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ई-लर्निंगः पढ़ाई थोड़ी, हवाई ज्यादा

चंडीगढ़ से हरीश मानव, लखनऊ से कुमार भवेश चंद्र, रायपुर से रवि भोई   महामारी और तालाबंदी से करोड़ों...
ई-लर्निंगः पढ़ाई थोड़ी, हवाई ज्यादा

चंडीगढ़ से हरीश मानव, लखनऊ से कुमार भवेश चंद्र, रायपुर से रवि भोई

 

महामारी और तालाबंदी से करोड़ों विद्यार्थियों की शिक्षा पर भी ताला लग गया है। स्कूलों से लेकर कॉलेज, प्रोफेशनल कोर्स और यूनिवर्सिटी स्तर की शिक्षा से जुड़े देश के करीब 28.50 करोड़ विद्यार्थी घरों में कैद हैं। फिलहाल, करीब 15 लाख स्कूलों और 50,000 से अधिक उच्च शिक्षण संस्थानों के 30 जून तक खुलने के आसार नहीं हैं। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय और राज्यों के शिक्षा मंत्रालयों के मुताबिक, जब तक कोरोनावायरस के संक्रमण का खतरा पूरी तरह से नहीं टल जाता, शिक्षण संस्थान खुल नहीं जाते,  ऑनलाइन शिक्षण ही पढ़ाई का एकमात्र जरिया है। इसलिए कई शिक्षण संस्थानों ने ‘ई-लर्निंग’ और ‘ऑन एयर’ पढ़ाई का विकल्प अपनाया है। हालांकि ग्रामीण, कस्बाई और छोटे शहरों में स्कूली शिक्षा को ई- लर्निंग की धारा से जोड़ना बड़ी चुनौती है, क्योंकि अभी तक देश की मात्र 36 फीसदी आबादी इंटरनेट से जुड़ी है। जाहिर है, टेक्नोलॉजी आधारित शिक्षा उन साधनविहीन गरीबों से दूर है जिनकी पहुंच में स्मार्ट फोन और इंटरनेट नहीं है।

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आइएएमएआइ) और नीलसन की सितंबर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट से जुड़ी देश की 36 फीसदी आबादी में चीन के बाद दूसरे नंबर पर भारत के 45.10 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं। इनमें 72 फीसदी शहरी और 57 फीसदी ग्रामीण हैं। इधर शिक्षाविदों की मानें तो ई-लर्निंग इन दिनों घर बैठे टेक्नोलॉजी संपन्न विद्यार्थियों के लिए सिर्फ एक ‘वैल्यू एडीशन’ है, क्लासरूम और लैब का विकल्प नहीं है। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी समेत कई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे डीएवी शैक्षणिक संस्था के सलाहकार 82 वर्षीय डॉ.सरदारा सिंह जौहल ने 'आउटलुक' से बातचीत में कहा, ‘‘कक्षा में पढ़ाने वाले शिक्षक को कोई विकल्प नहीं है। ई-लर्निंग कुछ साधन संपन्न घरों के बच्चों के लिए मददगार हो सकती है, पर संकट के ऐसे समय में साधनविहीन गरीब लोग तो शिक्षा से और दूर हो गए हैं।’’ उन्होंने बताया कि ‘चॉक-टॉक’ मॉडल से इतर हाइटेक शिक्षा प्रणाली देश के गरीब ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में कारगर नहीं है, जहां ब्रॉडबैंड, स्मार्ट फोन, टैबलेट, लैपटॉप जैसे उपकरणों तक 10 फीसदी से भी कम आबादी की पहुंच है। केवल साधन संपन्न वर्ग के बीच पैंठ रखने वाली ई-लर्निंग अभी तक देश में शिक्षा का सार्वजनिक मॉडल नहीं बन पाई है।

