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चिदंबरम का आरोप, हिंदुत्व की विचारधारा से प्रेरित दस्तावेज बन जाएगा संविधान

पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने आरोप लगाया है कि आज देश पर डर का राज कायम है और खतरा इस...
चिदंबरम का आरोप, हिंदुत्व की विचारधारा से प्रेरित दस्तावेज बन जाएगा संविधान

पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने आरोप लगाया है कि आज देश पर डर का राज कायम है और खतरा इस बात का है कि संविधान हिंदुत्व की विचाराधारा से प्रेरित एक दस्तावेज में बदल दिया जाएगा।

चिदंबरम ने कहा, ‘समकालीन भारत में संविधान के प्रत्येक मूल्य पर हमला हो रहा है और उन्हें एक स्पष्ट और वर्तमान खतरे का डर है कि भारत के संविधान को एक दस्तावेज के साथ बदल दिया जाएगा, जो हिंदुत्व की  विचारधारा से प्रेरित होगा। इससे भारत का विचार समाप्त हो जाएगा और उससे मुक्ति पाने के लिए एक दूसरे स्वतंत्रता संघर्ष और दूसरे महात्मा गांधी की जरूरत होगी।' उन्होंने यह विचार अपनी किताब ‘अनडॉन्टेड: सेविंग द आइडिया ऑफ इंडिया’ में व्यक्त किए हैं।

राज्यसभा सदस्य पी चिदंबरम  ने कहा, 'पटरी से उतरी हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है। बंटे हुए समाज को ठीक किया जा सकता है और एकजुट किया जा सकता है लेकिन अगर संविधान और संवैधानिक मूल्यों को तोड़ा गया तो फिर इसे ठीक नहीं किया जा सकता।'

'आजादी के लिए डर भगाना जरूरी'

उनका कहना है कि मौजूदा समय में संविधान के मूल्यों पर हमला किया जा रहा है फिर चाहे वो स्वतंत्रता, समानता, उदारवाद, धर्मनिरपेक्षता, निजता या फिर वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो लेकिन यह तय है कि संविधान को हिंदुत्व से प्रेरित विचारधारा में बदल दिया जाएगा। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि, आज भारत पर शासन का डर है। हर व्यक्ति भय में जी रहा है। उन्होंने कहा कि फिर से आजादी पाने के लिए डर को भगाना होगा। यह कोई आसान काम नहीं है लेकिन हम हार नहीं मान सकते।

उन्होंने लिखा है कि आम लोगों ने उपचुनावों और राज्य विधानसभाओं में फिर से इसे वापस लाने का काम किया है लेकिन यह काम अभी अधूरा है। इसे अगले सौ दिनों में पूरा किया जाना चाहिए। हमें इस काम को पूरा करने के लिए तब तक आगे बढ़ना है जब तक यह पूरा नहीं हो जाता।

बिना बहस के बजट पारित कराना संसद पर सवाल

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है, 'अगर बजट को संसद में बगैर बहस के पारित कर दिया जाता है और यदि स्थायी समिति के संदर्भ के बगैर कानून के महत्वपूर्ण हिस्सों को पारित कर दिया जाता है तो यह स्पष्ट है कि विधायी संस्थान के रूप में संसद अपना काम नहीं कर रही है और सरकार अपने प्राथमिक कर्तव्य में विफल रही है।'

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