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क्या पसंदीदा नौकरशाही तैयार करना चाहती है मोदी सरकार? सीधी भर्ती पर उठे सवाल

केंद्र सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवी लोगों को नौकरशाही में लाने का फैसला किया है। इस तरह...
क्या पसंदीदा नौकरशाही तैयार करना चाहती है मोदी सरकार? सीधी भर्ती पर उठे सवाल

केंद्र सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवी लोगों को नौकरशाही में लाने का फैसला किया है। इस तरह ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री पर लंबे समय से विचार किया जा रहा था। फिलहाल मोदी सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों के 10 विशेषज्ञों को संयुक्त सचिव स्तर पर भर्ती करने का निर्णय लिया है, जिस पर कई सवाल भी उठ रहे हैं।

अभी तक संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा के जरिये आने वाले अधिकारी ही केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव बनते थे। कुछ बाहरी लोगों को मंत्रियों का ओएसडी या मंत्रालयों में सलाहकार बनाकर सरकार में लाया जाता था, लेकिन अब यूपीएससी के बिना ही अनुभवी उम्मीदवारों के संयुक्त सचिव बनने का रास्ता खुल गया है। हालांकि, इसके जरिये आरक्षण की अनदेखी और नौकरशाही को पार्टी के पसंदीदा लोगों से भरने के आरोप भी लग रहे हैं।

बहुप्रतीक्षित लैटरल एंट्री की औपचारिक अधिसूचना सरकार की ओर से जारी कर दी गई है। रविवार को संयुक्त सचिव स्तर पर नियुक्ति के लिए डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (DoPT) ने विस्तृत गाइडलाइंस के साथ अधिसूचना जारी की। इन भर्तियों के लिए कैंडिडेट की न्यूनतम उम्र 40 वर्ष रखी गई है। इन्हें तीन साल के अनुबंध पर रख जाएगा, जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है। इन्हें 144200-218200 रुपये प्रतिमाह का वेतनमान और इस स्तर के अधिकारियों को मिलने वाली सुविधाएं और भत्ते दिए जाएंगे।

इस पहल का मकसद सरकारी सेवाओं में नए लोगों और विशेषज्ञता को जगह देना बताया जा रहा है। यूपीए सरकार ने भी योजना आयोग में विशेषज्ञों की भर्ती और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से जरिये इस कमी को दूर करने का प्रयास किया था। लेकिन बाहरी विशेषज्ञों को सीधे संयुक्त सचिव स्तर पर नियुक्ति देना मोदी सरकार का बड़ा कदम है।

ब्यूरोक्रेसी में पिछले दरवाजे से इन भर्तियों का मुद्दा राजनीतिक रूप से भी तूल पकड़ने लगा है। सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने यूपीएससी और एसएससी की अनदेखी पर सवाल उठाया है। उन्होंने सरकार के आखिरी कुछ महीनों में आईएएस रैंक के पदों को आरक्षण को नजरअंदाज कर संघियों से भरने का आरोप लगाया है।

राजद के नेता तेजस्वी यादव ने भी इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘यह मनुवादी सरकार UPSC को दरकिनार कर बिना परीक्षा के नीतिगत व संयुक्त सचिव के महत्वपूर्ण पदों पर मनपसंद व्यक्तियों को कैसे नियुक्त कर सकती है? यह संविधान और आरक्षण का घोर उल्लंघन है। कल को ये बिना चुनाव के प्रधानमंत्री और कैबिनेट बना लेंगे। इन्होंने संविधान का मजाक बना दिया है।‘

वरिष्ठ नेता शरद यादव ने कहा कहा कि सरकार संयुक्त सचिव स्तर पर लेटरल एंट्री से गलत मिसाल पेश कर रही है। नीति आयोग का नाम परिवर्तित कर या इसी तरह पुराने सिस्टम में बदलाव कर क्या हासिल किया। यह पहले से काम कर रहे अधिकारियों के प्रदर्शन को प्रभावित करेगा। सरकार को फिर से सोचना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार माधवन नारायणन ने ट्वीट किया है, इस विडंबना पर विचार करें। दिल्ली में आप सरकार सलाहकारों की भी नियुक्ति नहीं कर सकती लेकिन केंद्र सरकार संयुक्त सचिवों की लेटरल एंट्री करेगी।

10 क्षेत्रो के विशेषज्ञों की नियुक्ति                    

फिलहाल सरकार 10 क्षेत्रों से जुड़े 10 अनुभवी लोगों को जॉइंट सेक्रटरी स्तर पर नियुक्त करेगी। ये 10 क्षेत्र हैं- फाइनैंस सर्विस, इकनॉमिक अफेयर्स, ऐग्रिकल्चर, रोड ट्रांसपोर्ट, शिपिंग, पर्यावरण, रिन्यूअबल एनर्जी, सिविल एविएशन और कॉमर्स। इन मंत्रालयों और विभागों में नियुक्ति कर विशेषज्ञता के हिसाब से ही पोस्टिंग होगी।

सालों से लंबित था प्रस्ताव, अब हुआ लागू

ब्यूरोक्रेसी में लैटरल ऐंट्री को लेकर 2005 से विचार किया जा रहा है। तब प्रशासनिक सुधार पर एक रिपोर्ट आई थी। लेकिन उस समय इसे सिरे से खारिज कर दिया गया। फिर 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई। लेकिन पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई।

पीएम मोदी ने 2016 में लैटरल एंट्री की संभावना तलाशने के लिए एक कमेटी बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अनुशंसा की। ब्यूरोक्रेसी के अंदर इस प्रस्ताव पर विरोध और आशंका दोनों रही थी, जिस कारण इसे लागू करने में देरी हुई। पहले सचिव स्तर के पद पर भी लैटरल ऐंट्री की अनुशंसा की गई थी, लेकिन सीनियर ब्यूरोक्रेसी के विरोध के कारण अभी केवल संयुक्त सचिव के पद पर इसकी पहल की गई है।

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