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एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला पलटा, अब तुरंत गिरफ्तारी पर रोक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) अधिनियम में तुरंत गिरफ्तारी...
एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला पलटा, अब तुरंत गिरफ्तारी पर रोक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) अधिनियम में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के फैसले के खिलाफ सरकार की पुनर्विचार अर्जी पर अपना फैसला सुनाया। तीन जजों की बेंच ने पिछले साल दिए गए दो जजों की बेंच के फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में अपना पुराना फैसला वापस ले लिया है। अब इस एक्ट के तहत बिना जांच के एफआईआर दर्ज की जा सकेगी। अब सरकारी कर्मचारी और सामान्य नागरिक को गिरफ्तार करने से पहले अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। इससे पहले शिकायत दर्ज करने के बाद जांच करने पर ही एफआईआर दर्ज करने के कोर्ट ने आदेश दिए थे। अब कोर्ट ने अपना यह बदल दिया है, अब पहले जांच जरूरी नहीं है।

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने कहा कि एससी-एसटी के लोगों को अभी भी देश में छुआछूत, दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। उनका अभी भी सामाजिक रूप से बहिष्कार किया जा रहा है। देश में समानता के लिए अभी भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ है।

'अभी भी सामाजिक दुर्व्यवहार और भेदभाव का करते हैं सामना'

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि संविधान अनुच्छेद-15 के तहत अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लोगों की सुरक्षा को प्रदान करता है, लेकिन वे अभी भी सामाजिक दुर्व्यवहार और भेदभाव का सामना करते हैं। एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों के दुरुपयोग और झूठे मुकदमों को दर्ज करने पर पीठ ने कहा कि यह जाति व्यवस्था के कारण नहीं बल्कि मानवीय विफलता के कारण है।

2018 के फैसले में क्या कहा था कोर्ट ने 

सु्प्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को दिए अपने फैसले में माना था कि एससी-एसटी एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी की व्यवस्था के चलते कई बार बेकसूर लोगों को जेल जाना पड़ता है। साथ ही, कोर्ट ने तुंरत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार अर्जी दायर की थी।

केंद्र सरकार ने पुनर्विचार की मांग की थी

पिछले साल मार्च 2018 में दो सदस्यीय बेंच ने फैसला दिया था कि संबंधित प्राधिकरण की स्वीकृति मिलने के बाद ही एससी/एसटी कानून के तहत दर्ज मामलों में सरकारी अधिकारियों की गिरफ्तारी हो सकती है। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक समीक्षा याचिका दायर कर अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। अब इस मुद्दे को बड़े बेंच को सौंप दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में प्रदर्शन हुए थे

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी की सीधे गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी। इस आदेश के मुताबिक, मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जांच करनी थी। इस फैसले के बाद एससी/एसटी समुदाय के लोग देशभर में व्यापक प्रदर्शन किए थे।

प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने किए थे संशोधन

व्यापक प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र सरकार ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी और बाद में कोर्ट के आदेश के खिलाफ कानून में आवश्यक संशोधन किए थे। संशोधित कानून के लागू होने पर कोर्ट ने किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई थी। सरकार के इस फैसले के बाद कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई। इसमें आरोप लगाया गया था कि संसद ने मनमाने तरीके से इस कानून को लागू कराया है।

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