लॉकडाउन-1 के दौरान तो शिक्षा जैसे प्राथमिकता सूची में ही नहीं थी, पर लॉकडाउन-2 के पहले दस दिनों में ही सरकार ने अपनी साख बचाने और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों ने फीस सुरक्षित करने के फेर में ई-लर्निंग की कवायद तेज की है। वेबसाइट और मोबाइल पर ई-लर्निंग ऐप और टीवी, रेडियो पर ऑन एयर पढ़ाई की बाढ़ आ गई है। लॉकडाउन-2 से तीन दिन पहले 11 अप्रैल को मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने ‘‘भारत पढ़े ऑनलाइन’’ मुहिम की शुरुआत से पहले ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को ज्यादा प्रभावशाली और रचनात्मक बनाने के लिए ट्वीटर पर एक हफ्ते के भीतर सुझाव मांगे। मानव संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म पर लॉकडाउन के दौरान एक्सेस चार गुना बढ़ गई है। मंत्रालय के निर्देश पर केंद्रीय विद्यालय संगठन, तमाम आइआइटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी और कई राष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थानों समेत कई राज्यों ने भी ई-लर्निंग कोर्स शुरू किए हैं। एनसीईआरटी ने लॉकडाउन के प्रभाव से बच्चों की पढ़ाई को बचाने की दिशा में पहली से पांचवीं के बच्चों के लिए बगैर इंटरनेट के शिक्षकों के मोबाइल पर एसएमएस भेज कर पढ़ाने के निर्देश दिए हैं। एनसीईआरटी ने लॉकडाउन स्टडी कलैंडर में संस्कृत, उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी को  ई-पाठशाला, एनआरओईआर और दीक्षा पोर्टल पर उपलब्ध कराया है।

आइआइटी, खड़गपुर ने प्राइवेट कंपनियों के साथ एक प्लेसमेंट टास्क फोर्स का गठन किया है। इसके जरिए विद्यार्थी नौकरी की संभावनाएं तलाश सकते हैं। आइआइटी कानपुर ने खेती विज्ञान के लिए 6 से 8 हफ्ते के तीन ऑनलाइन कोर्स मई से शुरू करने की तैयारी की है। आइआइटी कानपुर ने भौतिक विज्ञान पढऩे के इच्छुक नौंवी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए आठ हफ्ते का मुफ्त ऑनलाइन कोर्स शुरू किया है। आइआइटी, कानपुर से सेवानिवृत्त पद्मश्री प्रोफेसर एच.सी. वर्मा ने इस कोर्स को ‘स्टे होम एंड रिवाइज फिजिक्स’ का नाम दिया है। आइआइटी, कानपुर के निदेशक प्रोफेसर अभय करंदीकर ने अपने एक ट्वीट के जरिए बताया कि प्रति दिन ढेड़ घंटे की ऑनलाइन क्लास में लॉकडाउन के समय विद्यार्थी मुफ्त पढ़ सकेंगे। इधर यूजीसी ने भी विद्यार्थियों को घर बैठे पढ़ाई के लिए 10 ऑनलाइन लिंक जारी किए हैं।   

पंजाब के शिक्षा मंत्री विजेंद्र सिंगला ने 'आउटलुक' को बताया, ‘‘ हमारे शिक्षक बच्चों को वाॅट्सएप ग्रुपों पर ई-कंटेंट बड़े पैमाने पर साझा कर रहे हैं। जूम क्लासेज,गूगल ड्राइव के अलावा दोआबा क्षेत्र में रेडियो के जरिए शिक्षा का प्रसार किया जा रहा है। दूरदर्शन की मदद से टीवी पर कक्षाएं चलाने के लिए वर्चुअल क्लास की शूटिंग की जा रही है। संभवत 30 जून तक  शिक्षण संस्थानों के बंद रहने की सूरत में ऑनलाइन पढ़ाई को बेहतर करने के लिए एक सलाहकार समिति का गठन किया जाएगा।’’ सिंगला के मुताबिक, उन्होंने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को सुझाव दिया है कि 2020-21 के शैक्षणिक सत्र के लिए पाठ्यक्रम एक-तिहाई घटा दिया जाए, प्रोफैशनल कोर्स के सैमेस्टर भी आठ से घटाकर सात किए जाएं।  राजस्थान के उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी के मुताबिक, राज्य के सरकारी कॉलेजों में पढ़ऩे वाले 4.50 लाख विद्यार्थियों में 2.50 लाख विद्यार्थी ई-लर्निंग से जुड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन होते ही कॉलेज शिक्षा को ऑनलाइन करने की तैयारी बड़े पैमाने पर की गई थी, जिसके तहत अब तक रिकॉर्ड किए गए 7,597 ई-व्याख्यानों में से 4,630 व्याख्यान सोशल मीडिया साइट पर अपलोड किए गए हैं। सभी विषयों के 20,271 मॉडल प्रश्नपत्र और 30,862 मॉडल उतर तैयार किए हैं।

