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कश्मीर में पाबंदी हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- मामला संवेदनशील, सरकार को मिले वक्त

जम्मू-कश्मीर में पाबंदी हटाने की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट...
कश्मीर में पाबंदी हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- मामला संवेदनशील, सरकार को मिले वक्त

जम्मू-कश्मीर में पाबंदी हटाने की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला संवेदनशील है। इसमें सरकार को वक्त मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते बाद मामले की सुनवाई करेंगे। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि ये कब तक चलेगा। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जैसी ही स्थिति सामान्य होगी, व्यवस्था भी सामान्य हो जाएगी। हम कोशिश कर रहे हैं कि लोगों को कम से कम असुविधा हो। 1999 से हिंसा के कारण 44,000 लोग मारे गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या आप स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं ? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हम रोज समीक्षा कर रहे हैं। सुधार आ रहा है। उम्मीद है कि कुछ दिनों में हालात सामान्य हो जाएंगे। सुनवाई के दौरान एजी ने कहा कि पिछले साल जुलाई में 40 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि इस बार किसी की भी मौत नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है।

दो सप्ताह बाद की जाएगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बेहद गलत ढंग से याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी को नहीं पता कि कश्मीर में क्या हो रहा है। सरकार पर विश्वास करना होगा। यह मामला बेहद संवेदनशील है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे पास वास्तविक तस्वीर होनी चाहिए, कुछ समय के लिए यह मामला रुकना नहीं चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस मामले की सुनवाई 2 सप्ताह बाद की जाएगी।

'मूलभूत सुविधाओं को किया जाए बहाल'

याचिकाकर्ता की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि मूलभूत सुविधाओं को बहाल किया जाना चाहिए। कम से कम अस्पतालों में संचार सेवा को बहाल किया जाना चाहिए। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि स्थिति संवेदनशील है। हम मूलभूत सुविधाओं को बहाल करने पर काम कर रहे हैं।

घाटी में अभी भी मोबाइल फोन, मोबाइल इंटरनेट और टीवी-केबिल पर रोक लगी हुई है। हालांकि, जम्मू में धारा 144 को पूरी तरह से हटा दिया गया है और कुछ क्षेत्रों में फोन की सुविधा चालू की गई है। अभी सिर्फ मोबाइल कॉलिंग की सुविधा ही शुरू की गई है।

पूर्व मुख्यमंत्रियों की रिहाई की मांग

तहसीन पूनावाला ने पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है जो इस समय हिरासत में हैं। इसके साथ ही उन्होंने जम्मू और कश्मीर की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिये एक न्यायिक आयोग गठित करने का भी अनुरोध किया है। उन्होंने याचिका में दावा किया है कि केन्द्र के फैसलों से संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।

‘किस अधिकार से कठोर कदम उठाये हैं’

याचिका के अनुसार समूचे राज्य की एक तरह से घेराबंदी कर दी गई है और दैनिक आधार पर सेना की संख्या में वृद्धि करके इसे एक छावनी में तब्दील कर दिया गया है, जबकि संविधान संशोधन के खिलाफ वहां किसी प्रकार के संगठित या हिंसक विरोध के बारे में कोई खबर नहीं है। पूनावाला चाहते हैं कि शीर्ष अदालत केन्द्र और जम्मू-कश्मीर से पूछे कि किस अधिकार से उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्रियों, पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों, पूर्व विधायकों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने सहित इतने कठोर कदम उठाए हैं?

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