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समलैंगिकता से लेकर एडल्ट्री तक, 2018 में अदालत के ऐतिहासिक फैसले जिसने रखी बदलाव की नींव

साल 2018 कई अदालती फैसलों को लेकर सुर्खियों में रहा है। इस साल देश की सर्वोच्च अदालत ने कई बड़े फैसले...
समलैंगिकता से लेकर एडल्ट्री तक, 2018 में अदालत के ऐतिहासिक फैसले जिसने रखी बदलाव की नींव

साल 2018 कई अदालती फैसलों को लेकर सुर्खियों में रहा है। इस साल देश की सर्वोच्च अदालत ने कई बड़े फैसले सुनाए। इनमें कई फैसले ऐसे थे जो रूढ़िवादी सोच के खिलाफ और आधुनिक समाज के हित में रहे। इनमें एलजीबीटी से लेकर एडल्ट्री और सबरीमाला तक फैसले शामिल हैं। आने वाले वक्त में ये फैसले हमारे भारतीय समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। आइए, नजर डालते हैं सुप्रीम कोर्ट के ये ऐसे ही पांच अहम फैसलों पर-

समलैंगिकता अपराध नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को समलैंगिकता पर ऐतिहासिक फैसला दिया। 5 जजों की बेंच ने धारा 377 को रद्द करते हुए एलजीबीटी समुदाय के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि दो वयस्कों के बीच परस्पर सहमति से स्थापित समलैंगिक यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आ सकते। यौन प्राथमिकता बाइलॉजिकल और नेचुरल है। यह बेहद व्यक्तिगत मामला है। एलजीबीटी समुदाय को भी समान अधिकार होना चाहिए। इसमें भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए इसे पूर्णतया वैध कर दिया।

एडल्ट्री पर आया ये फैसला

27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार रोधी कानून को रद्द करते हुए इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए आईपीसी की धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून को खत्म कर दिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि यह कानून बेशक तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह महिला के जीने के अधिकार पर भी असर डालता है। कोर्ट ने धारा 497 की व्याख्या करते हुए कहा कि इसके अनुसार पत्नी पति की संपत्ति मानी जाती है जो कि भेदभावपूर्ण है। जिस प्रावधान से महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव हो, वह असंवैधानिक है।

सभी उम्र की महिलाओं के लिए सबरीमाला के दरवाजे खुले   

धार्मिक मसलों पर भी इस साल सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसले दिए। इनमें सबसे महत्वपूर्ण केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित था। 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगे बैन को हटा दिया। फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि महिलाओं को भी पूजा करने का समान अधिकार है। इसे रोकना मौलिक अधिकार का हनन है। मंदिर में 10 साल से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगी हुई थी।

हर जगह आधार को लिंक कराना अनिवार्य नहीं

‘आधार’ पर इस साल खूब हो-हंगामा हुआ। बैंक से लेकर मोबाइल कंपनियों तक में आधार की अनिवार्यता पर प्रश्न खड़े हुए। डेटा लीक की कई बार आशंकाएं जाहिर की गईं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने आधार की संवैधानिकता को तो बरकरार रखा, लेकिन ये साफ कर दिया कि हर जगह आधार को लिंक कराना अनिवार्य नहीं होगा। इस पर 38 दिनों तक लंबी सुनवाई चली थी। कोर्ट ने साफ किया कि मोबाइल और निजी कंपनियां आधार की मांग नहीं कर सकतीं। कोर्ट ने आंशिक बदलाव के साथ आधार अधिनियम की धारा 57 को हटा दिया।

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