हरियाणा ने 15 अप्रैल से चार टीवी चैनल पर एजूसेट प्रोग्राम के तहत पहली से बारहवीं के विद्यार्थियों के लिए शिक्षकों के व्याख्यान टेलीकॉस्ट करने शुरू किए हैं। जानकारी के मुताबिक, पहली से बारहवीं के 20.60 लाख विद्यार्थियों में से सिर्फ 3.58 लाख ने ही ये ऑन एयर प्रोग्राम देखने शुरू किए हैं। मजे की बात यह है कि टीवी पर कक्षाएं लगाने वालों में सबसे कम गुरुग्राम कि फरीदाबाद जैसे एनसीआर महानगरों के बच्चे हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव महावीर सिंह का कहना है कि सरकारी स्कूलों में इंटरनेट, स्मार्ट फोन और स्मार्ट कक्षाओं के अभाव में टीवी पर कक्षाओं के आयोजन की पहल से जुड़ने में विद्यार्थियों को अभी वक्त लगेगा। हरियाणा अध्यापक संघ के अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा का कहना है कि इन दिनों दिन के अधिकांश समय बिजली गुल रहती है, इसलिए टीवी पर पढ़ाई का कोई मतलब नहीं है। एनसीईआरटी से हरी झंडी मिलने के बाद ही पाठ्यक्रम में कटौती या शैक्षणिक सत्र बढ़ाए जाने पर विचार कर रहे हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने 'आउटलुक' को बताया कि लॉकडाउन के समय में राज्य के 40 फीसदी विद्यार्थियों को ही ऑनलाइन शिक्षा से जोड़ पा रहे हैं, क्योंकि 60 फीसदी आबादी के पास स्मार्ट फोन ही नहीं हैं। दूरदर्शन पर सुबह 10 से दोपहर एक बजे तक ऑनलाइन कक्षाओं के लिए गठबंधन किया है। रेडियो पर प्रसारण के लिए प्रसार भारती से संपर्क किया जा रहा है। बिहार सरकार  ने दूरदर्शन (डीडी) बिहार के सहयोग से 9वीं तथा10वीं के विद्यार्थियों के लिए ‘वर्चुअल’ कक्षाएं शुरू की हैं।

पढ़ाई ऑन एयर

जो इलाके इंटरनेट या स्मार्ट मोबाइल फोन की पहुंच से दूर हैं वहां ‘ऑन एयर’ पढ़ाई रेडियो से जारी रखने के प्रयास हैं। ललतो कलां लुधियाना के सरकारी हाईस्कूल के शिक्षक करमजीत सिंह ग्रेवाल ने बताया कि लॉकडाउन का बच्चों की पढ़ाई पर विपरीत असर कम करने की दिशा में कनाडा के इंटरनेट रेडियो ‘दोआबा’ ने प्रतिदिन तीन बजे पंजाब के विद्यार्थियों के लिए ‘सुनो सुनावा, पाठ पढ़ावा’ प्रोग्राम आरंभ किया है। इस प्रोग्राम में छठी, आठवीं और नौंवी कक्षा के व्याख्यान सरकारी स्कूलों के शिक्षकों द्वारा तैयार किए गए हैं। इधर करीब ढाई लाख की आबादी वाले लेह-लद्दाख के 400 से अधिक सरकारी स्कूलों की पहुंच इंटरनेट तक नहीं है, इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई संभव नहीं है। यहां सिर्फ रेडियो की पहुंच है। 10वीं और 12वीं के बच्चों को रेडियो के जरिए पढ़ाने का प्रयास जारी है, पर यहां के ग्रामीण इलाकों के 116 गांव भी रेडियो के नेटवर्क में नहीं है।

