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तबलीगी जमात भी समानता के व्यवहार की हकदार

तबलीगी जमात जैसे धार्मिक समूहों के कारण मैं मुसीबत में पड़ गया हूं। इसलिए मेरे लिए सांप्रदायिकता के...
तबलीगी जमात भी समानता के व्यवहार की हकदार

तबलीगी जमात जैसे धार्मिक समूहों के कारण मैं मुसीबत में पड़ गया हूं। इसलिए मेरे लिए सांप्रदायिकता के ताने-बाने में खड़े इस संगठन का बचाव करना मेरे सार्वजनिक जीवन में असुविधाजनक कार्य है। लेकिन किसी को पहले ही दोषी मान लेना दिक्कतें पैदा करता है।

मुस्लिम परिवार में किसी भी अन्य बच्चे की तरह मुझे भी शब्दों का अर्थ समझे बगैर अरबी में कुरान याद कराने के लिए मौलाना को लगाया गया था। किसी भी दूसरे बच्चे की तरह मैंने भी मौलाना के कथन का पालन नहीं किया। मूंछ रहित दाढ़ी वाले कुर्ता-पायजामा पहने लोगों के समूह को देखकर मैं भागने में कुशल हो गया था। लेकिन किसी तरह पकड़ जाने पर उन्हें बातों में उलझाने का प्रयास करता था, जैसे उनसे सवाल करता कि जीवन का उद्देश्य क्या है, जिसका अर्थ उन्हें खुद ही पता नहीं होगा।

अधिकांश मुस्लिम लड़कों के विपरीत, मैं इसे सामान्य रूप से लेता हूं। मैं इस सोच से कि उन्हें अल्लाह ने भेजा है, जल्दी ही बाहर आ गया था और जमातियों की नजर में मैं एक्स-मुस्लिम बना गया। मैं तब से जमात और उनके सहयोगियों की चरमपंथी प्रथाओं का कड़ा आलोचक बन गया। स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया के जन्म स्थान अलीगढ़ में स्नातक की पढ़ाई के दौरान आलोचना के कारण मुझे कई बार धमकियां मिलीं। धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए मेरे खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया गया, हालांकि बाद में मैं बरी हो गया।

हालांकि, कुछ दिनों पहले, खुद को पूर्व मुस्लिम बताकर मुस्लिम समुदाय से अलग करने की कल्पना करने का अवसर जीवन में एक बार फिर आया। तबलीगी जमात का मुख्यालय निजामुद्दीन मरकज भारत में कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट बन गया। यह बताने के लिए काफी तथ्य भी मौजूद थे। भारत और दूसरे कई देशों के करीब दो हजार जमाती मरकज में एकत्रित हुए और फिर देश के विभिन्न हिस्सों में चले गए। इसके साथ ही वे अपने साथ वायरस भी ले गए। यह कोई आरोप भर नहीं है। यह वास्तविक कोरोना वायरस है। दो अप्रैल तक देश के कुल संक्रमित मरीजों में जमातियों की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी हो गई।

इसके बाद जो दौर शुरू हुआ, उस पर आश्चर्य कतई नहीं होता। एक बार फिर जिहाद शब्द जोड़ दिया गया और कोरोना जिहाद बोला जाने लगा। जल्दी ही यह कहा जाने लगा कि अगर जमातियों का कार्यक्रम नहीं भी होता तो भी वायरस फैलता। यह काम अपने आप हो जाता। मुस्लिम नाम होने के कारण मैं हिंदूवादियों की घृणा का पात्र होता हूं, दूसरी ओर आलोचनात्मक रुख के कारण जमातियों की भी नजर में बुरा बन जाता हूं। धर्मनिरपेक्ष होने के नाते मैं दोनों ओर से घृणा का पात्र हूं। तबलीगी जमात का बचाव करता दिखने के कारण मैं बहुतों के निशाने पर आ जाता हूं।

