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फर्जी मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की दलील ठुकराई, कहा- पक्षकारों से साझा करें रिपोर्ट

गुजरात सरकार की गोपनीयता की दलील को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2002 से 2006 के बीच हुईं कथित फर्जी...
फर्जी मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की दलील ठुकराई, कहा- पक्षकारों से साझा करें रिपोर्ट

गुजरात सरकार की गोपनीयता की दलील को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2002 से 2006 के बीच हुईं कथित फर्जी मुठभेड़ों को लेकर जस्टिस एचएसबेदी की फाइनल रिपोर्ट पक्षकारों को सौंपने का आदेश दिया है।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि इस बारे में बाद में विचार किया जाएगा कि फर्जी मुठभेड़ों के बारे 221 पेज की जस्टिस बेदी की फाइनल रिपोर्ट को स्वीकार की जाये या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट गीतकार जावेद अख्तर और दिवंगत पत्रकार बीजी वर्गीज की साल 2007 में दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इन याचिकाओं में 2002 से 2006 के दौरान हुई 24 मुठभेड़ों की सच्चाई सामने लाने को किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी या सीबीआई से जांच कराने का अनुरोध किया गया था। वर्गीज का 30 दिसंबर, 2014 को निधन हो गया था।

याचिकाकर्ताओं से मांगा जवाब

पीठ ने गुजरात सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि फाइनल रिपोर्ट की प्रति जावेद अख्तर और वर्गीज के वकीलों को नहीं दी जाये क्योंकि इससे उन लोगों के खिलाफ मामला प्रभावित हो सकता है जिनके नाम रिपोर्ट में हैं और इसकी गोपनीयता पर असर पड़ सकता है। कोर्ट ने गुजरात सरकार और अख्तर तथा वर्गीज के वकीलों को रिपोर्ट पर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

पिछले साल सौंपी थी रिपोर्ट

कोर्ट ने कथित फर्जी मुठभेड़ की इन घटनाओं की जांच की निगरानी के लिए जस्टिस बेदी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। समिति ने पिछले साल फरवरी में सीलबंद लिफाफे में अपनी अंतिम रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी थी। हालांकि तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस रिपोर्ट को बाद में विचार के लिए रख दिया था। बाद में मामले के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से अपील की कि रिपोर्ट को अभियोजन पक्ष के साथ साझा किया जाना चाहिए। हालांकि केंद्र सरकार के अटार्नी जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें सरकार का पक्ष रखने के लिए जनवरी तक का समय दिया था।

ये है मामला

आरोप है कि साल 2002 से 2006 के बीच एक खास समुदाय से संबंध रखने वाले 22 से 37 साल की उम्र के युवाओं को फर्जी पुलिस मुठभेड़ों में मार दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि मारे गए युवकों पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। साल 2007 में पत्रकार वी जी वर्गीस और गीतकार जावेद अख्तर ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के जरिए इन मामलों की सीबीआई या एसआईटी के जरिये जांच की याचिका दायर की थी। पहले इस मामले की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस एमबी शाह के नेतृत्व में एक जांच कमेटी का गठन किया था हालांकि शाह के पीछे हटने के बाद ये जिम्मा पूर्व जस्टिस एचएस बेदी को दे दिया गया।

 

 

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