ई लर्निंग की भरमार

कोरोना के चलते विश्वव्यापी लॉकडाउन के बीच ऑनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में अप्रत्याशित तेजी आई है। लॉकडाउन के बीच ऑनलाइन कोर्स में तीन गुना तक बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग के बीच आइएएमएआइ की मानें तो 2024 तक देश के 85 फीसदी घर मोबाइल इंटरनेट से जुड़े होंगे। एक प्राइवेट पोर्टल का दावा है कि 2019 के मार्च-अप्रैल की तुलना में 2020 के मार्च-अप्रैल में ऑनलाइन कोर्सेज के लिए 500 फीसदी अधिक नए रजिस्ट्रेशन हुए हैं। प्राइवेट संस्थानों के पेड ई-लर्निंग एप और ई-लर्निंग के लिए पांच प्रमुख सरकारी मुफ्त पोर्टल के अलावा मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में विद्यादान-2 कार्यक्रम की शुरुआत की है। मंत्रालय का दावा है कि इस ऑनलाइन प्लेटफार्म पर गुणवत्तापूर्ण डिजिटल पाठ्य सामग्री उपलब्ध होगी। सरकार के इलिस पोर्टल में मशीन लर्निंग, प्रोग्रामिंग, डिजिटल मार्केटिंग जैसे कई तरह के कोर्स शामिल हैं। नौंवीं से स्नातकोत्तर तक के विद्यार्थियों के लिए ‘स्वयं’ पोर्टल में आर्ट्स, गणित, विज्ञान से लेकर कई विषयों के कोर्स हैं। दीक्षा पोर्टल शिक्षकों और पहली से 12वीं के छात्रों के लिए है। केवल 12वीं कक्षा के लिए ही 80 हजार से ज्यादा ई-बुक्स आठ भाषाओं में हैं, जिन्हें सीबीएसई, एनसीईआरटी और राज्य शिक्षा बोर्ड्स ने तैयार किया है। एनआरओईआर (नेशनल रिपॉजिटरी ऑफ ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेस) पोर्टल में स्कूल-कॉलेज से लेकर नौकरीपेशा लोगों के लिए ई-लाइब्रेरी, ई-बुक्स और ई-कोर्सेस का कोष है। पहली से 12वीं कक्षा तक के छात्रों के लिए ई-पाठशाला एप में एनसीईआरटी ने पहली से बारहवीं तक की सभी विषयों की किताबें मुफ्त में उपलब्ध कराई हैं। 27 लाख से ज्यादा बार डाउनलोड हो चुकी ई-पाठशाला एप में 500 ई-बुक्स, 2000 वीडियो और 1800 ऑडियो हैं। ऑनलाइन किताबों को पढ़ना आसान बनाने के लिए सिलेक्ट, जूम, हाइलाइट और बुकमार्क जैसे विकल्प भी एप पर उपलब्ध हैं। लॉकडाउन के बीच प्रोफेशनल्स और तमाम नौकरीपेशा लोगों द्वारा ‘वर्क एट होम’ और विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर के इस दौर में घरों में ब्रांड बैंड, इंटरनेट की खपत में 60 फीसदी की बढ़ोतरी से इंटरनेट की स्पीड धीमी पड़ी तो पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के अहंदा गांव के 35 साल के शिक्षक सुब्रत पति को अपने विद्यार्थियों की ऑनलाइन कक्षा जारी रखने के लिए नीम के पेड़ पर बनाए मचान पर पढ़ऩे को मजबूर होना पड़ा।

