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मोदी को इस समय थी जेटली की सबसे ज्यादा जरूरत

एक बिजनेस पत्रकार के रूप में मेरा ज्यादातर करियर मुंबई में बीता। करीब 12 साल पहले मैं दिल्ली आया और एक...
मोदी को इस समय थी जेटली की सबसे ज्यादा जरूरत

एक बिजनेस पत्रकार के रूप में मेरा ज्यादातर करियर मुंबई में बीता। करीब 12 साल पहले मैं दिल्ली आया और एक साल के भीतर मैंने हिंदी में एक बिजनेस अखबार शुरू किया। यहां आकर मुझे दिल्ली को जानने का मौका मिला। मुझे एक लुटियन कॉटरी का पता चला। यह एक मजबूत और प्रभावशाली नेताओं का ग्रुप है, जहां कुछ लोग सूचनाओं का आदान-प्रदान अपने हिसाब से करते हैं। खान मार्केट का भी एक प्रभावशाली समूह है। इसके अलावा बंगाली मार्केट के बुद्धिजीवियों का भी ग्रुप है। खास बात यह थी कि सत्ता में अहम पहुंच रखने वाले दिल्ली के जो भी प्रमुख लोग थे, वे सब जेटली को काफी करीब से जानते थे।

अगर आप दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं तो जेटली से मिलना अहम था। ईस्ट ऑफ कैलाश में उनके घर का कार्यालय ऐसी बैठकों के लिए ही था। उन्होंने हमेशा नए लोगों का स्वागत किया और विसंगतियों पर चर्चा करने से कभी पीछे नहीं हटे। वह किसी भी मुद्दे की जटिलता को कम करने के लिए तर्क द्वारा ही उस तर्क को तोड़ देते थे। उनकी स्मरण शक्ति ने उन्हें प्रत्येक तर्क के साथ तथ्यों को जोड़ने में सक्षम बनाया। इससे वह संसद में दोनों ओर- चाहे वह सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष- उनमें तर्क-वितर्क करने वाला एक अहम व्यक्ति बना दिया। उन्होंने एक बेहतरीन कम्यूनिकेटर के रूप में अपनी पहचान बनाई।  

वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने कभी अर्थशास्त्र या राजकोषीय प्रबंधन में निपुणता का दावा नहीं किया। वह नौकरशाहों को जानते थे, उनकी क्षमताओं को समझते थे। एक निर्णय के आसपास वह एक आम सहमति और गति का निर्माण कर सकते थे।  

राज्यसभा सदस्य रहते हुए उन्होंने रक्षा, कानून और वित्त मंत्री जैसे सबसे महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। उनके आगे बढ़ने का एककारण यह था कि उन्होंने ऐसे लोगों का नेटवर्क बनाया था जो उनसे बात कर सकते थे। लेकिन धीरे-धीरे जिम्मेदारियां बढ़ने और स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण उन्होंने लंबी बातचीत को छोटे संदेशों में बदल दिया। जब आप एक राजनेता हो जाते हैं या किसी खास पोजीशन पर पहुंच जाते हैं तो आप जमीनी स्तर से कटते जाते हैं। लेकिन जेटली ने हमेशा इन बातों का ध्यान रखा और वह कभी उनसे दूर नहीं हुए।

जेटली ने पत्रकारों, नौकरशाहों, राजनीतिक साथियों और अपने कर्मचारियों का भी काफी ध्यान रखा। उन्होंने कर्मचारियों के परिवार की भी काफी मदद की। कई ऐसे परिवार थे जिनके बच्चे जेटली के प्रोत्साहन पर विदेश गए।

जेटली के नेटवर्क से भारतीय जनता पार्टी को काफी फायदा हुआ। खासतौर पर जीएसटी की शुरुआत करते समय, एक-एक करके हर राज्य में वित्त मंत्रियों को उन्होंने आश्वस्त किया। जीएसटी भाजपा सरकार का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार है। इसमें खामियों को ढूंढ़ना आसान है लेकिन इसके लिए उन्होंने जिस स्तर पर सर्वसम्मति बनाई, वह काफी मुश्किल है। वैसे भी, परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है।

भाजपा सरकार का पहला कार्यकाल कठिन था क्योंकि शुरू में नौकरशाहों ने कई गलत कदम उठाए। यह प्रमुख नौकरशाहों के बारे में अरुण जेटली का दृष्टिकोण था जो सरकार या मंत्री को प्रणालीगत ताने-बाने में फंसने या पकड़े जाने से रोकते थे। नौकरशाहों को तब अच्छा लगता है जब नेता उन पर निर्भर हो जाते हैं। एक डरा हुआ राजनेता ज्यादातर पूर्व और वर्तमान नौकरशाहों में दोस्तों और सलाहकारों को पाता है। रायसीना पहाड़ी सलाहकारों से भर गई है, प्रधानमंत्री मोदी को इसे छानने के लिए जेटली के कौशल, बुद्धिमत्ता और ज्ञान की आवश्यकता थी।

अब जब अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है और आत्मविश्वास खोने के किनारे पर है देश को जेटली की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा थी। उनमें सकारात्मक छवि पेश करने, विश्वास का पुनर्निर्माण करने और भरोसे की कमी को पाटने की क्षमता थी। सरकार ने अपना सबसे मजबूत प्रस्तावक, राजनीति ने एक सर्वसम्मत नेता और देश ने एक विश्वास खो दिया है।

(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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