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सहकारिता को कुशल नेतृत्व की जरूरत: राधा मोहन सिंह

आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवॉर्ड्स सिम्पोजियम हॉल, नेशनल एग्रीकल्चर साइंस सेंटर...
सहकारिता को कुशल नेतृत्व की जरूरत: राधा मोहन सिंह

आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवॉर्ड्स सिम्पोजियम हॉल, नेशनल एग्रीकल्चर साइंस सेंटर (एनएएससी) कॉम्प्लेक्स, आईसीएआर में हुआ। इस अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि सहकारिता को आज कुशल नेतृत्व की जरूरत है, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ सके। साथ ही उन्होंने सहकारिता और एफपीओ में उत्कृष्ट योगदान के लिए 9 लोगों को स्वराज अवार्ड्स देकर सम्मानित किया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राधामोहन सिंह ने कहा, 'अपने देश के लिए सहकारिता कोई नई बात नहीं है। भारत में अनादि काल से सहकारिता हमारे स्वभाव में है। अंग्रेजों की गुलामी में फंसने के पहले हजारों वर्षों से यहां के गांव सहकारिता के आधार पर अपने संसाधनों एवं श्रम शक्ति का उपयोग कुशलतापूर्वक करते आ रहे थे। अंग्रेजी राज होने के बाद अंग्रेजों ने सहकारिता को संस्थागत रूप देने का फैसला किया। इसके लिए 1904 में को-ऑपरेटिव केन्द्रीय सोसायटी एक्ट बनाया गया। 114 वर्ष की अपनी यात्रा में आधुनिक सहकारिता ने विशाल वट वृक्ष का आकार ग्रहण कर लिया। कश्मीर से कन्याकुमारी और पोरबन्दर से सिलचर तक सहकारिता का प्रसार हुआ। सहकारिता आन्दोलन का आरंभ शोषितों को बचाने के लिए और सामूहिक कार्यो के जरिए उनके आर्थिक विकास में संवर्धन करने के लिए हुआ था। सहकारिताओं का उद्देश्य स्वयं-सहायता, आत्मनिर्भरता और स्वयं अधिशासन में संवर्धन करना रहा है। अपने 100 वर्षो से अधिक के अस्तित्व में सहकारिताएं समाज में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुकी है एवं समाज में सहकारी संस्थाएं अपने पैर मजबूती से जमा चुकी हैं।'


'सहकारिता ने दीं मूलभूत सुविधाएं'

उन्होंने कहा, 'सहकारिताओं ने समाज में व्याप्त समस्याओं का समाधान ढूंढने में प्रभावी भूमिका निभाई है। आर्थिक विकास के साथ साथ सहकारिताओं को उत्तरदायित्व, लोकतांत्रिक समानता, स्व-सहायता, ईमानदारी, जागरूकता और सामाजिक उत्तरदायित्व जैसे नैतिक मूल्यों में विश्वास आदि पर बल देने का एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। सहकारिता द्वारा जीवन स्तर को बेहतर बनाने वाली मूलभूत आवश्यक सेवाएं विशेषकर ग्रामीण क्षत्रों में उपलब्ध करवाई गईं हैं। इससे सहकारिता के प्रचार प्रसार के दायरे में भारत का लगभग प्रत्येक गांव आ गया है। इसमें समाज के कमजोर वर्गो, गरीबी रेखा के नीचे के जीवन व्यापन कर रहे व्यक्तियों और न्यूनतम मूलभूत सुविधाओं से  वंचित लोगों के विकास पर विशेष जोर दिया जाता है।'

सहकारिता से जुड़े आंकड़े 

कृषि मंत्री ने कहा, 'आज भारतीय सहकारी आंदोलन विश्व के सबसे बड़े सहकारी आंदोलन के रूप में स्थापित है। भारत वर्ष में सहकारिता की पहुंच गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक है। भारत में 8 लाख सहकारी समितियां है, जो ग्रामीण स्तरीय समितियों से लेकर राष्ट्रीय स्तर के सहकारी संगठनों तक फैली हुई है। देश में सहकारी समितियों की कुल सदस्यता 275 मिलियन से भी अधिक है। इसमें लगभग 97 प्रतिशत गांव तथा लगभग 71 प्रतिशत कुल ग्रामीण परिवार शामिल है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि सहकारी साख, उर्वरक उत्पादन, चीनी उत्पादन, बुनकर एवं आवास सहकारिताओं आदि का एक बड़ा योगदान है। भारतीय सहकारिता ने अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में अपने को मजबूती से स्थापित किया है जैसे डेयरी, बैंकिंग, चीनी, उर्वरक, विपणन, हैण्डलूम, मत्स्य, गृह निर्माण आादि। सहकारी समितियों ने ऋण, उर्वरक, बीज जैसे इनपुट मुहैया कराकर किसानों की राह आसान की है। आज डेयरी सहकारिता ने तो देश-विदेश में अपनी अलग पहचान बनाई है। गुजरात व महाराष्ट्र में डेयरी के साथ-साथ चीनी मिल एवं ऋण समितियों का विकास हुआ तो दक्षिण भारतीय राज्यों में मछली और वन आधारित समितियों का।'

