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छत्तीसगढ़ के सीवीसी और रेरा अध्यक्ष समेत 12 अफसरों पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य के समाज कल्याण विभाग में एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले में...
छत्तीसगढ़ के सीवीसी और रेरा अध्यक्ष समेत 12 अफसरों पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य के समाज कल्याण विभाग में एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले में मुख्य सूचना आयुक्त एम के राउत और रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) के अध्यक्ष विवेक ढांड समेत राज्य के 12 अफसरों के खिलाफ सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। इससे अफसरों में खलबली मची हुई है। आरोप है कि अफसरों ने दिव्यांगों के इलाज के नाम पर कागजों पर ही खर्चा दिखा दिया।

इन अधिकारियों पर राज्य संसाधन केंद्र (एसआरसी) और फिजिकल रेफरल रिहैबिलेशन सेंटर (पीआरआरसी) के फंड से 10 साल में करीब एक हजार करोड़ रुपये गलत तरीके से निकालने का आरोप है। भाजपा शासनकाल में हुए इस घोटाले में हाईकोर्ट का फैसला केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की छत्तीसगढ़ यात्रा के दो दिन बाद आया है।  रायपुर में उन्होंने मध्य क्षेत्र के चार राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों की बैठक ली।  हाईकोर्ट के आदेश से राज्य में राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में खलबली मची है।

जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की खंडपीठ ने रायपुर निवासी  कुंदन सिंह ठाकुर की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश में कहा किसीबीआई इस मामले में एक सप्ताह के अंदर एफआईआर दर्ज करे। एफआईआर दर्ज करने के बाद 15 दिन के अंदर सीबीआई इस मामले से संबंधित विभाग, संगठन और कार्यालयों के आवश्यक असली रिकॉर्ड को अपने कब्जे में कर ले।

सीबीआई को सौंपी थी जांच

घोटाले का आरोप 7 आईएएस अफसरों विवेक ढांड, सुनील कुजूर, एमके राउत, बीएल अग्रवाल, आलोक शुक्ला और एमके श्रोती पर लगाया गया है। इसे देखते हुए खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी अधिकारियों के ‘उच्च पदस्थ’ होने के चलते ऐसी संभावना है कि वे जांच को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा ही की जानी चाहिए। विवेक ढांड और सुनील कुजूर राज्य के मुख्य सचिव रह चुके हैं। कुजूर अभी राज्य सहकारी  निर्वाचन आयोग के कमिश्नर हैं। 

दिलचस्प है कि केंद्रीय  कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने 250 करोड़ रुपये के बड़े घोटाले के आरोप में बी एल अग्रवाल को बर्खास्त कर दिया है, हालाँकि वे केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से राहत पाने में कामयाब रहे। लेकिन उन्हें कोई पोस्टिंग नहीं दी गई। आलोक शुक्ला, जिन्हें हाल ही में नान घोटाले के कारण पांच साल के निलंबन के बाद बहाल करते हुए  प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा के रूप में पदस्थ किया गया है वे भी जांच के दायरे में है।

रायपुर के रहने वाले कुंदन सिंह ठाकुर की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने 2018 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया था कि राज्य के 6 आईएएस अफसर आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एनके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती, सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) (राज्य स्रोत निशक्त जन संस्थान) के नाम पर 630 करोड़ रुपए का घोटाला किया है।

फर्जीवाड़ा कर किया एक हजार का घोटाला

स्टेट रिसोर्स सेंटर का कार्यालय माना रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के तहत आता है। एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट और एसबीआई मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग-अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड से खाते खुलवाकर रुपए निकाले गए। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि ऐसी कोई संस्था राज्य में नहीं है। सिर्फ कागजों  में संस्था का गठन किया गया था। राज्य को संस्था के माध्यम से 1000 करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, जो कि 2004 से 2018 के बीच में 10 सालों से ज्यादा समय तक किया गया।

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य के तत्कालीन  मुख्य सचिव अजय सिंह ने अपना हलफनामा दिया था। इसमें उन्होंने 150-200 करोड़ की गलतियां सामने आने की बात कही थी। हाई कोर्ट ने कहा कि जिसे राज्य के मुख्य सचिव गलतियां और त्रुटि बता रहे हैं, वह एक संगठित और सुनियोजित अपराध है। केंद्र सरकार के तरफ से असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल बी गोपा कुमार और राज्य सरकार के तरफ से महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने पक्ष रखा।

क्या है मामला

याचिका के मुताबिक, रायपुर के माना में चार हजार दिव्यांगों के इलाज के नाम पर करोड़ों रूपए खर्च किए गए, लेकिन सारा हिसाब-किताब केवल कागजों में मिला। इस मामले में याचिकाकर्ता कुंदन ठाकुर ने बताया कि दिव्यांगों के इलाज के नाम पर सरकारी तंत्र ने करोड़ों रूपए की घोटालेबाजी की।  चौंकाने वाली बात यह थी कि कुंदन सिंह ठाकुर को कर्मचारी बताकर वेतन आहरित किया जा रहा था, जब इसकी जानकारी उन्हे हुई, तब उन्होंने तमाम दस्तावेजों के आधार पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट की एकलपीठ न्यायमूर्ति मनींद्र श्रीवास्तव ने इस प्रकरण की सुनवाई के बाद माना कि यह साधारण मामला नहीं है, लिहाजा इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया गया था और इस मामले को डबल बेंच में भेजा गया था।

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