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कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट बुधवार को सुबह सुनाएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार के खिलाफ 15 बागी कांग्रेस-जद...
कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट बुधवार को सुबह सुनाएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार के खिलाफ 15 बागी कांग्रेस-जद (एस) विधायकों द्वारा उनके इस्तीफे की स्वीकृति में देरी के लिए दायर याचिका पर सुनवाई हुई। एक लंबी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाने के लिए बुधवार सुबह साढ़े दस बजे का वक्त तय किया है। सीजेआई  रंजन गोगोई ने कहा है कि सुबह 10.30 वह इस मामले में फैसला सुनाएंगे।

सुनवाई के दौरान कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने न्यायालय से कहा कि उनसे तय समय सीमा में विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने को नहीं कहा जा सकता है। विधानसभा अध्यक्ष के वकील ने उच्चतम न्यायालय में कहा, "कृपया पुराने आदेश में संशोधन करें, मैं अयोग्यता और इस्तीफा दोनों पर कल तक फैसला कर लूंगा।"

सिंघवी ने बेंच से कहा कि आप पुराना आदेश वापस ले लीजिए ताकि स्पीकर कल (बुधवार को) इस्तीफे पर फैसला ले पाएं। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।

इससे पहले बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच को इस्तीफों का ब्यौरा दिया। सीजेआई ने वकील से इस्तीफे और अयोग्य ठहराने की तारीखें भी पूछीं।

इस दौरान रोहतगी ने कहा, ''सभी 10 याचिकाकर्ताओं (विधायकों) ने अदालत के निर्देश पर 10 जुलाई को इस्तीफा दे दिया था। स्पीकर चाहें तो फैसला ले सकते हैं, क्योंकि इस्तीफे स्वीकार करना और विधायकों को अयोग्य ठहराना अलग-अलग मामले हैं। स्पीकर को सिर्फ यह देखना होता है कि इस्तीफा अपनी इच्छा से दिया है या नहीं? अब विधानसभा में विश्वास मत पर वोटिंग होनी है और बागी विधायकों को व्हिप जारी कर लौटने के लिए मजबूर किया जा रहा है। याचिकाकर्ता अब विधायक नहीं रहना चाहते हैं। कोई उन्हें इसके लिए मजबूर न करे। उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, उसे स्वीकार किया जाए।''

कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने कहा कि न्यायालय फैसला होने के बाद ही हस्तक्षेप कर सकता है, विधानसभा अध्यक्ष के फैसला लेने से पहले न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है।

वहीं रोहतगी ने कहा कि इस्तीफा देने के मेरे मौलिक अधिकार का कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने उल्लंघन किया है, वह गलत मंशा से और पक्षपातपूर्ण तरीके से व्यवहर कर रहे हैं।

बागी विधायकों ने कहा कि इस्तीफा सौंपे जाने के बाद उसका निर्णय गुण-दोष के आधार पर होता है न कि अयोग्यता की कार्यवाही लंबित रहने के आधार पर। बागी विधायकों के वकील मुकुल रोहतगी ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को देखना होगा कि इस्तीफा स्वेच्छा से दिया गया है या नहीं। कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष को विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करना ही होगा, उससे निपटने का और कोई तरीका नहीं है।

रोहतगी ने कहा कि विधानसभा में विश्वास मत होना है और बागी विधायकों को इस्तीफा देने के बावजूद पार्टी की व्हिप का मजबूरन पालन करना पड़ेगा। अयोग्य घोषित करना संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत संक्षिप्त-सुनवाई है, जबकि इस्तीफे का मामला अलग है, उसे स्वीकार किया जाना सिर्फ एक मानक पर आधारित है कि वह स्वैच्छिक है या नहीं।

