया, ‘प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता राज्य की व्यक्तिपरक संतुष्टि के भीतर का मामला है।’ इस तरह राज्य सरकार के पास परिस्थितियों के आधार पर विचार कर आरक्षण प्रदान करने का विशेषाधिकार है। अदालत ने कहा, ‘यह तय कानून है कि राज्य सरकार को सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति के लिए आरक्षण देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। इसी प्रकार, राज्य पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण करने के लिए बाध्य नहीं हैं।’

प्रासंगिक डेटा संग्रह की आवश्यकता

सार्वजनिक नौकरियों में एससी/ एसटी के प्रतिनिधित्व के संबंध में प्रासंगिक डेटा संग्रह की आवश्यकता का हवाला देते हुए, शीर्ष अदालत ने इस अभ्यास पर जोर दिया कि आरक्षण शुरू करने के लिए यह आवश्यक है। जब राज्य सरकार ने आरक्षण प्रदान नहीं करने का निर्णय लिया, तो यह डेटा संग्रह अभ्यास की आवश्यकता नहीं है। हालांकि यदि राज्य अपने विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करता है और प्रमोशन में आरक्षण देने का प्रावधान करता है तो सबसे पहले उसे इस तरह के आंकड़े इकट्ठा करने होंगे जिससे ये स्पष्ट होता हो सरकारी पदों पर किसी विशेष समुदाय या वर्ग का प्रतिनिधित्व कम है।

यदि सरकारी पदों पर पदोन्नति में एससी/एसटी आरक्षण प्रदान करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी जाती है तो उसे कोर्ट के सामने ऐसे आंकड़े पेश करने होंगे जो ये सिद्ध कर सके कि ये आरक्षण देना आवश्यक था और इससे प्रशासन की दक्षता को प्रभावित नहीं होती है।

क्या है मामला? 

शीर्ष अदालत का फैसला उत्तराखंड सरकार के लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता (सिविल) के पदों पर पदोन्नति में एससी और एसटी के लिए आरक्षण से जुड़ी याचिकाओं के एक खंड पर आया था, जहां सरकार ने आरक्षण के खिलाफ फैसला किया था। लेकिन, उच्च न्यायालय ने राज्य से कहा कि वह पहले एससी / एसटी के प्रतिनिधित्व के साथ जुड़े मात्रात्मक डेटा एकत्र करे और मामले पर फैसला करे। हाई कोर्ट ने एक और निर्देश भी दिया था कि भविष्य की सभी रिक्तियां जो कि सहायक अभियंता के पदों पर पदोन्नति द्वारा भरी जानी हैं, केवल एससी और एसटी के सदस्यों की होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने इन निर्देशों को अलग रखा।

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