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बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. फिरोज ने अब कला संकाय के संस्कृत विभाग में किया आवेदन

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) पिछले कुछ दिनों से विभिन्न वजहों से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं में...
बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. फिरोज ने अब कला संकाय के संस्कृत विभाग में किया आवेदन

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) पिछले कुछ दिनों से विभिन्न वजहों से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं में है। बीएचयू से निकले छात्रों और प्रोफेसरों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्थान और देश का नाम रोशन किया है। इस समय देश की विभिन्न यूनिवर्सिटी में बीएचयू से निकले करीब 20 वाइस चांसलर हैं। इस बार चर्चाओं की वजह पढ़ाई लिखाई नहीं, बल्कि विवाद है। फिलहाल, बीचएचू में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में डॉ. फिरोज की नियुक्ति विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि डॉ. फिरोज खान ने अब कला संकाय के संस्कृत विभाग में नियुक्ति के लिए आवेदन किया है।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1916 में बसंत पंचमी पर की थी। दस्तावेजों के अनुसार विश्वविद्यालय की स्थापना में मदन मोहन मालवीय का योगदान संस्थापक सदस्य के रूप में था। दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था दान देकर की थी। विश्वविद्यालय के मूल में डॉ. एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका थी। हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने उस वक्त के हिसाब से विश्वविद्यालय के लिए 10 लाख रुपए का बड़ा दान किया था।

बीएचयू में हाल ही में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के साहित्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर जयपुर जिले के बगरू निवासी फिरोज खान का चयन विवादों का कारण बना है और छात्र आंदोलनरत हैं। हालांकि बीएचयू प्रशासन ने साफ कर दिया है कि उनकी नियुक्ति नियमानुसार हुई है, लेकिन छात्र मानने को तैयार नहीं हैं। रविवार को रुईया हॉस्टल संस्कृत ब्लॉक के उद्यान में हुई बैठक में आंदोलन जारी रखने का निर्णय लिया गया है।

'संस्कृत किसी भी धर्म के लोग पढ़ या पढ़ा सकते हैं'

इस बारे में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष वाचस्पति मिश्रा नेआउटलुक’ को बताया कि संस्कृत किसी भी धर्म के लोग पढ़ या पढ़ा सकते हैं, लेकिन वैदिक धर्म या इसे जिसने आत्मसात कर रखा है, वह यदि छात्रों को पढ़ाएगा, तो इसका ज्यादा लाभ छात्रों को मिलेगा। नियम के हिसाब से तो नियुक्ति सही है, लेकिन यदि धर्म विज्ञान पढ़ाना है तो वही सिद्ध कर सकता है, जो उसे अपनाए हुए है। वह कहते हैं कि सबसे बड़ी गड़बड़ी यह है कि लोग विषय नहीं समझ पा रहे हैं। इससे संस्कृत का नुकसान हो रहा है। बीएचयू में संस्कृत विभाग अलग है। जबकि जहां नियुक्ति हुई है, उसका पूरा नाम संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय है। यह गुरुकुल प्रणाली से चलता है और यहां आचार्य की उपाधि देते हैं। संस्कृत विभाग में अन्य समुदाय के लोग होते हैं और होने भी चाहिए, लेकिन यह एक प्रकार से गुरुकुल है। इसमें छात्रों का कहना है कि वह उस ढंग से नहीं पढ़ा पा पाएगा, जहां विशेष तौर पर हिंदू धर्म की पढ़ाई हो रही है, उस स्थान पर यदि उसे आत्मसात करने वाला होगा, तो शायद ज्यादा न्याय कर पाएगा।

इससे पहले बीएचयू के मिर्जापुर के बरकछा स्थित राजीव गांधी दक्षिण परिसर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का झंडा हटाने के विवाद में डिप्टी चीफ प्रॉक्टर किरण दामले के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। विवाद बढ़ने पर डिप्टी चीफ प्रॉक्टर ने इस्तीफा भी दे दिया है। ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या बीएचयू में नई संस्कृति जन्म ले रही है?

'धर्म के आधार पर नहीं, मेरिट के आधार पर नियुक्ति होती है'

इस बारे में आल इंडिया वाइस चांसलर एसोसिएशन के अध्यक्ष और बिहार के पूर्णिया यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर राजेश सिंह ने ‘आउटलुक’ को बताया कि वह बीएचयू के प्रोफेसर हैं और करीब 14 साल उन्होंने यहां छात्रों को पढ़ाया है। उनका कहना है कि नियुक्ति के मानक अभी से नहीं, पहले से तय हैं। मेरिट के आधार पर नियुक्ति होती है। यूनिवर्सिटी में आने के बाद धर्म मायने नहीं रखता है। इसे धर्म से जोड़ने के बजाय, एकेडमिक से जोड़ना चाहिए। आपकी जो निजी राय है, उससे मतलब नहीं है, लिट्रेचर में जो लिखा है, उससे मतलब है। बीएचयू के मिर्जापुर कैंपस में हुए विवाद के बारे में वह कहते हैं कि जो चीजें पहले नहीं होती थीं, वह अब हो रही हैं। यूनिवर्सिटी में हर तरह की विचारधारा के लोग हैं। कोई कार्यक्रम अगर एकेडमिक से भी जुड़ा होता है, तो उसके लिए अनुमति जरूरी है। बिना अनुमति के कोई कार्यक्रम नहीं होना चाहिए। किसी नेता के परिसर में आने पर भी अनुमति की जरूरत है। बीएचयू में ही एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह को परिसर में आने की अनुमति नहीं दी गई थी।

राष्ट्रपति को अब प्रोफेसरों ने भेजा पत्र

बीचएचू में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में डॉ. फिरोज की नियुक्ति विवाद में अब प्रोफेसर भी कूद गए हैं। रविवार को करीब चार दर्जन प्रोफेसरों और संस्कृत विद्वानों ने राष्ट्रपति को पत्र भेजकर हस्तक्षेप की मांग की है।

 

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