उत्तर प्रदेश: ऑनलाइन पढ़ाई में डेटा का कांटा

कहने और सुनने में अच्छा लगता है कि कोरोना और लॉकडाउन की चुनौतियों से पार पाने के लिए ऑनलाइन क्लास शुरू कर दिए गए हैं। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिना किसी खास तैयारी के इन कोशिशों के जरिए हम विद्यार्थियों के साथ न्याय कर पा रहे हैं? या फिर शिक्षा के साथ हम पूरी तरह न्याय कर पा रहे हैं? क्या ‘ई क्लास’ नियमित रूप से चलने वाली पढ़ाई का विकल्प बन सकते हैं या बन गए हैं?

डॉ. एपीजे अबुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वॉइस चांसलर डॉ. विनय कुमार पाठक बहुत ही साफगोई से स्वीकार करते हैं कि मौजूदा हालात में हमारे सामने विकल्प कम थे, इसलिए हमने ई-लर्निंग की ओर अचानक से कदम तो बढ़ा दिए हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि अगर हमें इसे जारी रखना है या प्रभावी नतीजे हासिल करना है तो इस दिशा में बहुत अधिक काम करने की जरूरत है। डॉ. पाठक कहते हैं, "हम अभी भी वीडियो क्रांफ्रेंसिंग के लिए गूगल जूम और दूसरे उपलब्ध एप निर्भर हैं। इनमें से कोई भी एप ऐसा नहीं है जिसे हमने तैयार किया है। हमें अपना डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा। और सबसे बड़ी बात कि आज भी भारत में इंटरनेट डेटा महंगा है। छात्रों और शिक्षण संस्थानों के लिए इसे आसान और सस्ता विकल्प बनाने की जरूरत है।" डॉ. पाठक कुछ और समस्याओं की ओर इशारा करते हैं। उनका कहना है कि अभी हम जिस लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम काे इस्तेमाल कर रहे हैं वह भी हमारा अपना नहीं है। इसके अलावा हमारे पास जो कंटेंट उपलब्ध हैं, यानी विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए सामग्री है, वह अपनी भाषा में नहीं है। अंग्रेजी का कंटेंट अभी भी ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है।

ई-लर्निंग के लिए टीचरों की पर्याप्त ट्रेनिंग के साथ छात्रों को भी तकनीकी रूप से मजबूत बनाने की जरूरत एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने है। सभी छात्रों के पास स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप की उपलब्धता एक बड़ा प्रश्न है। ऐसे में ई-लर्निंग निश्चित रूप से एक दायरे में सिमट गया है। सामान्य कोर्स की बात थोड़ी देर के लिए अलग कर दें, तो इंजीनियरिंग से लेकर प्रबंधन और दूसरे पेशेवर कोर्स के छात्रों की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं मानी जा सकती। डॉ.एपीजे अबुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी में ढाई लाख छात्र हैं। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद विश्वविद्यालय ई-लर्निंग के जरिए 60 से 70 फीसदी छात्रों तक ही पहुंच का दावा कर रहा है। इनमें भी अधिकतम 50 फीसदी छात्र ही कोर्स को पूरी तरह समझ पा रहे हैं। जाहिर है आपात स्थिति में इसकी शुरुआत कर दी गई है, ताकि छात्रों के समय का सदुपयोग हो सके। पर इस दिशा में मजबूत प्रयास की बहुत जरूरत साफ तौर पर दिख रही है।

