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कृषि अनुसंधान का बजट दोगुना करने की जरूरत : आईसीएआर

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कृषि शोध के बजट को अगले वित्तवर्ष में दोगुना करने की जरूत बतायी है। इस साल यह 800 करोड़ रुपये है।
कृषि अनुसंधान का बजट दोगुना करने की जरूरत : आईसीएआर

आईसीएआर अधिक उपज देने वाली फसलें विकसित करना चाहती है जो जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर सके और किसानों की आय हो सके। बढ़ती आबादी के बीच देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आईसीएआर ने धान और गेहूं सहित कई फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने की योजना तैयार की है जो बहुपोषक तत्वों से समृद्ध हो।

केवल फसल ही नहीं बल्कि आईसीएआर ने फलों और सब्जियों की किस्मों को भी विकसित करने की योजना बनाई है जिनका उद्योगों के द्वारा आसानी से प्रसंस्करण किया जा सके और बर्बादी को कम किया जा सके। आईसीएआर दूध उत्पादन को बढ़ाने के लिए क्लोनिंग की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल भी करना चाहता है।

आईसीएआर के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने पीटीआई-भाषा को एक साक्षात्कार में बताया, इन सब चीजों को करने के लिए मुझे शोध एवं विकास के लिए मिलने वाले अनुदान को दोगुना करने की आवश्यकता है। मौजूदा समय में यह अनुदान 800 करोड़ रुपये है।

महापात्रा ने कहा कि धान और गेहूं के मामले में पूरे देश ने अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन हम उपज के मौजूदा स्तर के साथ आगे जारी नहीं रह सकते। असली बात यह है कि हमें किसानों की आय को दोगुना करना है। औसत उपज का स्तर काफी कम है। उन्होंने पंजाब के किसानों का उदाहरण दिया जिन्होंने धान के मामले में प्रति हेक्टेयर आठ टन और गेहूं के मामले में छह से सात टन प्रति हेक्टेयर उपज का स्तर हासिल किया है और जिसका अनुपालन देश के अन्य भागों में नहीं किया जा सका।

उन्होंने कहा, इस खाई को हर तरह के समर्थन के जरिये पाटे जाने की जरूरत है। धान और गेहूं की संभावित उपज की क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है। भारत में मैं इसे 10 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक तक और गेहूं के मामले में इसे आठ टन प्रति हेक्टेयर तक ले जाना चाहता हूं।

आईसीएआर के महानिदेशक ने कहा कि अगले वर्ष के लिए उन्होंने इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए शोध के संदर्भ में संस्थान के लिए कठिन लक्ष्य निर्धारित किया है।

जाड़े के मौसम में तापमान अधिक रहने और इसका गेहूं की फसल पर होने वाले प्रभाव के प्रति चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि गेहूं के लिए मैं जिनोमिक्स समर्थित ब्रीडिंग का इस्तेमाल करना चाहता हूं। वैकल्पिक रूप से जीव संवर्धित रख पर निशाना कायम किया जा सकता है।

गेहूं और धान के अलावा आईसीएआर दलहन की उपज को बढ़ाकर दो टन प्रति हेक्टेयर से अधिक करना चाहता है और इसके लिए आधुनिक खेती प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना चाहता है ताकि देश को इस मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

कूपोषण की समस्या को संबोधित करने के लिए आईसीएआर जस्ता और प्रोटीन जैसे बहुपोषक तत्वों के साथ चावल किस्मों को विकसित करना चाहता है। हालांकि भारत गेहूं, धान और दलहन जैसे कई फसलों के मामले में विशालतम उत्पादक देशों में से है लेकिन उनकी प्रति हेक्टेयर उपज वैश्विक औसत से काफी कम है।

बागवानी फसलों के मामले में आईसीएआर की ऐसी किस्मों को सामने लेकर आने की योजना है जिनका उद्योग जगत के द्वारा आसानी से प्रसंस्करण किया जा सके। उन्होंने कहा, बागवानी फसलों की भारी बर्बादी होती है। इसके लिए हमें ऐसी किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है जिनका प्रसंस्करण किया जा सके। मौजूदा समय में हमारे पास अंगूर और साइट्रस फलों में कुछ किस्में हैं लेकिन हमें अधिक की आवश्यकता है। उद्योग जगत को प्रसंस्करण करने योग्य किस्मों की आवश्यकता है।

पशुपालन के क्षेत्रा में आईसीएआर ने कहा कि संस्थान ने भैंस की क्लोनिंग में सफलता हासिल की है। दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए बेहतर दूध देने वाली मवेशियों के क्लोन से बड़ी मदद मिलेगी। इसी तरह जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए विलुप्त होने के खतरे के दायरे में आने वाले जीवों की भी क्लोनिंग किये जाने की आवश्यकता है।

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