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किसी को सिर्फ इसलिए जेल नहीं भेज सकते कि उसने सरकारी नीतियों का विरोध किया हैः दिशा रवि को जमानत पर कोर्ट की टिप्पणी

सामाजिक कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत देते हुए दिल्ली के सेशन कोर्ट ने जिस तरह की टिप्पणियां की हैं, वे...
किसी को सिर्फ इसलिए जेल नहीं भेज सकते कि उसने सरकारी नीतियों का विरोध किया हैः दिशा रवि को जमानत पर कोर्ट की टिप्पणी

सामाजिक कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत देते हुए दिल्ली के सेशन कोर्ट ने जिस तरह की टिप्पणियां की हैं, वे दिल्ली पुलिस और जांच एजेंसियों को शर्मसार करने वाली हैं। कोर्ट ने कहा है कि किसी नागरिक को सिर्फ इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता कि उसने सरकारी नीतियों के प्रति असहमति जताई है। स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट किए गए टूलकिट के सिलसिले में दिशा रवि को गिरफ्तार किया गया था। दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया है कि इस डॉक्यूमेंट को तैयार करने और उसके प्रसार में दिशा रवि की मुख्य भूमिका है। पुलिस ने यह आरोप भी लगाया कि खालिस्तान समर्थक संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन (पीजेएफ) के साथ मिलकर दिशा ने भारत सरकार के खिलाफ प्रचार किया।

लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार की जमीर के रखवाले होते हैं
दिशा को जमानत देते हुए एडिशनल सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने कहा कि अभियुक्त के खिलाफ पुराना कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। पुलिस ने दिशा के खिलाफ जो सबूत दिए हैं, वे नाकाफी और सतही हैं। इसलिए 22 साल की लड़की को जमानत देने के सामान्य नियम को तोड़ने का कोई कारण नहीं दिखता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार की जमीर के रखवाले होते हैं। उन्हें सिर्फ इसलिए सीखचों के पीछे नहीं डाला जा सकता कि उन्होंने सरकारी नीतियों के प्रति असहमति जताई है। जज राणा ने अपने फैसले में लिखा है कि जांच एजेंसी को सिर्फ उनके अनुमान के आधार पर एक नागरिक की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

ऋग्वेद में भी विचारों की भिन्नता का सम्मान
जज राणा ने ऋग्वेद का भी उदाहरण दिया, जिसमें विचारों की भिन्नता का सम्मान करने की बात कही गई है। अपने फैसले में उन्होंने लिखा है, “हमारी 5000 साल पुरानी सभ्यता कभी भी अलग-अलग विचारों के खिलाफ नहीं रही है। हमारे संस्थापक पितामहों ने अभिव्यक्ति की आजादी को स्वीकार करते हुए विचारों की भिन्नता का सम्मान किया था। असहमति का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 में भी दिया गया है।”

टूलकिट में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया
जज राणा ने लिखा है, “मेरे विचार में अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में दूसरे देशों के लोगों को जोड़ना भी शामिल है। संचार की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती है। किसी भी नागरिक को कानून के दायरे में रहकर सर्वश्रेष्ठ तरीके से सूचना देने और प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है, और इसमें विदेशी ऑडियंस में शामिल है।” पीजेएफ के साथ संबंधों पर कोर्ट ने स्पष्ट कहा, “तथाकथित टूलकिट या पीजेएफ के साथ संबंधों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया है। इसलिए सिर्फ टूलकिट या पीजेएफ के साथ अपने संबंध के सबूत को नष्ट करने के मकसद से व्हाट्सएप चैट को डिलीट करना निरर्थक हो जाता है।”

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