माध्यमिक स्तर की शिक्षा को लेकर भी बहुत संतोषजनक हालात नहीं हैं। कानपुर के पास महोली के सरस्वती विद्या मंदिर में मैथ टीचर विश्ववीर सिंह कहते हैं, "माध्यमिक के छात्रों के लिए वाॅट्सएप ग्रुप बनाकर काम किया जा रहा है, लेकिन यह व्यवस्थित क्लासरूम का विकल्प नहीं बन पाया है। शिक्षकों और छात्रों के वाॅट्सएप ग्रुप बने हुए हैं, लेकिन दोतरफा संवाद एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। अपेक्षाकृत कमजोर छात्रों के लिए यह व्यवस्था उतनी कारगर साबित नहीं हो पा रही है, क्योंकि वे कमियां छुपा ले रहे हैं। इसके अलावा दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट की पहुंच के साथ छात्रों को डेटा की उपलब्धता बड़ी समस्या है। चार मिनट के एक वीडियो को डाउनलोड करना कई छात्रों के लिए अभी भी जहमत भरा काम है।" 

शिक्षाविद और प्राध्यापक यह भी मान रहे हैं कि ई-लर्निंग की विश्वसनीयता को और मजबूत बनाने के लिए इसे दूरस्थ शिक्षा यानी डिस्टेंट लर्निंग से अधिक प्रभावी बनाना होगा। वरना जिस तरह से दूरस्थ शिक्षा को समाज में दोयम दर्जे की शिक्षा के रूप में देखा और माना जाता है, उससे इसकी तुलना होने लगेगी। कोरोना की वजह से लॉकडाउन में जाने की मजबूरी इतनी तेजी से हमारे सामने उपस्थित हुई कि इसकी तैयारियों का समय ही नहीं मिला। मौजूदा ढांचे के साथ इसकी शुरुआत हो गई है। लेकिन यह भी सही है कि इस बहाने हमें इस दिशा में कदम बढ़ाने की चुनौतियों का पता लग गया है।

छत्तीसगढ़ः ऑनलाइन पढ़ाई से खुला नया द्वार, दिक्कतें भी

ऑनलाइन शिक्षा पहले से चल रही है, लेकिन लाकडाउन से सरकार और दूसरे संस्थानों ने इसे प्रयोग में लाया है, लेकिन बिना तैयारी और नया होने से कई दिक्कतें भी आ रही हैं। छत्तीसगढ़ में सरकार और कई निजी शिक्षण संस्थानों ने ऑनलाइन पढाई की व्यवस्था की है, ताकि छात्रों को लाकडाउन से ज्यादा नुकसान नहीं हो। स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने 'आउटलुक'  से खास बातचीत में बताया कि 7 अप्रैल को  राज्य में छात्रों के लिए पढ़ाई तुंहर दुआर' ( पढ़ाई आपके दरवाजे पर ) कार्यक्रम  प्रारंभ किया गया। इसके तहत  सीजी स्कूल डाट इन पोर्टल के माध्यम से बच्चे नि:शुल्क जुड़ सकते हैं। अब तक इस पोर्टल के जरिए 15 लाख 77 हजार से अधिक बच्चे जुड़ चुके हैं।  एक लाख 65 से अधिक शिक्षकों ने पंजीयन भी कराया है।  छात्रों को आडियो-वीडियो और फोटो के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है।  शिक्षा मंत्री ने कहा कि राज्य में  14 से 30 अप्रैल तक स्कूल खुलते हैं, फिर 15 जून तक  गर्मी की छुट्टी दे दी जाती है, लेकिन इस बार स्कूल नहीं खोले गए।  ई-क्लासेस के माध्यम से छात्रों को पढ़ाया जा रहा है । 78 ऑनलाइन क्लासेस चल रहे हैं। यह पोर्टल कालेज के छात्रों के लिए भी खोल दिया गया, वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर अपने राज्यों के छात्रों के लिए इस्तेमाल करने का आग्रह भी किया है। इस शिक्षा पोर्टल की निगरानी राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद कर रही है। लेकिन कई तरह की समस्याएं भी आ रही हैं। इंजीनियरिंग और सामान्य कॉलजों में भी ई-क्लासेस की व्यवस्था की गई है, लेकिन ग्रेजुएट क्लासेस की परीक्षा समस्या बनी है। सोशल डिस्टेंसिंग अपनाकर परीक्षा लेने पर अभी विचार हो रहा है। ई-क्लासेस को लेकर बच्चों को एक दिक्कत यह भी आ रही है कि प्राइवेट ऑनलाइन मटेरियल उपलब्ध  कराने और लेक्चर देने वाले फीस लेकर भी पूरी सामग्री नहीं दे रहें हैं।  यह समस्या ज्यादा जेईई और नीट की तैयारी करने वाले छात्रों के सामने खड़ी हो रही है। कुछ बच्चे  शिकायत करते हैं कि ऑनलाइन पढ़ाने वाले निजी संस्थान एडवांस फीस लेने के बाद पूरा मटेरियल देने के बजाय दूसरे कोर्स का प्रलोभन देकर अधिक राशि वसूलने की भी कोशिश करते हैं।   

