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अज्ञेय हिंदुत्व के समर्थक नहीं, संघ के आलोचक थे

हिंदी के यशस्वी साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय हिंदुत्व के समर्थक नहीं थे बल्कि...
अज्ञेय हिंदुत्व के समर्थक नहीं, संघ के आलोचक थे

हिंदी के यशस्वी साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय हिंदुत्व के समर्थक नहीं थे बल्कि उन्होंने दिनमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कड़ी आलोचना की थी। यह जानकारी अज्ञेय के जीवनीकार और वरिष्ठ अंग्रेजी पत्रकार अक्षय मुकुल ने कल शाम हिंदी के प्रख्यात कवि एवं संस्कृति कर्मी अशोक बाजपेई के सवालों के जवाब में दी।

गौरतलब है कि मुकुल ने हाल ही में अज्ञेय की अंग्रेजी में 7 89 पृष्ठ  की जीवनी लिखी है और वह इस किताब  के कारण इन दिनों वे चर्चा में है। टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व पत्रकार मुकुल ने गीता प्रेस पर भी किताब लिखने के कारण चर्चित हुए थे।

रजा फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में अशोक वाजपेयी  ने मुकुल से पूछा कि क्या बाद के दिनों  में जय जानकी यात्रा निकालने के कारण अज्ञेय की  छवि सॉफ्ट  हिंदुत्व की बन गई थी तो इस पर श्री मुकुल ने कहा कि अज्ञेय ने  दिनमान में आर एस एस के खिलाफ कड़ा लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में न तो राष्ट्र है न सेवा और न ही  संघ।

मुकुल ने यह भी कहा कि अज्ञेय हिंदुत्व में नहीं बल्कि भारतीयता में विश्वास रखते थे और वह भारतीय लेखक थे लेकिन उनके विरोधियों ने उनकी एक छवि गढ़ दी और  हिंदी समाज आज भी अज्ञेय को लेकर दो खेमों में विभाजित है। कुछ लोग तो उनके बड़े प्रशंसक हैं लेकिन कुछ लोग उनके कट्टर विरोधी हैं लेकिन मुकुल ने यह स्वीकार किया कि अज्ञेय ने  चौथे सप्तक के कवि नंदकिशोर आचार्य के बुलावे पर एक यज्ञ हवन  में भाग लिया था।

वाजपेयी के एक अन्य सवाल के जवाब में मुकुल ने कहा कि अज्ञेय ल आज़ादी की लड़ाई में जेल ही नहीं गए बल्कि उस समय के किसान आंदोलन में भी भाग लिया था। श्री मुकुल ने बताया कि एक तरफ अज्ञेय के सम्बंध प्रख्यात विचारक  एम एन राय से  थे  तो पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी थे।नेहरू जी ने अज्ञेय की जेल में लिखी गयी कविताओं की पुस्तक की भूमिका भी लिखी थी।

नेहरू से उनका पत्रचार था और नेहरू अभिनंदन ग्रंथ का संपादन भी किया था। अज्ञेय का सम्बंध जे पी से भी था और उनकी पत्रिका एवेरीमेन  के वे संपादक थे। अज्ञेय का भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद से भी सम्बन्ध था।

मुक्तिबोध और अज्ञेय के रिश्तों के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में मुकुल ने कहा कि दोनों के रिश्ते मधुर थे लेकिन हिंदी समाज में अज्ञेय को लेकर "गप्पें"(गॉसिप) बहुत हैं और बढ़ा चढ़ाकर बातें कहीं जाती रही हैं। मुक्तिबोध के संदर्भ में भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि वामपंथियों ने अज्ञेय पर बहुत हमले किये।

मुकुल ने कहा कि अज्ञेय हिंदी के भिन्न किस्म के लेखक थे।उनकी पृष्ठभूमि अलग थी। वे अंग्रेजी बैकग्राउंड से आये थे और शेखर एक जीवनी जैसे क्लासिक उपन्यास का पहला ड्राफ्ट उन्होंने अंग्रेजी में ही लिखा था। मुल्क राज आनंद और नीरद सी चौधरी उनके मित्र थे। श्री मुकुल ने बताया कि अज्ञेयने घर मे हिंदी पढ़ी थी ।वेद पुराण का भी अध्ययन किया था। वे बनना भौतिकीविद चाहते थे पर लेखक बन गए। वे  रात 11 बजे लिखना शुरू करते थे।

मुकुल ने बताया कि अज्ञेय को जीवन पर इस बात का मलाल राह कि हिंदी वाले उनको नहीं अपना नहीं मानते क्योंकि मेरी हिंदी अलग है। एकं अन्य प्रश्न के उत्तर में मुकुल ने कहा कि अज्ञेय को पैसों की बहुत तंगी जीवन भर रही। वे नौकरियां बदलते रहे। देश के विश्विद्यालय में उन्हें नौकरी नहीं मिली।

स्त्रियों के साथ अज्ञेय  के संबंधों की चर्चा करते हुए मुकुल ने कहा कि अज्ञेय का स्त्रियों के  साथ शुरू में संबंध  अच्छा रहा पर बाद में हमेशा खराब हो गए। उन्होंने इस संबंध के संदर्भ में उनकी पहली पत्नी संतोष साहनी( जिनसे अज्ञेय का तलाक हो गया और उसके बाद वह बलराज साहनी  की पत्नी बन गई।) कपिला वात्सायन और इला डालमिया की भी चर्चा की।

इससे पहले  मुकुल ने  बताया कि उन्हें अज्ञेय की जीवनी लिखने की प्रेरणा कुमार गंधर्व से मिली। वाजपेई ने कहा कि उन्होंने जब मुकुल को रजा फाउंडेशन की ओर से अज्ञेय की जीवनी लिखने का प्रस्ताव दिया तो उन्हें संदेह था की मुकुल अच्छी जीवनी  लिख पाएंगे क्योंकि उन्हें हमेशा पत्रकारों  की काबिलियत पर संदेश किया है लेकिन  मुकुल ने बहुत ही मेहनत और शोध कार्य से  शानदार जीवनी  लिखी है और रज़ा फाउंडेशन से प्रकाशित अब तक की  अब तक की सर्वश्रेष्ठ जीवनी है।

मुकुल ने वाजपेयी से अज्ञेय  के साथ उनके संबंधों के बारे में जब पूछा तो  वाजपयी ने विस्तार से इसका जिक्र किया और कहा कि उन्हें अज्ञेय  से प्रेरणा मिलती रही है और 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अज्ञेय को सागर से पत्र लिखा था। बाद में भी उनके साथ पत्राचार हुए लेकिन एक प्रसंग में उनके साथ कुछ अप्रिय बातें हो गयी। उन्होंने बताया किया कि उन्होंने एक जमाने में बूढ़ा गिद्ध क्यों पंख फैलाए लेख में लिखा था लेकिन  बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें "बूढ़ा गिद्ध " नहीं लिखना चाहिए था।

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