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विशाल भारद्वाज की फिल्म "पटाखा" ने पूरे किए 4 साल, जानें फिल्म से जुड़ी खास बातें

आज विशाल भारद्वाज की फिल्म "पटाखा" को 4 साल पूरे हो गए हैं। फिल्म "पटाखा" 28 सितंबर सन 2018 को सिनेमाघरों में...
विशाल भारद्वाज की फिल्म

आज विशाल भारद्वाज की फिल्म "पटाखा" को 4 साल पूरे हो गए हैं। फिल्म "पटाखा" 28 सितंबर सन 2018 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। इस अवसर पर फिल्म पटाखा के बनने की रोमांचक यात्रा को जानते हैं। 

 

सन 2006 में, साहित्य अकादमी की पत्रिका समकालीन भारतीय साहित्य में एक कहानी छपी। कहानी का शीर्षक था " दो बहनें"। इस कहानी को लिखा था, राजस्थान के करौली ज़िले के गाँव रौंसी के रहने वाले, लेखक चरण सिंह पथिक ने। चरण सिंह पथिक पेशे से अध्यापक रहे हैं, मगर साहित्य में उनकी आत्मा बसती है। पांच साल बाद, सन 2011 में, निर्देशक विशाल भारद्वाज ने समकालीन भारतीय साहित्य पत्रिका के अंक में कहानी " दो बहनें" पढ़ी और बेहद प्रभावित हुए। विशाल भारद्वाज के कहने पर, उनके असिस्टेंट ने चरण सिंह पथिक से संपर्क किया। बातचीत के बाद, चरण सिंह पथिक ने अपने दो कहानी संग्रह " बात ये नहीं है" और " पीपल के फूल" विशाल भारद्वाज को पढ़ने के लिए भेज दिए।वक़्त गुज़रता रहा। 

 

साल 2012 में आयोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आख़िरकार निर्देशक विशाल भारद्वाज और चरण सिंह पथिक की मुलाक़ात हुई। मुलाक़ात मुख़्तसर रही मगर जाते - जाते विशाल भारद्वाज ने पथिक को यह भरोसा दिलाया कि वह जल्दी ही साथ में काम शुरू करेंगे। इसके साथ ही विशाल भारद्वाज ने चरण सिंह पथिक से कहा कि उनसे मिलकर ऐसा लगता है कि जैसे अपने भाई से मिल रहा हूं।

 

मार्च 2017 में, विशाल भारद्वाज ने चरण सिंह पथिक को फ़ोन किया और उन्हें मुंबई बुला लिया। चरण सिंह विशाल भारद्वाज के ऑफ़िस पहुँचे और कहानी " दो बहनें" पर काम शुरू हुआ।कहानी छह पन्ने की थी और एक फ़ीचर फ़िल्म के निर्माण के लिए इसे कमसेकम दो सौ पन्नों का होना था। चरण सिंह पथिक और विशाल भारद्वाज ने जीतोड़ मेहनत की और फ़िल्म की स्क्रिप्ट तैयार कर ली। स्क्रिप्ट लिखते हुए यह ख़ास ख्याल रखा गया कि कहानी में किए जा रहे बदलाव, कहानी की आत्मा को नुक़सान न पहुचाएँ। स्क्रिप्ट और कहानी को पूरा पढ़ने के बाद विशाल भारद्वाज ने चरण सिंह पथिक को वर्तमान समय का प्रेमचंद बताया। 

 

विशाल भारद्वाज, अपनी पत्नी रेखा भारद्वाज और अपने बाक़ी फ़िल्मी क्रू मेंबर्स के साथ, करौली ज़िले के रौंसी गाँव पहुँचे। यहाँ उन्होंने उन रियल लोकेशन्स का जायज़ा लिया, जहाँ से प्रभावित होकर " दो बहनें" लिखी गई थी। विशाल भारद्वाज, रौंसी गाँव की आबोहवा से प्रभावित हुए और उन्होंने फ़ैसला किया कि फ़िल्म की शूटिंग यहीं पर होगी। 

 

शुरुआती दौर में फ़िल्म का नाम " छुरियाँ " रखा गया मगर फिर बाद में इसे बदलकर " पटाखा" कर दिया गया, जो फ़िल्म का शीर्षक बना। 

 

विशाल भारद्वाज निर्देशक होने से पहले, एक संगीतकार हैं। संगीत से प्रेम होने के कारण ही वह फ़िल्मकार बने, जिससे उन्हें संगीत देने के अधिक अवसर मिल सकें । फ़िल्म पटाखा के संगीत और बैकग्राउंड स्कोर की ज़िम्मेदारी निर्देशक विशाल भारद्वाज के कंधों पर थी। हर बार की तरह, इस बार भी विशाल भारद्वाज की फ़िल्म के गीत लिखने के लिए मशहूर गीतकार गुलज़ार को शामिल किया। 

 

फ़िल्म के गीतों को गायिका रेखा भारद्वाज, सुनिधि चौहान, गायक अरिजीत सिंह ने अपनी आवाज़ से सजाया। 

 

जब फ़िल्म के किरदारों की कास्टिंग शुरू हुई तो मुख्य भूमिकाओं के लिए कई नाम सामने आए। फ़िल्म क्योंकि ग्रामीण, आंचलिक परिवेश पर आधारित एक नायिकाप्रधान फ़िल्म थी, इसलिए कलाकारों का चुनाव, बहुत सूझ बूझ के साथ करने की आवश्कता थी। सूत्रों के मुताबिक, छुटकी यानी गेंदा कुमारी के किरदार को निभाने के लिए अभिनेत्री कृति सैनॉन ने ऑडिशन दिया मगर वह इस रोल को हासिल नहीं कर सकीं। बाद में यह रोल अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा को मिला, जो इससे पहले फ़िल्म " दंगल" में काम कर चुकी थीं। बड़की यानी चम्पा कुमारी के किरदार के लिए भी परिणीती चोपड़ा, सोनाक्षी सिन्हा, वाणी कपूर, श्रद्धा कपूर, भूमि पेडनेकर जैसी मशहूर अभिनेत्रियों ने ऑडिशन दिए मगर अंत में यह रोल टीवी अदाकारा राधिका मदान के हिस्से में आया। फ़िल्म में अन्य मुख्य भूमिकाओं को निभाने के लिए अभिनेता विजय राज, सुनील ग्रोवर, अभिषेक दुहान और नमित दास ( ग़ज़ल गायक चन्दन दास के पुत्र) को साइन किया गया। 

 

फ़िल्म की शूटिंग माउंट आबू, उदयपुर, रौंसी गाँव में संपन्न हुई। 

 

28 सितम्बर 2018 को फ़िल्म सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। फ़िल्म को दर्शकों और समीक्षकों की मिली जुली प्रतिक्रिया हासिल हुई।जब भी किसी साहित्यिक कृति पर सिनेमा बनता है तो उसके साथ कई उम्मीदें जुड़ जाती हैं, जो कई बार फ़िल्मकार पर दबाव भी डालती है।विशाल भारद्वाज ने एक अनुभवी फ़िल्मकार होने का परिचय दिया और वह बहुत कुशलता के साथ, ग्रामीण परिवेश पर आधारित एक नायिकाप्रधान साहित्यिक कृति को सिनेमा की सिल्वर स्क्रीन पर उतारने में कामयाब हुए।

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