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EC ने चुनाव प्रचार में जानवरों के इस्तेमाल पर लगाया पूर्ण प्रतिबंध

देश भर के पशु प्रेमियों की मांग का सम्मान करते हुए चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान जानवरों...
EC ने चुनाव प्रचार में जानवरों के इस्तेमाल पर लगाया पूर्ण प्रतिबंध

देश भर के पशु प्रेमियों की मांग का सम्मान करते हुए चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान जानवरों के इस्तेमाल या लाइव प्रदर्शनों पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया है। आचार संहिता की अपनी नियमावली में, चुनाव आयोग ने यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है (अध्याय 22.5 के पृष्ठ संख्या 144 पर) कि राजनीतिक दलों या उनके उम्मीदवारों द्वारा वोट मांगते समय किसी भी प्रकार के जानवरों, पक्षियों या सरीसृपों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

पेटा ने दी थी अर्जी

मैनुअल कहता है: "चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को किसी भी तरह से चुनाव प्रचार के लिए किसी भी जानवर का उपयोग करने से परहेज करने की सलाह दी है। यहां तक कि कोई पार्टी, जिसका चुनाव चिन्ह कोई जानवर है वह पार्टी भी चुनाव प्रचार में उस जानवर का लाइव प्रदर्शन नहीं करेगी न ही उसका कोई उम्मीदवार ऐसा करेगा।

पेटा इंडिया, पर्यावरणविदों और प्रकृतिवादियों जैसे कई भारतीय पशु अधिकार समूहों ने चुनाव आयोग के फैसले की तहे दिल से सराहना की है। पेटा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एम वलियते ने कहा, "चुनाव आयोग और पेटा इंडिया सहमत हैं कि चुनाव अभियानों में जानवरों का उपयोग करना अनावश्यक, पुरातन और क्रूर है।" उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों / उम्मीदवारों को जानवरों को भयभीत किए बिना अपने लिए रचनात्मक चुनाव अभियान का चुनाव करना चाहिए। प्रचार के दौरान उन्मादी भीड़, लाउडस्पीकर जानवारों को यातना पहुंचती है।

प्रचार के लिए क्रूरता

वलियते ने कहा कि पेटा इंडिया ने चुनाव आयोग और सभी राजनीतिक दलों को लिखा था। उन्होंने कहा कि हमने गुजारिश की थी कि चुनाव रैलियों के दौरान भीड़, शोर और पटाखों के बीच रहने के लिए जानवरों को मजबूर किया जाता है। तब स्थिति और खराब हो जाती है जब अक्सर सड़कों पर इन जानवरों की परेड कराई जाती है और इसके लिए उन्हें मारा-पीटा भी जाता है। उन्हें क्षमता से अधिक भार उठाने के लिए मजबूर किया जाता है और उन्हें न पर्याप्त खाना मिलता है न पानी और न ही आराम। इस स्थिति में उन्हें गंभीर चोट लगने की भी संभावना रहती है।

ग्रामीण इलाकों में है ज्यादा चलन

भारत के ग्रामीण इलाकों में चुनाव प्रचार के लिए हाथी, ऊंट, घोड़ा और गाय के साथ-साथ तोता, मोर, कबूतर जैसे पक्षियों के इस्तेमाल का भी चलन है। और यदि किसी उम्मीदवार को शेर या ऐसा ही कुछ अलग चुनाव चिन्ह मिल जाए तो वे इन जानवरों को भी सड़कों पर लाने से गुरेज नहीं करते।

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