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भीमा-कोरेगांव मामले में प्रेस कांफ्रेस करने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ याचिका दायर

भीमा-कोरेगांव मामले में प्रेस कांफ्रेस करने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर मुंबई...
भीमा-कोरेगांव मामले में प्रेस कांफ्रेस करने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ याचिका दायर

भीमा-कोरेगांव मामले में प्रेस कांफ्रेस करने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर मुंबई हाई कोर्ट याचिका दायर की गई है। पुणे पुलिस ने 31 अगस्त को प्रेस कांफ्रेस कर गिरफ्तार किए गए पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुख्ता सबूत होने का दावा किया था।

मुंबई हाईकोर्ट में मंगलवार को एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें माओवादियों से कथित जुड़ाव के लिए गिरफ्तार किए गए पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं के मामले पर प्रेस कांफ्रेस करने वाले राज्य के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) परमबीर सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों  पर कोर्ट की अवमानना का आरोप लगाया गया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। मामले में सात सितम्बर को सुनवाई होगी।

गवाह ने दायर की है याचिका

प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पुलिस ने कार्यकर्ताओं के बीच कथित रूप से आदान-प्रदान हुए पत्रों को पढ़कर सुनाया तथा दावा किया कि उसके पास जून में और पिछले सप्ताह गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं के माओवादियों से जुड़ाव के ठोस सबूत हैं। भीमा-कोरेगांव हिंसा में गवाह होने का दावा करने वाले कार्यकर्ता संजय भालेराव ने परमबीर सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए हाई कोर्ट में एक आपराधिक जनहित याचिका दाखिल की है।

जांच राजनीति से प्रेरित होकर शुरू करने का आरोप

याचिका में प्रेस कांफ्रेंस करने और मामले में महत्वपूर्ण सूचना का खुलासा करने वाले परमबीर सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने को कहा गया है जिसके तहत अनुचित कार्य के आरोप में एक नौकरशाह को बर्खास्त किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि पुणे पुलिस ने गलत नीयत से और राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर जांच शुरू की और फिर प्रेस कांफ्रेस कर कानून का उल्लंघन किया।

कोर्ट ने उठाए हैं सवाल

इससे पहले मामले में मुंबई हाई कोर्ट एक अन्य याचिका पर पुणे पुलिस को फटकार लगा चुकी है। कोर्ट ने पुलिस से पूछा  है कि जब मामला अदालत में विचाराधीन है तो फिर प्रेस कांफ्रेस क्यों की गई। कोर्ट ने पुलिस की प्रेस कांफ्रेस पर सवाल खड़े हुए कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट मामले को देख रहा है तो पुलिस दस्तावेजों के बारे में कैसे बता सकती है जिसे इस मामले में साक्ष्य के रूप में पेश किया जा सकता है। वहीं, सरकारी वकील ने कोर्ट को भरोसा दियाया कि वह इस मुद्दे पर संबंधित पुलिस अफसरों से चर्चा करेंगे और उनसे जवाब मांगेंगे।

नजरबंद रखने के हैं आदेश

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुलिस ने जून में सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार किया था जबकि पिछले महीने छापे के दौरान वामपंथी विचारक-वरवरा राव, वरनॉन गोंजाल्वेस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया गया था। 28 अगस्त की गिरफ्तारी को लेकर एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी पर रोक लगा दी और छह सितम्बर को अगली सुनवाई तक सभी को नजरबंद रखने का आदेश दिया, जिसके दो दिन बाद 31 अगस्त को महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक परमबीर सिंह ने मुंबई में एक प्रेस कांफ्रेस की। इसमें उन्होंने कुछ दस्तावेज दिखाए और दोहराया कि गिरफ्तार पांचों कार्यकर्ताओं ने माओवादियों के साथ मिलकर कथित तौर पर केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन को खत्म करने के लिए उनकी राजीव गांधी के तर्ज पर हत्या को अंजाम देने की साजिश रची। इसके बाद इसकी वकीलों, कार्यकर्ताओं और नामचीन लोगों समेत शिवसेना ने निंदा की

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