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अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के मामला वापस लेने की खबरों का पक्षकारों ने किया खंडन

अयोध्या भूमि विवाद में पक्षकारों ने बयान जारी कर सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मामला वापस लेने संबंधी...
अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के मामला वापस लेने की खबरों का पक्षकारों ने किया खंडन

अयोध्या भूमि विवाद में पक्षकारों ने बयान जारी कर सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मामला वापस लेने संबंधी खबरों पर शुक्रवार को हैरानी जताई। पक्षकारों ने ऐसी खबरों का खंडन किया है।

अयोध्या भूमि विवाद में अहम वादी एम सिद्दीक के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर सभी मुस्लिम पक्षों ने समझौते को खारिज कर दिया है क्योंकि विवाद के मुख्य हिंदू पक्षकार मध्यस्थता प्रक्रिया और इसके तथाकथित समाधान का हिस्सा नहीं थे।

सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर पक्षकारों ने स्पष्टीकरण बयान जारी कर कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता समिति के राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को सौहार्दपूर्वक सुलझाने के लिए तथाकथित समझौते के प्रस्ताव को मंजूर नहीं करेंगे।

अदालत को सौंपी गई मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट

सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर 40 दिन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। ऐसा बताया जाता है कि इसी दिन मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट भी अदालत को सौंपी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति की अध्यक्षता कर रहे थे। समिति के दो अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थ्ता विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल थे।

कल आई थीं समझौता से जुड़ी खबरें

मध्यस्थता समिति से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच ‘‘एक तरह का समझौता’’ है।

सूत्रों ने बताया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और कुछ अन्य हिंदू पक्षकार भूमि विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने के समर्थन में हैं। कथित रूप से ऐसा भी बताया जा रहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड समझौते के फार्मूले के तहत मुकदमे को वापस लेने का इच्छुक है।

इस शर्त पर हुआ कथित समझौता

सूत्रों ने बताया था कि पक्षकारों ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधानों के तहत समझौता करने की मांग की है जिसमें कहा गया है कि मंदिरों के विध्वंस के बाद बनी और 1947 की तरह अब मौजूद मस्जिद या अन्य धार्मिक स्थानों के संबंध में कोई विवाद नहीं है। अधिनियम, हालांकि, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इसके दायरे से बाहर रखता है। बोर्ड ने देश के सभी धार्मिक स्थलों की 1947 से पहले वाली स्थिति बरकरार रखने के कानून को लागू करने की मांग की है।

बोर्ड विवादित जमीन के बदले किसी और स्थान पर वैकल्पिक जमीन देने की शर्त पर सहमत हुआ है। सूत्रों ने कहा कि पक्षकारों ने सुझाव दिया है कि विचाराधीन भूमि सरकार को अधिग्रहण में दी जा सकती है, और वक्फ बोर्ड एएसआई मस्जिदों की एक चुनिंदा सूची प्रस्तुत कर सकता है जो उन्हें नमाज के लिए उपलब्ध कराई जा सकती है। सूत्रों ने कहा कि समझौता पत्र में अयोध्या की कुछ मस्जिदों की मरम्मत किए जाने और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित कुछ मॉन्यूमेंट्स में इबादत की अनुमति दिए जाने की मांग भी की गई है।

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