Advertisement

अंग्रेजों की लूट का हिसाब लगाने वाला समाज सुधारक, जिस पर लगा चर्च के लिए काम करने का आरोप

बचपन से हम राजा राममोहन रॉय के बारे में सुनते आ रहे हैं। पुनर्जागरण काल का एक अगुआ, जिसने हिंदू धर्म को...
अंग्रेजों की लूट का हिसाब लगाने वाला समाज सुधारक, जिस पर लगा चर्च के लिए काम करने का आरोप

बचपन से हम राजा राममोहन रॉय के बारे में सुनते आ रहे हैं। पुनर्जागरण काल का एक अगुआ, जिसने हिंदू धर्म को तमाम बुराइयों से मुक्त करने में भूमिका निभाई। सती प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह का विरोध और महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिलाने की लड़ाई उन्होंने लड़ी। उन्हें आज के कई ‘फैशनेबल फेमिनिस्ट’ के आगे रखें तो पाएंगे कि उस दौर में इनसे बड़ा फेमिनिस्ट पैदा नहीं हुआ। वो भी तब जब आप धर्म के खिलाफ लड़ रहे हों।

रॉय ने एक बार लिखा था, ‘हिंदुओं की वर्तमान व्यवस्था उनके राजनीतिक हितों को आगे नहीं बढ़ा सकती। इस व्यवस्था में सुधार हो, कम से कम उनके राजनीतिक लाभ और समाज के हित के लिए ही सही।‘ रॉय द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज ने भारतीय समाज को आधुनिक बनाने में काफी भूमिका निभाई।

रॉय के 246वें जन्मदिन पर पढ़िए उनसे जुड़ी कुछ बातें-

जब लगा चर्च की शह पर काम करने का आरोप

राजा राममोहन रॉय के साथ विवाद भी जुड़े हैं। उन पर आरोप लगा था कि वह चर्च की शह पर हिंदू धर्म के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं और उनमें काफी अंग्रेजीदां थे। रॉय अंग्रेजी शिक्षा में पारंगत थे और उन्होंने अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी में काम भी किया था लेकिन ये सिर्फ आरोप ही थे। सती प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ने की उनकी एक निजी वजह थी। एक दफे जब वह इंग्लैंड के दौरे पर थे, तब उनके भाई की मौत हो गई थी। इसके बाद उनकी भाभी को जिंदा जला दिया गया। यह क्रूर और अमानवीय था। रॉय इस घटना के बाद टूट गए थे और उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़नी शुरू की।

अंग्रेजों की लूट का लगाया हिसाब

जहां तक अंग्रेजों के लिए काम करने का आरोप है, ईस्ट इंडिया कंपनी में बहुत से भारतीय काम करते थे और यह कोई गुनाह नहीं बल्कि रोजी-रोटी के लिए नौकरी थी। फिर रॉय ने तो कंपनी में काम करने का फायदा उठाया और अंग्रेजों की पोल-पट्टी खोलने का काम किया।

1803 से 1815 के बीच रॉय ने ईस्ट इंडिया कंपनी में मुंशीगीरी की। ईस्ट इंडिया कंपनी बहुत सारा पैसा भारत से बाहर ले जा रही थी। 1838 में एक साल में तीन मिलियन पाउंड पैसा बाहर जा रहा था। राजा राममोहन रॉय उन पहले लोगों में से हैं, जिन्होंने अंग्रेजों की लूट का हिसाब लगाया। रॉय के मुताबिक भारत में इकट्ठा किए जाने वाले राजस्व का डेढ़ गुना हिस्सा इंग्लैंड भेजा जाता था।

बढ़वाया मुगल शासक का भत्ता

1830 में राजा राममोहन रॉय मुगल शासक अकबर द्वितीय के राजदूत बनकर इंग्लैंड गए। उन्हें अंग्रेजों ने ही बुलाया था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि बंगाल सती रेगुलेशन एक्ट, 1829 को बदला न जाए और सती प्रथा पर रोक लागू रहे। यहां रॉय ने मुगल शासक का भत्ता बढ़ाने की मांग कर डाली। इंग्लैंड में उनकी बात सुन ली गई और मुगल शासक का भत्ता बढ़ाकर तीस हजार पाउंड कर दिया गया।

प्रेस की आजादी के हिमायती

एक संभ्रांत बंगाली परिवार से ताल्लुक रखने वाले राममोहन रॉय ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया। कलकत्ता का हिंदू कॉलेज, एंग्लो-हिंदू स्कूल और वेदांत कॉलेज खड़ा करने के पीछे राजा राममोहन रॉय का ही योगदान है। 1817 में उन्होंने डेविड हरे के साथ मिलकर कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की। वह अंग्रेजी शिक्षा के हिमायती थे।

साथ ही रॉय ने प्रेस की आजादी के लिए भी लड़ाई लड़ी। अपने जर्नल 'संवाद कौमुदी' में उन्होंने प्रेस की आजादी, सिविल सर्विसेज में भारतीयों को मौका देने, न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग करने जैसे मुद्दे उठाए।

2004 में राजा राममोहन रॉय को बीबीसी के पोल में सर्वकालीन 10 महान बंगालियों में शुमार किया गया था।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad