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छोटे शहर के वकील से लेकर न्यायपालिका के शिखर तक, 53वें सीजेआई सूर्यकांत ने कई अहम फैसले सुनाए हैं

अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने, बिहार मतदाता सूची संशोधन, पेगासस स्पाइवेयर मामला,...
छोटे शहर के वकील से लेकर न्यायपालिका के शिखर तक, 53वें सीजेआई सूर्यकांत ने कई अहम फैसले सुनाए हैं

अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने, बिहार मतदाता सूची संशोधन, पेगासस स्पाइवेयर मामला, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकता के अधिकार जैसे अहम फैसलों का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

हरियाणा के हिसार जिले में मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में न्यायमूर्ति सूर्यकांत एक छोटे शहर के वकील से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचे हैं।

 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में न्यायमूर्ति सूर्यकांत को शपथ दिलाई और उन्होंने हिंदी में शपथ ली। वह लगभग 15 महीने तक इस पद पर रहेंगे। वह नौ फरवरी 2027 को 65 वर्ष की उम्र होने पर यह पद छोड़ देंगे।

 

न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में अपनी शीर्ष दो प्राथमिकताओं को रेखांकित करते हुए, प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने हाल ही में मीडिया से कहा था कि अदालतों में लंबित पांच करोड़ से अधिक मामलों से निपटना और विवाद समाधान के वैकल्पिक तरीके के रूप में मध्यस्थता को बढ़ावा देना उनके दो महत्वपूर्ण लक्ष्य होंगे।

 

प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत हाल ही में अपने पूर्ववर्ती न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने फैसला सुनाया कि न्यायालय राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों या राष्ट्रपति पर कोई समयसीमा नहीं लगा सकता है, लेकिन साथ ही कहा कि राज्यपालों के पास विधेयकों को ‘हमेशा के लिए’ रोके रखने की ‘अनियंत्रित’ शक्तियां नहीं हैं।

 

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में कई उल्लेखनीय फैसले देने वाले न्यायमूर्ति सूर्यकांत को पांच अक्टूबर, 2018 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

 

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने से जुड़े फैसले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकता के अधिकारों पर फैसले देने के लिए जाना जाता है।

 

वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून को स्थगित रखा था, तथा निर्देश दिया था कि सरकार के समीक्षा करने तक इसके तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी।

 

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने निर्वाचन आयोग से बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर रखे गए 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने को भी कहा था। उन्होंने निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया था। 

 

जमीनी स्तर पर लोकतंत्र और लैंगिक न्याय पर जोर देने वाले एक आदेश में, उन्होंने एक ऐसी पीठ का नेतृत्व किया जिसने गैरकानूनी तरीके से पद से हटाई गई एक महिला सरपंच को बहाल किया और मामले में लैंगिक पूर्वाग्रह को उजागर किया। उन्हें यह निर्देश देने का श्रेय भी दिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन समेत बार एसोसिएशन में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।

 

न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जांच के लिए शीर्ष अदालत की पूर्व न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। उन्होंने रक्षा बलों के लिए ‘वन रैंक-वन पेंशन’ (ओआरओपी) योजना को भी बरकरार रखा था और इसे संवैधानिक रूप से वैध बताया तथा सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशन में समानता का अनुरोध करने वाली महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी।

 

एक अन्य उल्लेखनीय मामले में उन्होंने उत्तराखंड में चार धाम परियोजना को बरकरार रखा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसके रणनीतिक महत्व पर ज़ोर दिया। उनकी पीठ ने पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को उनकी ‘अपमानजनक’ टिप्पणियों के लिए चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करने का लाइसेंस नहीं हैं।’’

 

न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ के मेजबान समय रैना समेत कई स्टैंड-अप कॉमेडियन को उनके शो में दिव्यांगजनों का उपहास करने के लिए फटकार लगाई और केंद्र को ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश लाने का निर्देश दिया।

 

यह कहते हुए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है, प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कर्नल सोफिया कुरैशी पर निशाना साधने वाले मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की टिप्पणी के लिए उन्हें फटकार लगाई। कुरैशी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर मीडिया ब्रीफिंग के बाद देश भर में प्रसिद्धि हासिल की थी। पीठ ने कहा कि एक मंत्री द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द जिम्मेदारी की भावना के साथ होना चाहिए। उन्होंने लगातार इस बात पर जोर दिया कि भ्रष्टाचार शासन और जनता के विश्वास को कमजोर करता है।

 

उन्होंने 2023 के फैसले में इसे एक ‘गंभीर सामाजिक खतरा’ करार दिया और सीबीआई को ‘बैंक और डेवलपर्स के बीच साठगांठ का खुलासा करने वाले 28 मामलों की जांच करने का आदेश दिया। इस धोखाधड़ी से घर खरीदारों को नुकसान हुआ। उन्होंने आबकारी नीति मामले में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ का भी नेतृत्व किया और कहा कि एजेंसी को ‘‘पिंजरे में बंद तोता’’ होने की धारणा को दूर करने के लिए काम करना चाहिए। उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत होने के बाद से वह 300 से अधिक पीठों का हिस्सा रहे हैं।

 

न्यायमूर्ति सूर्यकांत उन सात न्यायाधीशों की पीठ में भी थे, जिसने 1967 के एएमयू के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे उसके अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था। वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने कथित तौर पर कुछ लोगों की निगरानी के लिए इजराइली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के उपयोग की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की एक समिति गठित की थी।

 

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