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सीबीआई की खत्म हो गई साख, पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर से जानिए वर्मा को हटाने की कहानी

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल ने गुरूवार शाम को सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को उनके पद से हटा...
सीबीआई की खत्म हो गई साख, पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर से जानिए वर्मा को हटाने की कहानी

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल ने गुरूवार शाम को सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को उनके पद से हटा दिया। वर्मा पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा सीबीआई डायरेक्टर के रुप में काम करने का फैसला दिया था। जिसमें कहा गया था कि वह सेलेक्ट कमेटी द्वारा उनकी नियुक्ति के फैसले पर निर्णय करने तक डायरेक्टर रहते हुए कोई नीतिगत फैसला नहीं लेंगे। ऐसे में 75 दिन बाद अपने पद पर लौटे वर्मा को एक बार फिर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। दरअसल सीबीआई में नंबर-1 और नंबर-2 के बीच खींचतान 23 अक्टूबर को ही सार्वजनिक हो गई थी। जिसके बाद वर्मा और राकेशन अस्थाना को देर रात सीवीसी की सिफारिशों के आधार पर छुट्टी पर भेज दिया गया था। पिछले 2 महीने से सीबीआई पर उठ रहे सवालो ंपर पूर्व संयुक्त निदेशक एन.के.सिंह का कहना है कि कुछ हुआ या नहीं पर एक बात साफ हो गई है कि इन विवादों से सीबीआई की साख पूरी तरह से खत्म हो गई है। उन्होंने 'आउटलुक' से बातचीत में कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आए फैसले में कहा गया था कि आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजना गैर-कानूनी था और ये भी कहा कि सीवीसी ने अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर ये काम किया।

'कमेटी के इस फैसले से सीबीआई को भारी नुकसान हुआ'

उन्होंने कहा, जहां तक आलोक वर्मा का मामला है तो उनका अध्याय तो अब खत्म हो चुका है लेकिन इसमें सीबीआई को भारी नुकसान हुआ है। सीबीआई के डायरेक्टर को पहले तो गलत ढंग से लाया गया, क्योंकि तत्कालीन वरिष्ठतम सीबीआई अधिकारी आर.के. दत्ता को बाहर करना था। जबकि उन्हें सीबीआई डायरेक्टर बनाया जाना चाहिए था। ऐसा न कर वर्मा को लाया गया लेकिन उन्हें सीवीसी परेशान करने लगा और आर.के अस्थाना से भी उनकी नहीं बनी, जिसके बाद दोनों को हटाया गया और गैर कानूनी तरीके से, बेढंग तरीके से हटाया गया। देर रात सीबीआई के दफ्तर में जाकर हटाना ये समझ के बाहर की बात है, ये लोग आतंकावादी या अपराधी तो नहीं थे। यही काम दिन के उजाले में करते तो क्या होता, आधी रात ये काम क्यों किया गया। 

इस मामले में सीवीसी की भूमिका अच्छी नहीं रही है

सीवीसी की भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि जहां तक सीवीसी की बात है तो उसकी भूमिका इस मामले में अच्छी नहीं रही है। क्योंकि सरकार के कहने पर उन्होंने गैर-कानूनी ऑर्डर पास कर दिया। उन्होंने कहा कि कमेटी के पास अधिकार है कि वह सीबीआई डायरेक्टर पर फैसला ले सके, ऐसे में अब उसने जो फैसला किया है उसे हमें मानना पड़ेगा। शुरू से ही सीवीसी का रवैय्या ठीक नहीं था। सरकार तो आलोक वर्मा को हटाना चाहती थी लेकिन रिपोर्ट में ऐसा क्या था कि कमेटी में शामिल सुप्रीम कोर्ट के जज भी इस फैसले पर तैयार हो गए, इस सवाल पर एन.के. सिंह ने कहा कि सीवीसी के रिपोर्ट में जिस तरह की बातें थीं उस पर सुप्रीम कोर्ट के जज को लगा होगा कि वर्मा का इस पद पर बने रहना ठीक नहीं है।

क्या आलोक वर्मा सही काम कर रहे थे?

उन्होंने कहा कुछ तो गलती की थी वर्मा ने। क्योंकि सीबीआई में काम करने का उनको अनुभव नहीं था। उस समय भी विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने वर्मा की नियुक्ति पर सवाल अनुभव को देखते ही हुए उठाए थे। दोबारा पद पर आने के बाद वर्मा ने जिस तेजी से ट्रांसफर और पोस्टिंग किए वह सही नही था। मैं उनकी जगह होता तो सेलेक्ट कमेटी के फैसले का इंतजार करता।

सरकार को किसी बात का भय था

क्या ये अहम की लड़ाई थी, इस पर उन्होंने कहा कि ये अहम की लड़ाई नहीं  थी बल्कि सरकार चाहती थी किस तरह से सीबीआई को कंट्रोल में रखा जाए।  विपक्ष द्वारा ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि आलोक वर्मा राफेल की फाइल पर साइन करने वाले थे इसलिए ऐसा हुआ, इस पर उन्होंने कहा कि इस पर हम कुछ नहीं कह सकते लेकिन सरकार को किसी बात का भय तो जरूर था । 

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