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बिहार परिणाम: नए पढ़े-लिखे दावेदार, आज क्या दिखा पाएंगे कमाल

“चुनावों में भले ही अब भी बाहुबलियों की मौजूदगी हो, स्वच्छ छवि वाले अनेक उम्मीदवार भी मैदान...
बिहार परिणाम: नए पढ़े-लिखे दावेदार, आज क्या दिखा पाएंगे कमाल

“चुनावों में भले ही अब भी बाहुबलियों की मौजूदगी हो, स्वच्छ छवि वाले अनेक उम्मीदवार भी मैदान में”

ताकत और पैसे के दम पर चुनावों को प्रभावित करने वाले बाहुबली बिहार में अभी अप्रासंगिक नहीं हुए हैं। वे या तो खुद चुनाव लड़ रहे हैं या अपने किसी करीबी को मैदान में उतारा है। दूसरी तरफ काफी पढ़े-लिखे लोगों की भी फौज है जो इस चुनाव में अपनी मौजूदगी से बदलाव की कोशिश कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में देश के लिए पदक जीतने वाली और अर्जुन अवॉर्ड विजेता महिला शूटर से लेकर पांच वर्षों में मुखिया के तौर पर अविकसित गांव का चेहरा बदलने वाली पढ़ी-लिखी महिला तक, अनेक ऐसे महत्वाकांक्षी प्रत्याशी हैं, जो अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं लेकिन उन सबकी एक ही ख्वाहिश है कि बिहार को विकसित राज्य में बदला जाए।

इनमें से कुछ ने विभिन्न राजनीतिक दलों के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है, तो कुछ स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में, भले ही उनके पास संसाधन हो या नहीं। कुछ ऐसे अति महत्वाकांक्षी भी हैं जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए नई पार्टी गठित कर ली है। वे न सिर्फ खुद मैदान में हैं बल्कि अपने बीमारू राज्य की तकदीर बदलने की साझी सोच वाले दूसरे युवाओं को भी उन्होंने प्लेटफॉर्म मुहैया कराया है।

बदलाव के इन नुमाइंदों में प्रमुख युवा नेता पुष्पम प्रिया चौधरी हैं, जिनकी इन चुनावों में काफी चर्चा है। उन्होंने ‘द प्लुरल्स पार्टी’ नाम से नया संगठन बनाया है जिसका लक्ष्य 10 वर्षों में बिहार को किसी भी विकसित यूरोपीय देश के समान बनाना है। 33 साल की पुष्पम प्रिया ने द लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिटिकल साइंस से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री ली है। इसके अलावा इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज से डेवलपमेंट स्टडीज में डिग्री हासिल की है। राजनीतिक दलों के प्रभावशाली और संसाधन युक्त उम्मीदवारों के मुकाबले में उन्होंने स्वच्छ पृष्ठभूमि वाले डॉक्टरों, इंजीनियरों, पत्रकारों और दूसरे प्रोफेशनल को उतारा है।

पुष्पम प्रिया को बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम दो ऐसे प्रत्याशियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनके पास भी विदेशी यूनिवर्सिटी की डिग्री है। कांग्रेस उम्मीदवार लव सिन्हा वेबस्टर यूनिवर्सिटी, मिसौरी (अमेरिका) के स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन से ग्रेजुएट हैं। बॉलीवुड के वरिष्ठ कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा के 39 वर्षीय बेटे लव भी विकास के मुद्दों पर वोट मांग रहे हैं। वे कहते हैं, “मैं यहां लोगों के भले की लड़ाई लड़ने आया हूं।”

इसी सीट से मनीष बरियार भी चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्होंने स्वेच्छा से शिक्षण पेशा अपनाया है। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और इंडियन इंस्टीट्यूट आफ फॉरेन ट्रेड, दिल्ली से पढ़ाई की है। उनके जैसे अनेक उम्मीदवार हैं, जो इन चुनावों में पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं। इन सबका एक ही विजन है- बिहार को विकास के फास्ट ट्रैक पर लाना।

