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हर जिले में शरिया कोर्ट खोलने की तैयारी में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, भाजपा ने किया विरोध

हिन्दुस्तान में मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन माना जाने वाला ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आगामी 15...
हर जिले में शरिया कोर्ट खोलने की तैयारी में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, भाजपा ने किया विरोध

हिन्दुस्तान में मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन माना जाने वाला ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आगामी 15 जुलाई को होने वाली महत्वपूर्ण बैठक में वकीलों, न्यायाधीशों और आम लोगों को शरिया कानून के फलसफे और तर्कों के बारे में बताने वाले कार्यक्रमों का सिलसिला और तेज करने पर विचार करेगा।

एएनआई के मुताबिक, बोर्ड की कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य, उत्तर प्रदेश के पूर्व अपर महाधिवक्ता जफरयाब जीलानी बताया कि बोर्ड की अगली 15 जुलाई को लखनऊ में होने वाली बैठक अब उसी तारीख को दिल्ली में होगी। इस बैठक में अन्य मुद्दों के अलावा बोर्ड की तफहीम-ए-शरीयत कमेटी को और सक्रिय करने पर विचार-विमर्श होगा।

उन्होंने बताया कि बोर्ड की तफहीम-ए-शरीयत कमेटी का काम है कि वकीलों और जहां तक हो सके, न्यायाधीशों को भी शरिया कानूनों के फलसफे और तर्कों के बारे में बताये। यह समिति करीब 15 साल पुरानी है और देश के विभिन्न हिस्सों में सम्मेलन और कार्यशालाएं आयोजित करती है। जीलानी ने बताया कि इन कार्यशालाओं में इस्लाम के जानकार लोगों के जरिये वकीलों समेत हर प्रतिभागी को शरिया कानूनों की बारीकियों के बारे में जानकारी दी जाती है। इसका मकसद यह है कि अगर कोई शरिया मामला दूसरी अदालत में जाता है तो वकील और जज वहां पर जिरह-बहस के दौरान जहां तक हो सके, उसे शरिया दायरे में रखें।

उन्होंने कहा कि अब बदलते वक्त में यह जरूरत महसूस की जा रही है कि तफहीम-ए-शरीयत कमेटी को और सक्रिय करते हुए इसका दायरा बढ़ाया जाए। बोर्ड अब यह कोशिश कर रहा है कि इस कमेटी के ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम आयोजित किये जाएं। साथ ही उनमें निरन्तरता बनी रहे। जहां उच्च न्यायालय हो, वहां पर ऐसे कार्यक्रम जल्दी जल्दी हों। बोर्ड की 15 जुलाई को होने वाली बैठक में इस कमेटी के कार्यों में और तेजी लाने पर विचार-विमर्श होगा।

जीलानी ने कहा कि कमेटी की कई कार्यशालाओं में न्यायाधीशों ने भी हिस्सा लिया है। इनमें मीडिया को भी इनमें आमंत्रित किया जाता है ताकि वे शरिया मामलों को सही तरीके से मंजर-ए-आम पर ला सके। इन कार्यशालाओं में मुख्य रूप से तलाक, वरासत समेत विभिन्न मसलों के शरिया समाधान के बारे में बताया जाता है। इन कार्यक्रमों के प्रति खासी दिलचस्पी देखी गयी है।

हर जिले में शरिया अदालतों (दारुल-कजा) खोलने की बोर्ड की योजना के बारे में पूछे जाने पर जीलानी ने कहा कि दारुल-कजा कमेटी का मकसद है कि हर जिले में शरिया अदालतें हों, ताकि मुस्लिम लोग अपने शरिया मसलों को अन्य अदालतों में ले जाने के बजाय दारुल-कजा में सुलझायें। उन्होंने कहा कि इस वक्त उत्तर प्रदेश में करीब 40 दारुल-कजा हैं। कोशिश है कि हर जिले में कम से कम एक ऐसी अदालत जरूर हो। एक अदालत पर हर महीने कम से कम 50 हजार रुपये खर्च होते हैं। अब हर जिले में दारुल-कजा खोलने के लिये संसाधन जुटाने पर विचार-विमर्श होगा।

भाजपा ने किया विरोध

वहीं, इस बात का विरोध भी शुरू हो गया है। भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने कहा, 'आप धार्मिक मसलों पर बात कर सकते हैं लेकिन इस देश को कोर्ट ही बांधती हैं। चाहे जिला हो, गांव हो या शहर हो, कहीं पर भी शरिया कोर्ट की कोई जगह नहीं है। कोर्ट कानून के हिसाब से अपना काम करेंगी। यह इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ इंडिया नहीं है।'

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