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इसरो ने लॉन्च किए 31 सैटलाइट, जानें इस मिशन की खूबियां

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-43 के जरिए...
इसरो ने लॉन्च किए 31 सैटलाइट, जानें इस मिशन की खूबियां

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-43 के जरिए एचवाईएसआईएस (HySIS)  के अलावा 30 सैटेलाइट लॉन्च कर दिया है। इसे आन्ध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 9 बजकर 58 मिनट में छोड़ा गया। इसमें भारत का हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटलाइट और 8  देशों के 30 दूसरे सैटलाइट शामिल हैं।

सभी 30 विदेशी उपग्रह 504 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किए जाएंगे। इनमें से 23 सेटेलाइट अमेरिका के हैं और बाकी आस्ट्रेलिया, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, मलेशिया, नीदरलैंड और स्पेन के हैं।

सैटेलाइट को छोड़ने की उल्टी गिनती बुधवार की सुबह 5.58 बजे शुरू हुई

इसरो ने बुधवार को बताया कि सैटेलाइट को छोड़ने की उल्टी गिनती बुधवार की सुबह 5.58 बजे शुरू हुई और चौथे चरण के इंजन में ईंधन भरने के साथ प्रक्षेपण की दिशा में कार्य सुचारू ढंग से प्रगति में है। इसरो के अनुसार, पीएसएलवी 380 किलोग्राम भार वाले हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग सेटेलाइट (एचवाईएसआईएस) और 30 अन्य उपग्रहों के साथ गुरुवार को सुबह 9.58 बजे अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गया। 30 अन्य विदेशी उपग्रहों का कुल वजन 261.5 किलोग्राम है। यह पीएसएलवी की 45वीं उड़ान है।

रवाना होने के महज 112 मिनट में यह मिशन पूरा हो जाएगा

प्रक्षेपण यान के रवाना होने के बाद महज 112 मिनट में संपूर्ण अभियान पूरा हो जाएगा। रॉकेट का चौथा चरण उड़ान भरने के महज 16 मिनट बाद शुरू हो जाएगा। 17 मिनट से अधिक की उड़ान भरने पर पीएसएलवी रॉकेट हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग सेटेलाइट को कक्षा में स्थापित कर देगा जो वहां पांच साल तक रहेगा।

इससे पहले इसरो ने जनवरी में दो घंटे तक उपग्रह प्रक्षेपण अभियान चलाया था

इसके बाद रॉकेट 642 किलोमीटर की ऊंचाई से नीचे 503 किलोमीटर पर आएगा और उड़ान भरने के करीब 112.79 मिनट के भीतर अंतिम उपग्रह को उसकी कक्षा में पहुंचा देगा। इसरो ने इससे पहले जनवरी में दो घंटे तक उपग्रह प्रक्षेपण अभियान चलाया था।

10 बिंदुओं में जानिए क्या है इस मिशन की खूबियां

-     इस मिशन के जरिए भारत सहित 9 देशों के 31 सैटलाइट पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-43 के जरिए लॉन्च किए गए। यह पीएसएलवी की 45वीं उड़ान है।

-     इन उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो के वाणिज्यिक अंग के साथ कमर्शल करार किया गया है। पीएसएलवी इसरो का तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। इस मिशन के डायरेक्टर आर हटन हैं।

-    यह प्रक्षेपण 4 स्टेज में लॉन्च हुआ। पहली स्टेज में पीएसएलवी 139 सॉलिड रॉकेट मोटर इस्तेमाल करता है, जिसे 6 सॉलिड स्टूप बूस्ट करते हैं। दूसरी स्टेज में लिक्विड रॉकेट इंजन का यूज होता है, जिसे विकास नाम से पहचाना जाता है। तीसरी स्टेज में सॉलिड रॉकेट मोटर मौजूद है जो ऊपरी स्टेज को ज्यादा ताकत से धकेलती है। चौथी स्टेज में पेलोड से नीचे मौजूद हिस्सा चौथी स्टेज है इसमें दो इंजन मौजूद होते हैं।

-    प्रक्षेपण की उल्टी गिनती 28 घंटे पहले बुधवार की सुबह 5 बजकर 58 मिनट में शुरू हो गई थी। इसमें भारत के अलावा अमेरिका (23 सैटलाइट) और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, मलयेशिया, नीदरलैंड और स्पेन (प्रत्येक का एक उपग्रह) शामिल हैं। इनमें एक माइक्रो और 29 नैनो सैटलाइट हैं।

-    भारत का हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग उपग्रह (HySIS) इस मिशन का प्राथमिक सैटलाइट है। इमेजिंग सैटलाइट पृथ्वी की निगरानी के लिए इसरो द्वारा विकसित किया गया है।

-    इस उपग्रह का उद्देश्य पृथ्वी की सतह के साथ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पैक्ट्रम में इंफ्रारेड और शॉर्ट वेव इंफ्रारेड फील्ड का अध्ययन करना है। HySIS एक विशेष चिप की मदद से तैयार किया जाता है जिसे तकनीकी भाषा में ‘ऑप्टिकल इमेजिंग डिटेक्टर ऐरे’ कहते हैं।

-    इस उपग्रह से धरती के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना आसान हो जाएगा क्योंकि लगभग धरती से 630 किमी दूर अंतरिक्ष से पृथ्वी पर मौजूद वस्तुओं के 55 विभिन्न रंगों की पहचान आसानी से की जा सकेगी।

-    हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग या हाइस्पेक्स इमेजिंग की एक खूबी यह भी है कि यह डिजिटल इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी की शक्ति को जोड़ती है।

-    हाइस्पेक्स इमेजिंग अंतरिक्ष से एक दृश्य के हर पिक्सल के स्पेक्ट्रम को पढ़ने के अलावा पृथ्वी पर वस्तुओं, सामग्री या प्रक्रियाओं की अलग पहचान भी करती है। इससे पर्यावरण सर्वेक्षण, फसलों के लिए उपयोगी जमीन का आकलन, तेल और खनिज पदार्थों की खानों की खोज आसान होगी।

-    31 सैटलाइट का कुल भार 261.5 किलो है। 112 मिनट में यह मिशन पूरा हो जाएगा। इन उपग्रहों में ग्लासगो की 2 नैनो सैटलाइट भी हैं। इनका उद्देश्य मौसम और ग्लोबल क्लाइमेट चेंज का मुकाबला करने में मदद करेगी।

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