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'काल के कपाल' पर लिखा अटल का राजनीतिक सफर, जो कभी मिटेगा नहीं

देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में एम्स में निधन...
'काल के कपाल' पर लिखा अटल का राजनीतिक सफर, जो कभी मिटेगा नहीं

देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में एम्स में निधन हो गया। एम्स ने बुलेटिन जारी कर इस बात की पुष्टि की। शाम 5 बजकर 5 मिनट पर उन्होंने आखिरी सांस ली।

अटल बिहारी वाजपेयी लालकृष्ण आडवाणी के साथ भाजपा को स्थापित करने वाले नेता थे, जिन्होंने कई चुनाव हारते-हारते प्रधानमंत्री बनने का सफर तय किया। उनका राजनीतिक जीवन पांच दशकों से भी ज्यादा समय में फैला हुआ है। उनकी कविता की पंक्ति है, ''काल के कपाल पर लिखता, मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं।'' लेकिन काल के कपाल पर उनका जो राजनीतिक सफर दर्ज है वह कभी नहीं मिटेगा।

बाबरी विध्वंस के बाद भाजपा पर सांप्रदायिकता के तमाम आरोपों के बावजूद वह हिंदुत्व के कट्टर चेहरे नहीं रहे इसलिए उनकी स्वीकार्यता लगभग हर दल, लगभग हर समुदाय में थी। लोग उनके दुश्मन नहीं, विपक्षी थे। हजारों लोगों ने उनसे बोलने की शैली सीखी। ओजस्वी और तेज तर्रार भावभंगिमा के साथ वह मंच से लेकर संसद में भाषण देते थे तब हर कोई ध्यान से उन्हें सुनता था।

25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ। अटल के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी थे।

कुल 12 बार बने सांसद

अटल बिहारी वाजपेयी 1951 से भारतीय राजनीति का हिस्सा बने। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। इसके बाद 1957 में वह सांसद बने। अटल बिहारी वाजपेयी कुल 10 बार लोकसभा के सांसद रहे। वहीं वह दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहे। इस दौरान अटल ने उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली और मध्य प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते। वह गुजरात से राज्यसभा भी पहुंचे थे।

कांग्रेस से इतर किसी दूसरी पार्टी से सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अक्सर बीजेपी का उदारवादी चेहरा कहा जाता है। हालांकि उनके आलोचक उन्हें आरएसएस का ऐसा मुखौटा बताते रहे हैं।

लाहौर यात्रा

साल 1999 की वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा की उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं ने आलोचना की थी, लेकिन वह बस पर सवार होकर लाहौर पहुंचे। वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की संज्ञा देकर सराहा गया लेकिन इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ कराई लेकिन पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा।

1996 में पहली बार बने प्रधानमंत्री लेकिन 13 दिन चली सरकार

बीजेपी के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन संख्याबल नहीं होने से उनकी सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई। आंकड़ों ने एक बार फिर खेल दिखाया और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरुआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई।

अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की बीजेपी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने की पृष्ठभूमि में वाजपेयी सरकार धराशायी हो गई लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। गठबंधन राजनीति की मजबूरी के कारण बीजेपी को अपने मूल मुद्दों को पीछे रखना पड़ा।

इन्हीं मजबूरियों के चलते जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे उसके चिरप्रतीक्षित मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए। लेकिन वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में 1998-99 का कार्यकाल साहसिक और दृढ़निश्चयी फैसलों के साल के रूप में जाना जाता है।

परमाणु परीक्षण

11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर अटल ने भारत की मजबूत छवि विश्व पटल पर रखी। उन्होंने बहुत खुफिया तरीके से इसकी तैयारी की थी और परीक्षण के बाद उन्होंने इसकी घोषणा की थी। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था। इससे पहले 1974 में पोखरण 1 का परीक्षण किया गया था। दुनिया के कई संपन्न देशों के विरोध के बावजूद अटल सरकार ने इस परीक्षण को अंजाम दिया, जिसके बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह की रोक भी लगा दी थी, जिसके बावजूद अटल सरकार ने देश की जीडीपी में बढ़ोतरी की। पोखरण का परीक्षण अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे बड़े फैसलों में से एक है।

दुनिया के सामने हिंदी को मजबूत पहचान दिलाना

1977 में मोरार जी देसाई की सरकार में अटल विदेश मंत्री थे, वह तब पहले गैर कांग्रेसी विदेश मंत्री बनें थे। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया था और दुनियाभर में हिंदी भाषा को पहचान दिलाई, हिंदी में भाषण देने वाले अटल भारत के पहले विदेश मंत्री थे।

जनसंघ के संस्थापकों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक मूल्यों की पहचान बाद में हुई और उन्हें बीजेपी सरकार में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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