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चंद्रयान-2, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान के दिलचस्प तथ्य

चंद्रयान-2 के जरिये भेजा गया लेंडर विक्रम अगली सुबह 1.55 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, तो यह...
चंद्रयान-2, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान के दिलचस्प तथ्य

चंद्रयान-2 के जरिये भेजा गया लेंडर विक्रम अगली सुबह 1.55 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, तो यह अद्भुत पल होगा क्योंकि सॉफ्ट लैंडिंग करने भारत दुनिया का चौथा देश होगा। यही नहीं, दक्षिणी ध्रुव पर रोवर भेजने वाला दुनिया का पहला देश होगा। भारत के इस स्पेस मिशन से जुड़े कई दिलचस्प तथ्य हैं।

सुबह साढ़े पांच बजे प्रज्ञान कहेगा, गुड मॉर्निंग, मून

लैंडिंग के बाद लेंडर विक्रम से रोवर प्रज्ञान साढ़े पांच से साढ़े बजे के बीच बाहर निकलेगा और चंद्रमी की सतह पर भ्रमण करेगा। लेंडर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर 70 डिग्री दक्षिण में मेंजीनस सी और सिंपेलियस एन नाम के दो क्रेटरों के बीच ऊंचे स्थान पर उतरेगा। रोवर प्रज्ञान एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा।

चंद्रयान-2 मिशन का क्या है मकसद

चूंकि चंद्रमी पृथ्वी के सबसे निकट का अंतरिक्षीय िपंड है, इसलिए अंतरिक्ष का अध्ययन करने के लिए यह सबसे बेहतरीन माध्यम है। अभी चंद्रमा के बारे में काफी कुछ जानना बाकी है, इसीलिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने चंद्रयान दोबारा भेजा है। अनंत अंतरिक्ष में मिशन भेजने के लिए मौजूदा तकनीक को जांचने और प्रदर्शित करने के लिए चंद्रमा सबसे अच्छा साधन है।

दक्षिणी ध्रुव की खोज क्यों

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव खासतौर पर अत्यंत दिलचस्प है क्योंकि चंद्रमा की यह सतह हमेशा छाया में रहने के कारण अंधेरे में रहती है। दक्षिणी ध्रुव की सतह आकार में भी उत्तरी ध्रुव की सतह से कहीं ज्यादा बड़ी है। चूंकि अभी तक यहां कोई रोवर नहीं उतरा है, ऐसे में वहां नजदीक से कभी अध्ययन नहीं हो पाया। वैसे भी पृथ्वी के शुरुआती इतिहास के साथ चंद्रमा का सबसे ज्यादा संबंध है। चंद्रमा पर ही हमें इनर सोलर सिस्टम का ऐतिहासिक रिकॉर्ड देखने और समझने को मिलेगा। चंद्रमाम पर पहले ही कई मिशन भेजे जा चुके हैं। इसके बावजूद अभी काफी कुछ समझना बाकी है।

पानी मिलने की उम्मीद

हमेशा अंधेरे में रहने वाली चंद्रमा की इस सतह पर पानी मिलने की भी संभावना है। इसके अतिरिक्त दक्षिणी ध्रुव में कई क्रेटर हैं जो अत्यधिक ठंडे रहते हैं। इसमें शुरुआती सोलर सिस्टम के फॉसिल रिकॉर्ड मिलने की भी संभावना है।

गहराई से जांच करेगा मिशन

चंद्रमा की उत्पत्ति और बनावट को समझने के लिए अब जरूरी हो गया है कि उसकी सतह की विस्तृत मैपिंग की जाए। इससे चंद्रमा की सतह के तत्वों की भी जानकारी मिलेगी। चंद्रयान-1 की खोज में पानी के कण के सबूत मिले थे। अब चंद्रमा की सतह पर और सतह के नीचे पानी के कणों की मात्रा के बारे में जांच किए जाने की आ‍वश्यकता है।

चंद्रयान-2 की खासियत

यह भारतीय अभियान इसलिए खास है क्योंकि यह पहली बार वह करने जा रहा है जो पहले किसी अन्य देश ने नहीं किया। यानी पहली बार दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरेगा। इस मिशन को पूरा करने के बाद अनंत अतंरिक्ष में अभियान भेजने के लिए भारत का आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा। दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग भी पहली बार होगी। इसके लिए सिर्फ स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

मिशन की चुनौतियां

मिशन की शुरुआत से लेकर यान से लैंडर के निकलने तक की इसरो को पूरी सफलता मिली है। आगे भी वैज्ञानिकों को मिशन के सफल होने की पूरी उम्मीद है। लेकिन इसकी चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। अब जब लैंडर चंद्रमा के वायुमंडल में प्रवेश कर चुका है, तो रोवर प्रज्ञान के संबंधित चुनौतियां सबसे अहम है। वैसे लैंडर की चुनौती चंद्रमी की सतह पर उसके उतरने तक बनी रहेंगी। इसकी सबसे बड़ी चुनौती कम और सुरक्षित रफ्तार से चंद्रमा पर उतरने की है। लैंडर से रोवर के बाहर निकलने, सतह पर उसके भ्रमण करने की मैकेनिकल सिस्टम, पावर सिस्टम, थर्मल सिस्टम, कम्युनिकेशन और मोबिलिटी सिस्टम को दुरुस्त रखना प्रमुक चुनौतियां हैं।

चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का जीवनकाल

इसके ऑर्बिटर का जीवन काल एक साल का होगा। जबकि लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान का जीवनकाल एक चंद्र दिवस (14 पृथ्वी के दिन) का होगा। चंद्रयान-2 का रोवर जहां चंद्रमा की सतह का अध्ययन करेगा, वहीं उसका ऑर्बिटर चंद्रयान उसके वायुमंडल का अध्ययन करेगा और आंकड़े पृथ्वी पर वैज्ञानिकों को भेजेगा। ऑर्बिटर चंद्रमा से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा लगाएगा और रिमोट सेंसिंग से जांच करेगा

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