श्रेयसी सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान से प्रेरित होकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में आईं। लेकिन वही एकमात्र कारण नहीं है। वे कहती हैं, “मैं अपने पिता के सपनों को साकार करना चाहती हूं। मेरी इच्छा है कि बिहार के विकास के लिए यथासंभव काम करूं।” श्रेयसी पूर्व विदेश राज्यमंत्री दिवंगत दिग्विजय सिंह की बेटी हैं, जिन्होंने कई बार बांका संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया। 2010 में उनकी मौत के बाद श्रेयसी की मां पुतुल देवी ने उसी सीट से उपचुनाव जीता। अब विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी की बारी है। कॉमनवेल्थ गेम्स में शूटिंग में स्वर्ण पदक जीतने वाली 29 साल की श्रेयसी को भाजपा ने जमुई विधानसभा क्षेत्र से उतारा है।

अन्य जानी-मानी महिला प्रत्याशियों में रितु जायसवाल भी हैं जो सीतामढ़ी जिले की परिहार विधानसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। पूर्व आइएएस अधिकारी की पत्नी, 35 वर्षीय रितु पांच वर्ष पहले तब चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने सिंहवाहिनी पंचायत में मुखिया का चुनाव जीता था। इस अविकसित पंचायत क्षेत्र में विकास के कार्य करने की वजह से उन्हें दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तीकरण पुरस्कार से नवाजा गया था। पिछले वर्ष संसदीय चुनाव से पहले चर्चा थी कि सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) उन्हें सीतामढ़ी सीट से उतारेगी, पर ऐसा हुआ नहीं। अंततः कुछ दिनों पहले वे राजद में शामिल हो गईं।

महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव का शुक्रिया अदा करते हुए वे कहती हैं, “जदयू में ईमानदार और महिला नेताओं की कोई जगह नहीं है। पंचायत प्रतिनिधि के तौर पर मैंने निचले स्तर पर काम किया है। मैं इस बात के लिए आभारी हूं कि राजद परिवार ने मुझे इस लायक समझा है।” उन्हें राजद का टिकट देने के पीछे तेजस्वी यादव का ‘नए युग, नई राजनीति और नए बिहार’ का वादा है। पार्टी कहती है कि विपक्ष के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार जाति, धर्म और स्‍त्री-पुरुष भेद से ऊपर उठकर बिहार की राजनीति को बदल रहे हैं।

जदयू ने भले ही रितु जायसवाल को टिकट न दिया हो, लेकिन पढ़े-लिखे लोगों को टिकट देने में वह भी पीछे नहीं है। पूर्वी चंपारण की केसरिया सीट से पार्टी की उम्मीदवार शालिनी मिश्रा गाजियाबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट से पोस्ट ग्रेजुएट हैं। पार्टी ने मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे दिवंगत बी.पी. मंडल के बेटे निखिल मंडल को मधेपुरा क्षेत्र से उतारा है। निखिल अब तो वैसे वकील हैं, लेकिन पहले वे आइडीबीआइ बैंक में वित्तीय सलाहकार हुआ करते थे। परिवार की परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने राजनीति में उतरने का निर्णय लिया है।

भाजपा ने भी पटना के निकट मनेर से निखिल आनंद को उतारा है। निखिल ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और आइआइएमसी दिल्ली से पढ़ाई की है। कई वर्षों तक वे टेलीविजन पत्रकार रहे। वे कहते हैं कि अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास के मकसद से यह चुनाव लड़ रहे हैं, और यहां के पूर्व विधायकों ने बहुत कम काम किया है।

अनंत सिंह

बाहुबली अनंत सिंह

ऐसे उम्मीदवारों के मामले में कांग्रेस पार्टी भी पीछे नहीं है। लव सिन्हा के अलावा उसने शुभानंद मुकेश को टिकट दिया है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानंद सिंह के बेटे शुभानंद भागलपुर जिले की कहलगांव सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव को पार्टी ने मधेपुरा जिले की बिहारीगंज सीट से टिकट दिया है।

