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जलियांवाला बाग में दंडवत हुए कैंटरबरी के आर्क बिशप, कहा- मैं शर्मिंदा हूं

कैंटरबरी (इंग्‍लैंड) के आर्क बिशप जस्टिन वेल्बी मंगलवार को पंजाब में जलियांवाला बाग मेमोरियल...
जलियांवाला बाग में दंडवत हुए कैंटरबरी के आर्क बिशप, कहा- मैं शर्मिंदा हूं

कैंटरबरी (इंग्‍लैंड) के आर्क बिशप जस्टिन वेल्बी मंगलवार को पंजाब में जलियांवाला बाग मेमोरियल पहुंचे। इस दौरान उन्होंने कहा कि 1919 में जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के लिए वह बेहद बहुत शर्मिंदा और दुखी हैं। ईश्वर से माफ कर देने की प्रार्थना करते हुए जस्टिन वेल्बी जमीन पर दंडवत लेट गए। उन्होंने बार-बार इस घटना पर दुख जाहिर किया।

अपने दस दिवसीय भारत दौरे के आखिरी चरण में नरसंहार में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के बाद जस्टिन वेल्बी ने कहा, 'मैं ब्रिटिश सरकार के लिए तो कुछ नहीं कह सकता। ना ही मैं सरकार का प्रवक्ता हूं मगर मैं ईश्वर के नाम पर बोल सकता हूं। यह पाप और मुक्ति का स्थान है। आपने याद रखा है कि उन्होंने क्या किया और उनकी यादें जिंदा रहेंगी। यहां हुए अपराध और उसके प्रभाव को लेकर मैं बहुत दुखी और शर्मिंदा हूं। धार्मिक नेता होने की वजह से मैं इसपर शोक व्यक्त करता हूं।'

ब्रिटिश लोगों की गोलियों से मारे गए लोगों की मौत पर पछतावा

बिशप ने कहा, 'मैं एक धर्मगुरु हूं, राजनीतिज्ञ नहीं। एक धार्मिक नेता के तौर पर, मैं त्रासदी पर शोक मनाता हूं। यहां मैं लोगों के दुख को महसूस करने और ब्रिटिश लोगों की गोलियों से मारे गए लोगों की मौत पर पछतावा व्यक्त करने आता हूं।'

यह पूछे जाने पर कि क्या वह ब्रिटिश सरकार से वह औपचारिक माफी मांगने के लिए कहेंगे? उन्होंने जवाब दिया, 'मुझे लगता है कि मैं जो महसूस करता हूं, उसके बारे में बहुत साफ हूं और मैं इसे इंग्लैंड में प्रसारित करूंगा।'

विजिटर बुक में क्या लिखा?

आर्कबिशप ने यहां विजिटर बुक में इस अत्याचार को लेकर एक बार फिर से अपनी भावनाएं नहीं रोक सके। उन्होंने लिखा, 'यह बहुत ही दुखद है और सौ साल पहले इस प्राकार के अत्याचारों को देखने वाली इस स्थान की यात्रा करने में मुझे शर्म आ रही है। मेरी भावनाएं भड़क रही हैं।'

क्यों अहम है जलियांवाला बाग

गौरतलब है कि 13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश पर मशीनगन से निहत्थे लोगों को गोलियों से भून डाला था। ये लोग स्वतंत्रता सेनानियों सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी का विरोध करने एकत्र हुए थे। इस घटना के 100 साल बीत जाने के बाद भी ब्रिटेन ने इसके लिए औपचारिक तौर पर माफी नहीं मांगी है।

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