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गर्भवती पत्नी और बच्ची को हाथगाड़ी में बैठाकर गांव पहुंचा प्रवासी मजदूर, 17 दिन में तय किया 700 किमी का सफर

देश भर में प्रवासी मजदूरों के पैदल पलायन के दर्दनाक हालात रोज सामने आ रहे हैं। यूं तो उनके लिए ट्रेन...
गर्भवती पत्नी और बच्ची को हाथगाड़ी में बैठाकर गांव पहुंचा प्रवासी मजदूर, 17 दिन में तय किया 700 किमी का सफर

देश भर में प्रवासी मजदूरों के पैदल पलायन के दर्दनाक हालात रोज सामने आ रहे हैं। यूं तो उनके लिए ट्रेन और बसें चलाई जा रही हैं, बावजूद इसके वे पैदल ही लंबी यात्रा करने को मजबूर हैं। ऐसा ही एक मामला 32 वर्षीय एक मजदूर का सामने आया है जिसने हैदराबाद से मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में अपने गांव लांजी तक की 700 किलोमीटर की दूरी 17 दिन में पूरी की। इस दौरान उसकी गर्भवती पत्नी भी साथ थी जिसके लिए उसने खुद ही हाथगाड़ी बनाई और उसमें पत्नी तथा मासूम बच्ची को बैठाकर खुद ही गाड़ी को खींचते हुए यह सफर पूरा किया।

32 वर्षीय रामू घोरमोरे और उसकी पत्नी धनवंतरी बाई ने बताया, ‘‘हम हैदराबाद में एक ठेकेदार के साथ मजदूर के तौर पर काम कर रहे थे। लॉकडाउन के बाद साइट पर काम बंद हो गया जिससे हमें दिन में दो समय का खाना भी मुश्किल हो गया। इसके बाद हमने लोगों से अपने घर जाने के लिए मदद मांगी लेकिन कोई मदद नहीं मिल पाई।’’

मदद नहीं मिलने पर पैदल ही यात्रा  करने का लिया फैसला

घोरमोरे ने कहा कि जब कोई मदद नहीं मिली तो मैंने अपनी पत्नी और बेटी अनुरागिनी को अपनी बांहों में लेकर अपने गांव लांजी (बालाघाट) पैदल यात्रा शुरू करने का फैसला लिया। थोड़ी दूरी के बाद मेरी पत्नी और आगे नहीं चल पा रही थी। तब मैंने बांस और लोकल सामग्री तथा पहियों की मदद से एक हाथगाड़ी बनाई। इसमें एक ट्यूब खींचने के लिए बांधा। पत्नी और बेटी को इस हाथ से बनी गाड़ी पर बिठाकर गांव की ओर चल पड़ा।

400 से ज्यादा मजदूर पैदल ही पहुंचे राजेगांव

करीब 700 किलोमीटर की यात्रा 17 दिन में पूरी करने के बाद तीनों जब एमपी-महाराष्ट्र की सीमा पर राजेगांव पहुंचे तो अधिकारियों ने उन्हें रोका और पूछताछ की, जहां दंपत्ति ने अपनी कहानी साझा की। फिर पुलिस अधिकारी (एसडीओपी) लांजी, नितेश भार्गव ने उन्हें एक निजी वाहन में व्यवस्था कर सीमा से करीब 18 किलोमीटर दूर गांव में उनके घर भेजने की व्यवस्था की। पुलिस ने बताया की घोरमोरे के परिवार के अलावा आध्र प्रदेश और तेलंगाना से 400 से अधिक मजदूर  पैदल ही राजेगांव सीमा पर पहुंचे हैं। इन मजदूरों को भोजन, पानी देने के साथ उनकी चिकित्सा जांच की गई और दर्द निवारक दवाएं भी दी गयी। इसके बाद इन लोगों को इनके गंतव्यों के लिए भेज दिया गया।

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