रोहतगी ने कहा कि बागी विधायकों ने भाजपा के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा है इसे साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है। रोहतगी ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि अयोग्यता कार्यवाही कुछ नहीं है बल्कि विधायकों के इस्तीफा मामले पर टाल-मटोल करना है। बागी विधायकों ने कहा कि कांग्रेस- जद (एस) की सरकार अल्पमत में आ गई है, विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफा स्वीकार नहीं कर हमें विश्वासमत के दौरान सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिए बाध्य करने का प्रयास कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने हमें अयोग्य ठहराने के लिए इस्तीफे को लटकाए रखा, अयोग्य ठहराए जाने से बचने के लिए इस्तीफा देने में कुछ भी गलत नहीं है। कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष को दोपहर दो बजे तक इस्तीफों पर फैसला लेने और अयोग्यता पर बाद में निर्णय लेने का निर्देश दिया जा सकता है।

विधायकों की अर्जी सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी: कुमारस्वामी

सिंघवी ने न्यायालय से कहा  कि कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने अभी तक विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर फैसला नहीं लिया है, न्यायालय के पास दंडित करने का पूरा अधिकार है।

कुमारस्वामी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को तय समय में फैसला करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने कहा कि बागी विधायक एकजुट होकर सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं, वे सभी साथ में होटल गए थे। न्यायालय के पास विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश देने का अधिकार नहीं है।

धवन ने न्यायालय से कहा कि यह विधानसभा अध्यक्ष बनाम न्यायालय का मामला नहीं है, यह मुख्यमंत्री और एक ऐसे व्यक्ति के बीच का मामला है जो सरकार गिराकर खुद मुख्यमंत्री बनना चाहता है।

कुमारस्वामी ने शीर्ष अदालत से कहा कि न्यायालय को विधायकों की अर्जी सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी। जब इस्तीफे की प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ हो तब न्यायालय विधानसभा अध्यक्ष को शाम छह बजे तक इस पर फैसला करने का निर्देश नहीं सकता।

बता दें कि इस्तीफा देने वाले 15 विधायकों की मांग है कि शीर्ष अदालत स्पीकर को उनके इस्तीफे स्वीकार करने का निर्देश दे। विधायकों का कहना है कि स्पीकर इस मामले में जानबूझकर देरी कर रहे हैं। सदन का विश्वास खो चुकी कांग्रेस-जेडीएस सरकार को बचाने के लिए विधायकों को अयोग्य करार देने का डर दिखाया जा रहा है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच अब इस पर फैसला सुनाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि फिलहाल न इस्तीफे पर फैसला लिया जाएगा, न विधायकों को सदस्यता अयोग्य ठहराया जाएगा।

10 बागी विधायक, जिनकी याचिका पर यथास्थिति का आदेश दिया गया था, वे थे- प्रताप गौड़ा पाटिल, रमेश जारकीहोली, बीरती बसवराज, बीसी पाटिल, एस टी सोमशेखर, अरबेल शिवराम हेब्बर, महेश कुमाथल्ली, के गोपालैया, ए एच विश्वनाथ और नरानाथ।

इन विधायकों के इस्तीफे ने कर्नाटक में एच डी कुमारस्वामी सरकार को संकट में डाल दिया क्योंकि इससे विधानसभा में बहुमत खोने का खतरा है। विधायकों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका की स्थिरता को बनाए रखने के सवाल के अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे संबोधित करने की जरूरत है कि क्या स्पीकर विधायकों के इस्तीफे को स्वीकार करने से पहले अयोग्यता की कार्यवाही पर निर्णय लेने के लिए बाध्य है।

पांच और बागी विधायकों की याचिका पर भी सुनवाई

कर्नाटक से कांग्रेस के 5 बागी विधायकों ने 13 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष उनके त्यागपत्र स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इन विधायकों में आनंद सिंह, के सुधाकर, एन नागराज, मुनिरत्न और रोशन बेग शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार को कांग्रेस और जेडीएस के बागी विधायकों के इस्तीफे और उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिये दायर याचिका पर 16 जुलाई तक कोई भी निर्णय लेने से रोक दिया था।

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