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कोरोना संकट से मानसिक स्वास्थ्य पर खतरा, बचाव के लिए मनोवैज्ञानिक दे रहे हैं ये सलाह

दो सप्ताह पहले तक दिल्ली के उद्यमी संजय मल्होत्रा सफल टेक्सटाइल कंपनी चला रहे थे, जिसमें 100 से ज्यादा...
कोरोना संकट से मानसिक स्वास्थ्य पर खतरा, बचाव के लिए मनोवैज्ञानिक दे रहे हैं ये सलाह

दो सप्ताह पहले तक दिल्ली के उद्यमी संजय मल्होत्रा सफल टेक्सटाइल कंपनी चला रहे थे, जिसमें 100 से ज्यादा कर्मचारी काम करते थे। लेकिन कोरोना वायरस का संक्रमण दुनिया भर में फैलने और देश में इससे निपटने के लिए तीन सप्ताह के लॉकडाउन ने उनके लिए सब कुछ बदल दिया है। इन संकटों के चलते भारी घाटा झेल रहे मल्होत्रा की मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट बंदी के कगार पर पहुंच चुकी है। उनकी जिंदगी सामान्य नहीं रह गई है। उन्हें डर है कि वे गहरे अवसाद और निराशा में डूबते जा रहे हैं।
कई लोग निराशा में घिर रहे
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि यह अप्रत्याशित परिस्थिति है। हमें सकारात्मक और शांत रहना होगा। यह स्वाभाविक है कि अलग-थलग रहने पर कुछ लोगों में मनोवैज्ञानिक और व्यवहारगत बदलाव आते हैं। यह निराशा, चिंता और अन्य विकारों के रूप में दिखाई देता है।
नकारात्मक विचारों से दूर रहने का मंत्र
इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज (आइएचबीएएस) के डायरेक्टर और मनोवैज्ञानिक निमेष जी. देसाई हर किसी से शांत रहने और मानसिक स्वास्थ्य लाभ करने की सलाह देते हैं। उन्होंने कहा कि लोग हमेशा समय न होने की शिकायत करते हैं। इस समय पर्याप्त समय है। इसका रचनात्मक इस्तेमाल करो। वर्तमान क्षण को जियो और अपनी ऊर्जा को नए तरीकों से इस्तेमाल करो। नए आइडियाज और हॉबी तलाशो और खुश रहो। वह कहते हैं कि हम संकट के दौर से गुजर रहे हैं। अगर जरूरत हो तो सहायता लो और अपना रुख सकारात्मक बनाए रखो। सबसे महत्वपूर्ण है कि नकारात्मक विचारों से दूर रहो।
दोस्तों से बातचीत करते रहो
एम्स दिल्ली के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. नंद कुमार कहते हैं कि सबसे अहम नियम है कि अनिश्चितता के दौर में बातचीत करते रहो। उनका कहना है कि संवाद के सभी माध्यम खुले रखने जरूरी हैं क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग समस्या पैदा करती है। उनका कहना है कि अपने प्रियजनों, दोस्तों से वीडियो और व्हाट्सएप पर बातचीत करते रहो। इस समय सपोर्ट सिस्टम अहम है, फिर भले ही सोशल सपोर्ट हो या फिर इमोशनल सपोर्ट।
वर्क फ्रॉम होम से दोहरी चुनौती
दो बच्चों की सिंगल मदर इंदु कपूर की जिंदगी लॉकडाउन से और अव्यवस्थित हो गई है क्योंकि अब उन्हें ऑफिस के काम के साथ घर के कार्यों से भी जूझना पड़ता है। इसके अलावा सास-ससुर की देखभाल भी बिना किसी मदद के करनी होती है। वह कहती हैं कि उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अचानक ही छिन गया है।
जिम्मेदारियां आपस में बांटें
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि संकट के इस दौर में दिनचर्या और लंबी हो गई है। फोर्टिस हॉस्पीटल, वसंत विहार की मनोवैज्ञानिक तनुश्री संगमा सलाह देती हैं कि लोगों को उन परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए जो उनके हाथ में नहीं हैं। हर किसी के लिए यह चुनौतीपूर्ण दौर है। बेहतर होगा अगर आप अपनी जिम्मेदारियां परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ बांट लें। इससे आप पर भावनात्मक और शारीरिक दबाव कम होगा। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन प्लेटफार्म सपोर्ट ग्रुप के रूप में काम कर रहे हैं। पिछले कुछ हफ्तों में उन्होंने कई लोगों को इसी तरह के परामर्श दिया।
बच्चों के साथ खेलना अच्छा आइडिया
डॉक्टर लोगों को फिटनेस की सलाह देते हैं। उनका मानना है कि इससे प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसलिए अपने बच्चों के साथ खेलना अच्छा आइडिया है। या फिर परिवार के सदस्यों के साथ योग भी अच्छा उपाय है। इस तरह बच्चों को आप ज्यादा टीवी देखने से भी रोक सकते हैं।
अपने अंदर झांकने का मौका
मनोवैज्ञानिक डॉ. मोना चौधरी कहती हैं कि लॉकडाउन हमें एक-दो चीजें सिखाएगा। लोगों को इस अवसर को अपने अंदर झांकने और जीवन को दोबारा व्यवस्थित करने में इस्तेमाल करना चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि हमें जीवन में क्या चाहिए। यह जानने का यह सही अवसर है कि हमें जीने के लिए किस चीज की बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं है।
बच्चों पर सूचनाओं की बाढ़ का असर
41 वर्षीय दिव्यांशी दत्ता नियम से हर 12 घंटे में दरवाजे की कुंडी साफ करती हैं और हर 20 मिनट पर हाथ धोती हैं। टीवी विज्ञापनों में इसी तरह की सलाह दी जाती है। उनकी मां चिंतित हैं कि सूचनाओं के अत्यधिक प्रवाह से टीनएजर्स पर ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है। मनोवैज्ञानिक भी आगाह करते हैं कि समाचार कुछ समय ही देखने चाहिए, क्योंकि बच्चों पर ही नहीं बल्कि वयस्कों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
रिश्तों को दोबारा मजबूती देने का अवसर
अनेक माता-पिता इस बात को लेकर परेशान हैं कि बच्चों को पूरे दिन घर में कैसे व्यस्त रखे, जब आउटडोर गेम्स पर रोक है। उनका कहना है कि बच्चों को पुस्तकें पढ़ने या फिर नए गेम्स तथा गतिविधियों में रुचि पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। डॉ. कुमार कहते हैं कि माता-पिता को बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताना चाहिए। रिश्ते दोबारा मजबूत करने के लिए यह बेहतर अवसर है।

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