यद्यपि यह पूरी तरह सच नहीं है। यह नहीं कहा जा सकता है कि वैश्विक महामारी के दौर में अपने व्यवहार के लिए जमात जिम्मेदार नहीं हैं। दिल्ली पुलिस के निजामद्दीन थाने की एक दीवार मरकज की इमारत से लगी होने पर भी उनकी लापरवाही को नजरंदाज नही किया जा सकता है। लेकिन तबलीगी जमात पर आपराधिक आरोप लगाना सांप्रदायिक सोच के चलते दोहरा मानदंड अपनाने का मामला अवश्य है, क्योंकि इसी तरह दूसरे तमाम भीड़ वाले कार्यक्रमों को नजरंदाज कर दिया गया। देश में कोरोना का संक्रमण फैलने के बाद से नेताओं और सेलिब्रिटीज के भी कई कार्यक्रम आयोजित हुए। व्हाइट हाउस में वर्गवादी टाइटल चायनीज वायरस भारत में मुस्लिम विरोधी कोरोना जिहाद बन गया। मान लिया गया कि भारतीय मुस्लिमों का एक वर्ग वायरस फैलाने की साजिश का हिस्सा है या फिर जमात की गतिविधियों में शामिल है।

यह भी जीवन की विडंबना है और यह धर्मनिरपेक्षता के उसी सिद्धांत पर आधारित है कि मैंने अतीत में जिस जमात की आलोचना की, आज मैं उसी का बचाव कर रहा हूं। मैं उसके पिछले कृत्यों से नहीं, बल्कि सांप्रदायिकता की महामारी से बचाव कर रहा हूं। मुझे नहीं लगता कि भद्राचलम में रामनवमी समारोह का आयोजन करने वाले समूहों की तुलना में उनके साथ अधिक कठोर व्यवहार किया जाना चाहिए। रामनवमी के कार्यक्रम में तेलंगाना के दो राज्य मंत्रियों ने भी भाग लिया था।

कोई शराबी ही जमात का बचाव कर सकता है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा सभी वर्गों को जोड़ने की बात कहती है, जबकि तबलीगी जमात और हिंदूवादी संगठन इसके दायरे में नहीं आते हैं। मैं उनके कट्टरवाद का विरोध करता हूं, उनके आक्रामक उपदेशों और बच्चों में कट्टरता का बीज बोने के लिए उनसे घृणा करता हूं और दुनिया भर में उनकी वैचारिक हार की कामना करता हूं, इसके बावजूद मैं समानता के अधिकार के लिए उनका बचाव करता हूं। मैं कहूंगा कि उनके खिलाफ दूसरे धार्मिक संगठनों के समान अपराध या गलती की बात की जानी चाहिए। जमात और उनके सहयोगी मानवाधिकारों और शरीयत के लिए वकालत करते हैं जबकि ऐसे हिंदू संगठन अधिकतर हिंसक रूप से राष्ट्र पर हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे में किसी को भी सांप्रदायिकता के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता के लिए आवाज उठाने से संकोच नहीं करना चाहिए।

तबलीगी जमात जैसी घटनाओं से हमें पता चलता है कि हमारे समाज में घृणा रूपी दीमक इतनी गहराई तक फैल चुकी है कि आपदा के समय में भी लाेग घृणा का रास्ता निकाल लेते हैं और मुस्लिमों को निशाना बना लेते हैं। इस तरह के मामले में यह बताना आवश्यक है कि उदारवादी समावेशी नजरिया अपनाते हैं और तबलीगी जमात जैसे संगठनों के खतरों की ओर ध्यान नहीं देते हैं। धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांत पर अडिग रहने वाली उदारवादी सोच नैतिक श्रेष्ठता का उदाहरण पेश करना चाहती है। हम एक विभाजनकारी सोच को हराने के लिए उसी तरह की दूसरी सोच का सहारा नहीं ले सकते हैं। यद्यपि जमात के लोग धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का विरोध करते रहे हैं लेकिन उनके पास भी धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अनुसार बराबरी के अधिकार प्राप्त हैं। सभी वर्गों को जोड़कर ही हम कट्टरता और घृणा की राजनीति का सामना कर सकते हैं।

(लेखक आर्किटेक्ट और अकादमिक हैं और लेख में उनके विचार निजी हैं)

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