मुन्ना शुक्ला

मुन्ना शुक्ला

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या लोकतंत्र के लिए स्वस्थ संकेत है, लेकिन ऐसा नहीं कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों के दिन पूरी तरह लद गए हों। समाजशास्त्री ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी कहते हैं कि बिहार का चुनावी इतिहास तीन चरणों में बांटा जा सकता है। पहले चरण में ज्यादातर उम्मीदवार आजादी की लड़ाई से जुड़े थे। उसके बाद के काल में ऐसे नेता आए, जो जीत के लिए बाहुबलियों का सहारा लेने लगे। बाद में दूसरों को जिताने के बजाय बाहुबली खुद चुनावी मैदान में उतरने लगे। त्रिपाठी मानते हैं कि नई पीढ़ी के उम्मीदवार ताजी हवा के झोंके की तरह हैं, लेकिन बिहार चुनाव में बाहुबली फैक्टर अभी तक पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। इस चुनाव में भी ऐसे प्रत्याशियों की कमी नहीं जिनके नाम एक से अधिक अपराध दर्ज हैं। हत्या के एक मामले में जेल में बंद अनंत सिंह ने मोकामा क्षेत्र से राजद के टिकट पर नामांकन भरा है। अगर वे जीते तो लगातार चौथी बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेंगे। वैसे मोकामा दशकों से बाहुबलियों का इलाका रहा है। आनंद के बड़े भाई दिलीप सिंह ने 1990 और 1995 में यहां से जीत हासिल की थी, तो स्वतंत्र उम्मीदवार सूरजभान सिंह को 2000 में जीत मिली थी।

इसी तरह राजद के बाहुबली सुरेंद्र प्रसाद यादव गया जिले की बेलागंज सीट से आठवीं बार जीत के लिए मैदान में है। पार्टी ने हत्या के मामले में दोषी रीत लाल राय को दानापुर सीट से उतारा है। करीब एक दशक तक जेल में रहने के बाद रीत लाल जमानत पर हैं। अन्य बाहुबलियों में काली पांडे (कांग्रेस), अमरेंद्र पांडे (जदयू), मुन्ना शुक्ला (स्वतंत्र), कौशल यादव (जदयू) प्रमुख हैं। उनके अलावा रमा सिंह, रणवीर यादव और मनोरंजन सिंह धूमल जैसे बाहुबली भी हैं, जिन्होंने अपनी पत्नियों को मैदान में खड़ा किया है।

सुरेंद्र प्रसाद यादव

सुरेंद्र प्रसाद यादव

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और बिहार इलेक्शन वॉच (बीईडब्ल्यू) के अनुसार पहले चरण के 1,064 उम्मीदवारों में 328 (31 फीसदी) ने किसी न किसी अपराध में शामिल होने की जानकारी दी है। इनमें से 244 (23 फीसदी) के नाम तो गंभीर किस्म के अपराध दर्ज हैं।

बिहार में 2005 से विधानसभा और संसदीय चुनाव लड़ने वाले 820 सांसदों और विधायकों समेत कुल 10,785 उम्मीदवारों में से 3,230 (30 फीसदी) किसी न किसी अपराध में शामिल रहे हैं। इनमें 2,204 (20 फीसदी) के नाम गंभीर अपराध दर्ज हैं। 820 सांसदों और विधायकों में से 469 यानी 57 फीसदी ने अपने नाम अपराध दर्ज होने की जानकारी दी है, जिनमें से 295 यानी 36 फीसदी के अपराध गंभीर किस्म के हैं। ये आंकड़े इस बात के गवाह है कि भले ही अन्य क्षेत्रों में अनेक बदलाव हुए हैं, बिहार के चुनाव में बहुत कुछ नहीं बदला है, चाहे मैदान में स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार हों या नहीं।

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