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ओटीटी: प्रतिभा की पनाहगाह, नए और भुला दिए गए कलाकारों के लिए यह साबित हुआ लोकतांत्रिक प्लेटफॉर्म

“पारंपरिक बॉलीवुड फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं पाने वाले, नए और भुला दिए गए कलाकारों के लिए ओटीटी...
ओटीटी: प्रतिभा की पनाहगाह, नए और भुला दिए गए कलाकारों के लिए यह साबित हुआ लोकतांत्रिक प्लेटफॉर्म

“पारंपरिक बॉलीवुड फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं पाने वाले, नए और भुला दिए गए कलाकारों के लिए ओटीटी लोकतांत्रिक प्लेटफॉर्म साबित हुआ, जहां वे बेहद सफल हो रहे”

जब शबाना आजमी ने स्कैम 1992 के लिए प्रतीक गांधी की यह कहकर तारीफ की थी कि पिछले 20 वर्षों में उन्होंने इससे अच्छा अभिनय नहीं देखा है तो अभिनेता प्रतीक की आंखों में आंसू आ गए थे। उन्होंने गुजराती सिनेमा में भले ही अनेक हिट फिल्में दी हों, हिंदी सिनेमा में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। लेकिन स्टॉक ब्रोकर दिवंगत हर्षद मेहता के किरदार ने उन्हें रातोरात सनसनी बना दिया। उसके बाद प्रतीक कई बड़ी फिल्में साइन कर चुके हैं और सबमें वे प्रमुख भूमिका में हैं। इनमें हंसल मेहता की डेढ़ बीघा जमीन भी शामिल है। एक और बड़ी वेब सीरीज सिक्स सस्पेक्ट्स में भी वे काम कर रहे हैं। यह विकास स्वरूप की किताब पर आधारित है और अजय देवगन का प्रोडक्शन हाउस इसका निर्माता है। इन सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी तुलना मनोज बाजपेयी से की जाने लगी है।

सिर्फ एक वेब सीरीज के दम पर प्रतिभा का यह पावर हाउस केंद्र में आ गया। सिर्फ एक भूमिका के लिए 10 पुरस्कार पाने वाले सूरत में जन्मे इस अभिनेता का जीवन वास्तव में 40 साल की उम्र में शुरू हुआ। यही ओटीटी की क्षमता है। अच्छे अभिनेता का काम दुनिया भर में करोड़ों लोगों तक पहुंच जाता है। वरना ये अभिनेता बॉलीवुड की मुख्यधारा वाली फिल्मों में महज स्पेयर पार्ट्स बन कर रह जाते।

भारतीय सिनेमा को विभिन्न स्तरों पर बदलने वाली इस डिजिटल क्रांति से लाभान्वित होने वाले प्रतीक अकेली प्रतिभा नहीं। उन जैसे कई कलाकारों को अपनी अदाकारी दिखाने का मौका मिला है, जिन्हें सतही ग्लैमर वाले बॉलीवुड में पहले कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली। इस लोकतांत्रिक प्लेटफॉर्म ने फिल्म इंडस्ट्री को स्टार सिस्टम से बाहर निकल कर सोचने पर मजबूर किया है। इनमें से ज्यादातर कलाकार कई वर्षों से इंडस्ट्री में हैं और यदा-कदा मिलने वाली भूमिकाओं में अपनी प्रतिभा की छाप भी छोड़ी है। लेकिन अब वे नए मनोरंजन जगत के बादशाह बन गए हैं।

उदाहरण के लिए, पंकज त्रिपाठी को लीजिए। बिहार में जन्मे इस अभिनेता को अब अपनी पीढ़ी के स्वाभाविक अभिनय करने वाले बड़े कलाकारों में गिना जाने लगा है। उन्होंने इंडस्ट्री में 14 वर्षों तक कड़ी मेहनत की। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) से ग्रेजुएट होने के बाद भी उन्हें छोटी-मोटी भूमिकाएं ही मिलती रहीं। न्यूटन (2017) में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली भूमिका से उन्हें पहचान मिली लेकिन लोकप्रियता वेब सीरीज से ही हासिल की। उन्होंने लगातार तीन वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस, सेक्रेड गेम्स और मिर्जापुर में काम किया।

इन दिनों सबसे व्यस्त अभिनेताओं में एक पंकज आउटलुक से बातचीत में कहते हैं, "वेब सीरीज के आगमन ने मुझे इतना व्यस्त कर दिया है कि मैं लंबे समय तक कोई ब्रेक ही नहीं ले सका।" पंकज की नवीनतम फिल्म मिमी है जिसमें कृति सैनन भी मुख्य भूमिका में हैं। सीधे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इस फिल्म का प्रीमियर हुआ। पंकज कहते हैं, “इस माध्यम की अथाह पहुंच से मैं आश्चर्यचकित हूं। दुनियाभर के दूरदराज के इलाकों से मुझे फोन कॉल और मैसेज आते हैं। ज्यादातर लोग मुझे कालीन भैया नाम से पुकारते हैं, जो मिर्जापुर वेब सीरीज में मेरे किरदार का नाम था।”

