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एक्सक्लूसिव इंटरव्यू: दिलचस्प है कि अचानक अरब-डॉलर की 'व्हाइटनिंग' इंडस्ट्री फेयर होना चाहती हैं: नंदिता दास

अभिनेत्री और फिल्म निर्माता नंदिता दास काफी समय से 'डार्क इज ब्यूटीफुल' अभियान का समर्थन कर रही हैं।...
एक्सक्लूसिव इंटरव्यू: दिलचस्प है कि अचानक अरब-डॉलर की 'व्हाइटनिंग' इंडस्ट्री फेयर होना चाहती हैं: नंदिता दास

अभिनेत्री और फिल्म निर्माता नंदिता दास काफी समय से 'डार्क इज ब्यूटीफुल' अभियान का समर्थन कर रही हैं। पिछले साल वो पावरफुल 'इंडियाज गॉट कलर' वीडियो का हिस्सा थीं। हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) ने हाल ही में फेयरनेस क्रीम ‘फेयर एंड लवली’ से 'फेयर' शब्द को हटा दिया है। नंदिता दास ‘आउटलुक’ को बताती हैं कि समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, जहां फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन की तुलना में रंगवाद गहरा चलता है। साक्षात्कार के प्रमुख अंश...

क्या आप इसे 'डार्क इज ब्यूटीफुल' और 'इंडियाज गॉट कलर' अभियान की जीत कहेंगी?

मुझे ऐसा लगता है। यह निश्चित रूप से सही दिशा में एक कदम है। लेकिन, विडंबना यह है कि हर साल एचयूएल और उसकी प्रतियोगी कंपनियां हमें यह बताने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करती हैं कि देश में बड़े पैमाने पर काले रंग के लोग हैं और इसके लिए एक मात्र 'फेयर लवली' है। इसलिए, जब एक बड़ी कंपनी जो अपने ब्रांड को सुंदर बनाने वाले पर्यावाची के रूप में रखने में कामयाब होती है। लेकिन, फिर से उस ब्रांड से ‘फेयर’ शब्द को हटाने का फैसला करती है, जो महत्वपूर्ण है। यह रंगवाद पर बहुत ही खुली बहस पैदा करेगा।

यह मानना कठिन है कि अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड के मारे जाने के बाद ब्लैक लिव्स मैटर के विरोध प्रदर्शनों से उत्पन्न जनमत में कथित बदलाव से हटके किसी अन्य बदलाव के कारण ये हृदय परिवर्तन हुआ हो। बड़ा सवाल यह है कि मानसिकता कैसे बदलेगी? विज्ञापन की रणनीति में बदलाव किस हद तक प्रभावित करेगा? इस तरह के उत्पादन के लिए एक बाजार केवल सुंदर त्वचा के साथ हमारे जुनून को दर्शाता है। कंपनियां अधिक ग्राहकों को लुभाने के लिए अधिक क्रीम और फैंसी सपने बेचने के लिए केवल पुराने-पुराने पूर्वाग्रहों का उपयोग कर रहे हैं।

तो क्या क्रीम से 'फेयर' हटाने का मतलब कुछ और भी हैअब यह केवल नए नाम के साथ बेचा जाएगा।

एक ऐसी संस्कृति में जहां सुंदरता को मुख्य रूप से त्वचा के रंग से परिभाषित किया जाता है। यह काफी दिलचस्प है कि अचानक अरब-डॉलर की 'व्हाइटनिंग' इंडस्ट्री फेयर होना चाहती है! केवल नाम बदलने से कुछ नहीं बदलेगा, लेकिन शब्द मायने रखते हैं। समय बताएगा कि क्या ये फैले संदेश को बंद करने जा रहा है और क्या उत्पाद वास्तव में बदलने जा रहे हैं। कई लोग इस बात का संदेह करते हैं और महसूस करते हैं कि यह केवल नई बोतल में पुरानी शराब है।

कुछ लोगों ने मजाक में कहा कि फेयर एंड लवली को त्वचा देखभाल प्रॉडक्ट भी नहीं कहा जा सकता है, जैसा कंपनी दावा करती है। कम-से-कम यह कह सकते हैं कि यह एक अच्छी शुरुआत है। उम्मीद है कि यह इस परिवर्तन को और अधिक मजबूर करेगा। यदि यह सिर्फ एक पब्लिक रिलेशन के तहत का काम है तो वह भी पर्याप्त प्रतिरोध और बहस को चिंगारी देगा।

क्या आपको लगता है कि बच्चों को रंग के बारे में भी संवेदनशील होना चाहिए? क्या यह स्कूल स्तर पर शुरू किया जाना चाहिए?

हमें बहुत कम उम्र में ही इन पूर्वाग्रहों से परिचित कराया गया और धीरे-धीरे बच्चे रंग की राजनीति को समझने लगे हैं। मुझे चेन्नई के एक मित्र ने बताया था कि दक्षिण में अगर आप काले हैं तो आप गाना सीखते हैं। लेकिन यदि आप गोरे हैं तो आप नृत्य सीखते हैं। क्योंकि आपको मंच पर प्रदर्शन करना पड़ता है और 'अच्छा दिखना' पड़ता है। इसे बच्चे भी सुनते हैं और गोरे लोगों के लिए कहते हैं, “उसका रंग साफ है“। हम अपने जीवन में बहुत पहले से ही इन पूर्वाग्रहों से परिचित हैं। इसलिए इसे भी बचपन से ही समझने और समझाने की आवश्यकता है। ऐसा न होने से बच्चों का आत्मविश्वास डगमगा सकता है और जितनी हम कल्पना कर सकते हैं उससे कहीं अधिक उन्हें डरा सकता है।

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