राज्य के आदिवासी बहुल जिला बस्तर के शिक्षा अधिकारी ने राज्य के शिक्षा संचालक को पत्र लिखकर ज़ूम एप के जरिए टीचरों द्वारा काम न करने की जानकारी दी है और जानकारी दी  है कि 'पढाई तुंहर दुआर' कार्यक्रम में गतिरोध आ रहा है।  सरकार मान रही है कि स्कूली बच्चों से लेकर बड़े आयु के छात्रों के पास कंप्यूटर-लैपटॉप और एनरॉयड फोन हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग ही है।  बस्तर के सुरेश महापात्र का कहना है, '' बच्चों को अभी एप को समझने में ही समय लग रहा है।  राज्य के आदिवासी  और ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की भी बड़ी समस्या है।'' स्कूल शिक्षा मंत्री का  कहना है,   ''नेटवर्क वाले क्षेत्र में बच्चों काे एकत्र करने की कोशिश की जा रही है। राज्य में 10 वीं और 12 वीं कक्षा को छोड़कर बाकी क्लास के छात्रों को जनरल प्रमोशन दे दिया गया है। 10 वीं और 12 वीं कक्षा की बची परीक्षाएं मई में आयोजित करने का प्लान है। 

शिक्षाविद डॉ. जवाहर सुरिसेट्टी दो एप डेवलेप कर लाकडाउन में  बच्चों को मनोरंजन के साथ पढाई करा रहे हैं। ऑनलाइन क्लासेस में शहरी इलाकों के बच्चे ज्यादा जुड़ रहे हैं। उनका मानना है कि ई-लर्निग से बच्चों को बाहर का फायदा हो रहा है और उनमें कुंठा की भावना दूर हो रही है। विषय का ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। दुर्गा कालेज रायपुर के प्राचार्य डॉ. राकेश तिवारी का कहना है, '' ई-लर्निग से स्टूडेंट्स को कई अच्छे लेक्चर का फायदा हो रहा है और कई विशेषज्ञों के नोट्स भी मिल रहे हैं, लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्टर की समस्या आ रही है। पर आने वाले दिनों में यह अच्छा प्लेटफॉर्म होगा। सचदेवा न्यू पी टी कोचिंग के संचालक मोती जैन का कहना है, ''ऑनलाइन क्लासेस 9 से 12 तक के बच्चों के लिए ठीक हैं और वे अच्छा रिस्पांस भी कर रहे हैं। लेकिन नाै से छोटे क्लास के बच्चों के लिए खास उपयोगी नहीं हो रहा है। फिजिकल क्लास के जरिए जैसे छोटे बच्चों से जुड़ना पड़ता है, वैसा जुड़ाव नहीं हो पा रहा है। ई-क्लासेस में ग्रामीण इलाकों में संसाधनों की कमी आड़े आ रही है। मसलन, नेटवर्क की समस्या, बच्चों के पास कंप्यूटर और लेपटॉप या फिर एनरॉयड फोन का न होना।

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