पंकज के लिए मिर्जापुर सही समय पर आया। इसमें उन्हें न सिर्फ अलग-अलग तरह का अभिनय दिखाने का मौका मिला बल्कि बॉलीवुड में अक्सर अभिनेताओं को खास तरह की भूमिका तक सीमित कर दिए जाने से भी मुक्ति मिली। मिर्जापुर थ्रिलर पूर्वी उत्तर प्रदेश के गैंगवार पर आधारित है। इसने विक्रांत मैसी, अली फजल और दिव्येंदु जैसे युवा कलाकारों को भी मौका दिया और उन्होंने इस मौके को दोनों हाथों से बटोरा भी।

विक्रांत मैसी इससे पहले टीवी, शॉर्ट फिल्म और ए डेथ इन द गंज (2017) और लिपस्टिक अंडर माय बुर्खा (2017) जैसी प्रशंसित फिल्मों में काम कर चुके थे। लेकिन मिर्जापुर और क्रिमिनल जस्टिस में बेहतरीन अदाकारी के बाद ही उन्हें बड़ा कलाकार माना गया और दीपिका पादुकोण (छपाक, 2020) और ताप्सी पन्नू (हसीन दिलरूबा, 2021) जैसी अभिनेत्रियों के साथ प्रमुख भूमिकाएं निभाने का मौका मिला।

अली फजल ने फुकरे (2013) और इसके सीक्वेल फुकरे रिटर्न्स (2017) में अपनी अदाकारी की छाप छोड़ी थी, लेकिन उन्हें भी मशहूरियत मिली मिर्जापुर के दोनों सीजन और हाल में सत्यजीत राय पर बनी मिनी वेब सीरीज रे से। मिर्जापुर से दिव्येंदु को भी वह स्टारडम हासिल हुआ, जो वे बॉलीवुड में पहले नहीं हासिल कर सके। मुन्ना त्रिपाठी के किरदार के लिए 38 साल के इस अभिनेता को आलोचकों और दर्शकों दोनों की प्रशंसा मिली।

मिर्जापुर के बारे में दिव्येंदु कहते हैं, "एक कलाकार के होने के नाते मैं हमेशा कुछ वैसा ही करना चाहता था। इसमें मैंने अपने अभिनय का अलग-अलग शेड दिखाया है। इसमें मुझे बड़ा मजा आता है।" दिव्येंदु को लगता है कि उनके जैसे कलाकार सौभाग्यशाली हैं क्योंकि वे ऐसे समय आए जब फिल्म और वेब सीरीज दोनों में कंटेंट को लेकर काफी बदलाव हो रहे हैं। वे कहते हैं, "मैं बड़ा भाग्यशाली हूं कि सही समय पर सही जगह पहुंच गया। ओटीटी के उदय के साथ आप दोनों जहां का फायदा ले सकते हैं।"

ओटीटी के जरिए सफलता की कहानी लिखने वाले एक और अभिनेता हैं जयदीप अहलावत। गैंग्स आफ वासेपुर (2012) में अपनी अदाकारी से प्रशंसा पाने वाले इस दमदार कलाकार को किसी बड़ी भूमिका की तलाश थी। पाताल लोक में 41 साल के इस अभिनेता के इंस्पेक्टर हाथी राम चौधरी के किरदार को देख कर एहसास होता है कि बॉलीवुड ने उनकी प्रतिभा का कितना कम इस्तेमाल किया है।

अहलावत के अनुसार मनोरंजन उद्योग में वैसे तो करीब एक दशक से कंटेंट पर ध्यान दिया जाने लगा है लेकिन वेब सीरीज इसे नए स्तर पर लेकर गया है। वे कहते हैं, "यहां आप एक ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर अपनी कहानी कहते हैं। इससे एक अभिनेता के रूप में आपको बेहतर पहचान बनाने में मदद मिलती है। आपको नई चीजें करने का मौका मिलता है और साथ में चुनौतियां भी आपका इम्तिहान लेती हैं।"

पाताल लोक ने नीरज कबी को भी नए सिरे से स्थापित किया है। 52 साल के इस वरिष्ठ अभिनेता के पास करीब 15 वर्षों से कोई काम नहीं था। उन्होंने बॉलीवुड में शुरुआत 1997 में की थी। हालांकि शिप ऑफ थेसियस (2012) और तलवार (2015) में उन्हें अच्छे मौके मिले, लेकिन ताजमहल 1989, पाताल लोक और अवरोध: द सीज विदिन वेब सीरीज ने उनकी पहचान स्थापित की।