किसानों की आय

किसानों की आय पर बोलते हुए राधा मोहन सिंह ने कहा, 'कृषि प्रधान देश होने के कारण कृषकों का भविष्य कृषि उत्पादन पर निर्भर है एवं कृषि उत्पादन के लिये प्राप्त साधन सुविधाओं पर निर्भर है। इसके लिए सहकारिता सदैव तत्पर है, चाहे कृषक के अल्पकालीन, मध्यम कालीन या दीर्घ कालीन जैसी भी ऋण की आवश्यकता हो, तत्काल मुहैया होना चाहिए। सहकारी क्षेत्र में कृषि उत्पादन के लिये जो ऋण दिया जाता है तथा उसके बदले जो ब्याज लिया जाता है उसमे लगातार कमी होते हुए हुए 3 प्रतिशत वार्षिक के दर पर आ गई है जो कि काफी सस्ती ऋण है इसे और भी कम कर जीरो प्रतिशत की दर से उपलब्ध कराने का प्रयास होना चाहिए । इसके माध्यम से कृषको को कम से कम दर पर (सस्ती ब्याज दर) ऋण उपलब्ध हो सकेगा व कृषक बेखौफ खुशी से ऋण लेकर अपनी कृषि संबंधी जरूरतो को पूरा कर सकें आधुनिककरण कर ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सके।'

'एमएसपी पर लगातार नजर रखने की जरूरत'

इसके अतिरिक्त कृषकों द्वारा उत्पादित विभिन्न किस्म की फसलों पर ‘‘न्यूनतम लागत मूल्य’’ (एमएसपी) पर भी लगातार नजर रखने की आवश्यकता है। विशेषकर तक जबकि पिछले कई वर्षों से यह कृषक एक ही दर पर अपनी फसलों का सौदा कर रहे हो। सरकार द्वारा लागू एम.सी.पी. को समय-समय पर निरीक्षण करके इसके क्रियान्वयन पर भी नजर रखनी होगी, जिससे कृषकों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य मिल सके। इसके साथ ही अन्य कृषि सहबद्ध गतिविधियों पर ध्यान देकर भी किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते है जैसे-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन इत्यादि। फसल की बुआई व कटाई के बीच का समय व अन्य खाली समय में किसान इन गतिविधियों को प्रारम्भ कर सकते है। इस हेतु ऋण उपलब्ध कराने के लिए प्राथमिक सहकारी समितियों को नाबार्ड द्वारा स्वीकृति दी जा चुकी है। परंतु इस दिशा में वांछित प्रगति अभी तक नहीं हो पायी है । अतः किसानों को और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है। इन प्रयासों से किसानों की आय दोगुनी अवश्य हो सकेगी तथा वास्तव में भारत कृषि प्रधान देश होगा।'

सहकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम 

उन्होंने कहा, 'सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम सहकारिता विकास का अहम अंग है। सहकारी समितियों को सक्षम बनाने के लिए एक सतत प्रक्रिया है। प्रशिक्षण इसलिए जरूरी है कि समितियों को योग्य एवं व्यावसायिक नेतृत्व मिले। कुशल मानव संसाधन, जब तक नहीं मिलेगा तब तक सहकारिताओं के विस्तार में कमी आएगी। इसलिए सहकारी शिक्षण एवं प्रशिक्षण तंत्र को मजबूत बनाना होगा।

राधा मोहन सिंह ने कहा, 'पूरे देश में सहकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम राष्ट्रीय सहकारी प्रशिक्षण परिषद द्वारा अपने 5 क्षेत्रीय सहकारी प्रबंधन संस्थानों एवं 14 सहकारी प्रबंध संस्थानों एवं पूणे स्थित राष्ट्रीय स्तर के सहकारी प्रबंध संस्थान के माध्यम से सहकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं। परिषद् का उद्देश्य देश की सहकारिताओं में मानव संसाधन विकास के द्वारा सहकारी नेतृत्व एवं इससे जुड़े कार्मिकों को पेशेवर बनाना है । परिषद सहकारी संगठनों के प्रबंधकीय कौशल में सुधार लाने के लिए मानव संसाधन विकास में प्रशिक्षण के नए मानकों को निर्धारित कर निरंतर प्रयास करते रहने के लिए भी समर्पित है । संस्थान द्वारा मुख्य रूप से डेयरी, लेखा एवं परीक्षा, कृषि, क्रेडिट एवं बैंकिंग, विपणन, प्रसंस्करण एवं भंडारण, मत्स्य पालन, पशु पालन आदि क्षेत्रों में तथा अन्य सामान्य प्रबंध कार्यक्रमों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । सहकारी आंदोलन की बढ़ती हुई आवश्यकताओं और आधुनिक तकनीकों, नेतृत्व एवं सहकारी कार्मिकों के मानव संसाधन विकास को पूरा करने के लिए यह एक माध्यम है।'

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