कबी कहते हैं, "आखिरकार अच्छे अभिनेताओं को वह सब हासिल होने लगा जिससे वे वंचित थे। कंटेंट आधारित फिल्मों और विश्वसनीय अभिनय को तरजीह दी जाने लगी है। आगे यह और बढ़ेगा। दो-तीन वर्षों में दर्शकों की संवेदनशीलता कई गुना बढ़ी है।"

कबी जैसे कलाकारों को ओटीटी ने वह ख्याति दिलाई जिसका स्वाद उन्होंने पहले कभी नहीं चखा। सोहम शाह कहते हैं कि उन्होंने शिप ऑफ थेसियस, तलवार और तुम्बाद (2018) जैसी मशहूर फिल्मों में काम किया लेकिन महारानी वेब सीरीज से जो लोकप्रियता मिली वह पहले नहीं मिली थी। वे कहते हैं, "मैं श्रीगंगानगर में अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और सलमान खान की फिल्में देख कर बड़ा हुआ। मैं भी उनके जैसी फिल्में करना चाहता था, ताकि ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंच सकूं। लेकिन मुझे यह हासिल हुआ वेब सीरीज से। पहली बार लोगों ने फोन करके मुझे कहा कि महारानी में मैंने बहुत अच्छा काम किया है।"

ओटीटी ने अभिनेत्रियों को भी बॉलीवुड की परंपरागत भूमिकाओं की बेड़ियों से मुक्त होने का मौका दिया है। अब वे बिल्कुल अलग तरह की भूमिकाओं में नजर आ रही हैं। राधिका आप्टे, शेफाली शाह, नीना गुप्ता, टिस्का चोपड़ा, रसिका दुग्गल, श्वेता त्रिपाठी, कुबरा सैत, शोभिता धुलिपाला, शाइनी गुप्ता, शीबा चड्ढा और कीर्ति कुल्हारी चंद नाम हैं, आजकल ओटीटी इंडस्ट्री में जिनकी डिमांड बनी हुई है। अभिनेत्री हुमा कुरैशी मानती हैं कि ओटीटी ही भविष्य है। वे कहती हैं, "इस प्लेटफॉर्म पर हम जिस तरह की फिल्में कर रहे हैं,  पारंपरिक थिएटर में उन्हें शायद जगह नहीं मिल पाती।"

रोचक बात यह है कि शुरू में नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम वीडियो, डिजनी प्लस हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म को नए कलाकारों, स्ट्रगलर या अपने शिखर से नीचे आ चुके कलाकारों का प्लेटफॉर्म माना जाता था। लेकिन सेक्रेड गेम्स जैसी ओरिजिनल वेब सीरीज और सैफ अली खान तथा नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे स्थापित कलाकारों के आने से इस माध्यम की वास्तविक ताकत का एहसास हुआ।

ओटीटी इंडस्ट्री में अभी अनेक ऐसे कलाकार हैं जिनकी क्षमता का इस्तेमाल होना बाकी है। इनमें के के मेनन और अतुल कुलकर्णी जैसे वरिष्ठ अभिनेता हैं तो दूसरी तरफ विजय वर्मा और जितेंद्र कुमार जैसे युवा कलाकार भी। इसमें दो राय नहीं कि ओटीटी प्लेटफॉर्म ने अच्छे विषयों की मांग बढ़ा दी है। इसने उन अभिनेताओं के लिए भी नए रास्ते खोल दिए हैं जिन्हें अभी तक कोई खास मौका नहीं मिल रहा था। युवा कलाकार सिद्धांत चतुर्वेदी इन दिनों बॉलीवुड का नया आकर्षण बने हुए हैं। वे बॉलीवुड के बड़े बैनर में काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें भी शुरुआती पहचान इनसाइड एज (2017) वेब सीरीज से ही मिली, जिसके बाद उन्हें गली ब्वॉय (2019) में काम करने का मौका मिला और वे स्टार बन गए। इसलिए आश्चर्य नहीं कि बॉलीवुड के स्थापित और बड़े पर्दे के स्टार अजय देवगन और शाहिद कपूर भी बिना किसी हिचक के वेब सीरीज में काम कर रहे हैं। इसने अभिषेक बच्चन और बॉबी देओल जैसे कलाकारों को भी नया जीवन दिया है। कभी '70 एमएम पर्दे की बड़ी उम्मीद' कहे जाने वाले बड़े बॉलीवुड परिवारों के ये वंशज मनोरंजन जगत में बने रहने के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म का सहारा ले रहे हैं। यहां उन्हें उस स्टारडम का भी सामना नहीं करना पड़ता, जो एक समय उनकी पहचान हुआ करती थी। लेकिन लंबे समय में वे सभी यहां तभी टिक पाएंगे, अगर उनमें प्रतिभा की नई फौज के साथ मुकाबला करने का दम होगा। आखिरकार यह कलाकारों की दुनिया है, जहां खानदान नहीं, बल्कि प्रतिभा मायने रखती है।

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